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सियासत

वीवीपैट पर सवाल करने से रोकने वाले कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

वीवीपैट जादू का खिलौना है, जिसमें सभी को मतिभ्रमित करने की क्षमता है. अब ईमानदार दिखने के लिए यह व्यवस्था है कि अगर कोई व्यक्ति चुनाव के दौरान वीवीपैट की पर्ची में अलग व्यक्ति का नाम आने की बात करता है तो चुनाव अधिकारी कागज़ी कार्रवाई करने के बाद सभी पोलिंग एजेंटों के सामने एक रेंडम-टेस्ट वोट डालेगा, जिसे बाद में मतगणना के वक्त घटा दिया जाएगा. इस वोट से वोटर के दावे की सच्चाई पता चल सकेगी. लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि जिस वोट की पर्ची की शिकायत की गयी उसकी जाँच होने का कोई प्रावधान नहीं है. जबकि ईवीएम और वीवीपैट में क्रमसंख्या से उस वोट को लाक किया जाना चाहिए ताकि उसकी वास्तविक जाँच हो सके. वर्तमान व्यवस्था चुनाव आयोग को असीमित अधिकार देता है जिससे शिकायत की अहमियत ही खत्म हो जाती है. सवाल है कि यदि चुनाव आयोग स्वयं चुनाव में रिगिंग कराने पर उतारू हो जाय तो लोकतंत्र और स्वतंत्र निष्पक्ष चुनाव की धज्जियां उड़ जाएँगी। वैसे भी एक बार नियुक्त चुनाव आयुक्त को उसके कार्यकाल पूर्ण होने के पहले केवल संसद में महाभियोग द्वारा ही हटाया जा सकता है।

चुनाव नियमों की धारा 49 एमए के अनुसार यदि कोई व्यक्ति ईवीएम में विसंगति के संबंध में शिकायत (किसी विशेष पार्टी लिए वोट किया लेकिन किसी अन्य को चला गया) करता है और जांच के बाद यह गलत पाया जाता है तो शिकायतकर्ता पर ‘गलत जानकारी देने के लिए’ आईपीसी की धारा 177 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। इस धारा के तहत छह महीने की जेल या 1,000 रुपये जुमार्ना या दोनों सजा हो सकती है। यहाँ फिर यही सवाल है कि यदि ईवीएम को हैक किया गया हो तो रैंडम टेस्ट वोट में गड़बड़ी कैसे पकड़ी जाएगी? सही गलत का पता तो जिस वोट को चैलेन्ज किया गया है उसी कि जाँच से चल सकता है रैंडम टेस्ट वोट से नहीं। वास्तव में वीवीपैट फुलप्रूफ नहीं है क्योंकि इसमें चैलेन्ज वोट को फ्रीज़ करने की व्यवस्था नहीं है।

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उच्चतम न्यायालय ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर सवाल उठाने पर छह महीने की जेल के कानूनी प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर संज्ञान लेते हुए चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया। एक याचिका में ईवीएम और वीवीपीएटी के बीच विसंगतियों के बारे में शिकायत दर्ज करने को गैरअपराधी कृत्य बनाने की मांग की गई है. उच्चतम न्यायालय के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस दीपक गुप्ता व संजीव खन्ना की पीठ ने यह नोटिस सुनील आहया की याचिका पर दिया है। याचिकाकर्ता सुनील अहया ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि यह धारा मतदाता को वोट डालने के दौरान कोई विसंगति नजर आने पर शिकायत करने से रोकती है। आहया ने यह भी कहा है कि यह प्रावधान साफ और स्वतंत्र चुनाव के लिए मुश्किल खड़ा करता है और कोई भी आसानी से शिकायत नहीं दर्ज करा पायेगा। यह एक नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करता है, जो कि आर्टिकल 19 के तहत मिले उसके मौलिक अधिकार तहत हासिल है।

लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान दो प्रकार की खबरें ही मीडिया पर छाई हुई हैं। पहली नेताओं के विवादित बयान और दूसरी ईवीएम में खराबी से जुड़ी शिकायतें। ईवीएम में गड़बड़ी की बढ़ती शिकायतों से जनता का चुनाव प्रक्रिया पर से विश्वास कम होता जा रहा है। चार चरण के चुनाव में देश के कई इलाको से इसकी शिकायतें भी की जा रही है पर चुनाव नियमों के अनुसार शिकायत गलत साबित होने पर मतदाता को छः माह की जेल या 1000 रुपए का जुर्माना की सजा दी जा सकती है। इसके चलते मतदाता भयभीत होकर शिकायत नहीं करते हैं।

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इसी को देखते हुए मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता सुनील अहिया ने चुनाव आयोग के इन नियम को रद्द करने के लिए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी। सुनवाई के दौरान सुनील अहिया ने कहा कि चुनाव नियमों की धारा 49 एमए के कारण मतदाता को भले ही पूर्ण रूप से विश्वास हो कि उनका मतदान दिये हुए दल के बजाय किसी और को चला गया फिर भी जेल या जुर्माने के डर से वो शिकायत नहीं करते हैं। मतदाताओं का बिना डर ईवीएम में खराबी की शिकायत दर्ज कराना मजबूत चुनाव प्रणाली के लिए जरूरी है।

ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायतें चुनाव के पहले चरण से ही आ रही हैं। पहले चरण के बाद ही काँग्रेस ने गड़बड़ी से जुड़ी 39 शिकायतें निर्वाचन आयोग के सामने दर्ज कराने का दावा किया था। दूसरे चरण के दौरान महाराष्ट्र के सोलापुर के शास्त्री नगर में स्थित मतदान केंद्र 217 से ईवीएम में खराबी की शिकायत आई थी। तीसरे चरण के दौरान भी केरल, यूपी सहित कई अन्य राज्यों से ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायतें आई थीं।चौथे चरण में भी कन्नौज से लेकर बेगूसरे तक और अन्य स्थानों से ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायतें आई हैं।

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गौरतलब है कि वीवीपैट से मतदान होने के बाद 7 सेकंड तक यह वीवीपैट मशीन में नजर आएगा, इसके बाद पर्ची गिर जाएगी। पर्ची गिरने के साथ ही वोटिंग हो जाएगी। किसी तकनीकी कारणवश यदि पर्ची नहीं गिरती है तो वोटिंग नहीं होगी। इस स्थिति में दूसरी वीवीपैट मशीन लगाई जाएगी और शेष लोगों का दोबारा मतदान होगा। किसी प्रत्याशी विशेष को वोट देने के बाद यदि पर्ची किसी दूसरे की निकलती है तो इसकी शिकायत की जा सकेगी। यदि टेस्ट वोट जांच में यह सही पाया गया तो मतदान निरस्त कर दिया जाएगा, लेकिन यदि जांच के बाद गलत पाए जाने पर संबंधित के खिलाफ पुलिस में एफआईआर होगी। पीठासीन अधिकारी को टेस्ट वोट करने के लिए अधिकृत किया गया है। वास्तविक वोट की जाँच न करके टेस्ट वोट करने के प्रावधान में ही सारी कुटिलता छिपी हुई है।

इलाहाबाद के वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.

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