नई दिल्ली। चंपारण सत्याग्रह का यह शताब्दी वर्ष है। इसलिए नील किसानों की दुर्दशा और गांधी जी के सत्याग्रह को देश भर में याद किया जा रहा है। इस दौरान कई लेखक और पत्रकार चंपारण सत्याग्रह के इतिहास को फिर से खंगाल रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक अरविंद मोहन ने चंपारण में गांधी के कालखंड का क्रमबद्ध अध्ययन किया है। चंपारण सत्याग्रह पर उनकी अनेक पुस्तकें आ चुकी हैं। अध्ययन के दौरान प्राप्त अपने अनुभवों को उन्होंने गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित ‘आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान’ में साझा किया। स्मृति व्याख्यान का आयोजन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट ने किया था।
‘चंपारण सत्याग्रह में गांधी एवं उनके सहयोगी’ विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए अरविंद मोहन ने कहा कि चंपारण में नील किसानों की दुर्दशा देखने गए गांधी जी ने सोचा था कि दो चार दिन में हालात को देखने के बाद वे वापस आ जाएंगे लेकिन चंपारण में गांधी जी कुल साढ़े नौ महीने रहे। गांधी जी के आंदोलन से नील की खेती बंद हुई और इतिहास में यह घटना चंपारण सत्याग्रह के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और बाकी आंदोलनों के लिए नया मानक गढ़ दिया। गांधीजी अपने आत्मकथा में बार-बार इस सत्याग्रह का जिक्र करते हैं।
उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने इतनी बड़ी लड़ाई सत्य के आग्रह के साथ लड़ी जो बाद में देश और विश्व के जनआंदोलनों के लिए एक हथियार साबित हुआ। इस पूरी लड़ाई में गांधी जी ने बिहार से बाहर के नेताओं या कार्यकर्ताओं को नहीं बुलाया। स्थानीय लोगों की मदद से पूरा संघर्ष चला। आम जनता से लेकर शिक्षक, वकील और किसानों ने उनका भरपूर साथ दिया। एक तरफ ब्रिटिश शासन था तो दूसरी तरफ निहत्थे गांधी।
उनका कहना था कि इस पूरे आंदोलन में गांधी जी न सिर्फ नील की खेती के शोषण के खिलाफ लड़े बल्कि स्थानीय स्तर पर व्याप्त छुआछूत और अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता भी फैलाई। गांधी जी ने आंदोलन के समय अलग-अलग रसोई में बनने वाले खाने को एक रसोई में बनवाना शुरू किया। हर जाति-धर्म के लोग गांधी जी के कहने पर एक ही रसोई में बना खाना खाने लगे।
उन्होंने आगे कहा कि इतिहास में चंपारण सत्याग्रह का महत्व इसलिए भी है क्योंकि गांधी जी ने इस आंदोलन में संघर्ष का एक नया हथियार और प्रतिमान गढ़ा। अहिंसात्मक संघर्ष का यह हथियार आज विश्व भर में उपयोगी साबित हो रहा है। अरविंद मोहन कहते हैं कि इस पूरे आंदोलन में गांधी जी ने अपना काम स्वयं किया। आंदोलन का कोई काम गोपनीय नहीं रखा। आंदोलन में शामिल लोगों पर भरोसा किया और स्वयं लोगों के विश्वास पर खरा उतरे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे गांधीवादी समाजसेवी डॉ. एस एन सुब्बाराव ने कहा कि शुरू में आचार्य कृपलानी गांधी जी के अहिंसात्मक संघर्ष से सहमत नहीं थे अतः उन्होंने इतिहास को याद कराते हुए कहा कि गत दो हजार वर्षों के विश्व इतिहास में कहीं भी अहिंसा से विजय नहीं मिली है। फ्रांस से लेकर अधिकांश देशों ने स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र संघर्ष किया है। इसके जवाब में गांधी जी ने कहा कि यह सही है कि इतिहास में ऐसा उदाहरण नहीं मिलता लेकिन यह भी सच है कि अभी इतिहास लिखा जाना बंद नहीं हुआ है। अगला अध्याय लिखा जाना अभी शेष है ।
कार्यक्रम में वरिष्ठ समाजवादी सतपाल ग्रोवर, केंद्रीय गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष रामचंद्र राही, वरिष्ठ गांधीवादी पी एम त्रिपाठी, गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, मंत्री अशोक कुमार व पूर्व मंत्री रमेश शर्मा, मंजुश्री मिश्रा, एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक जगमोहन सिंह राजपूत, वरिष्ठ लेखक एस एन शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह, हरिमोहन मिश्र, शिवेश गर्ग, अटल बिहारी शर्मा, डॉ. राजीव रंजन गिरी, वंदना झा, मनीष चंद्र शुक्ल के अलावा ढेर सारे पत्रकार-लेखक एवं बुद्धिजीवी उपस्थित थे। कार्यक्रम के आरंभ में गांधीवादी सीता बहन ने गांधी जी के प्रिय भजन वैष्णव जन का गायन किया। आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी अभय प्रताप ने सबके प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार प्रेम प्रकाश ने किया।