Connect with us

Hi, what are you looking for?

साहित्य

महिला पत्रकार सीत मिश्रा के पहले उपन्यास ‘रूममेट्स’ में मीडिया का निर्मम चेहरा!

‘रूममेट्स’ सीत मिश्रा का लिखा पहला उपन्यास है। ‘रूममेट्स’ को कुछ देर पढ़ा तो अपनी कहानी लगी, थोडा और पढ़ा तो हम सब की कहानी लगी, ख़त्म किया तो लगा यही हमारे समय का सच है। ‘मी टू मुहिम’ के दौर की यह सबसे बड़ी किताब मानी जा सकती है, जिसमें मीडिया का ऐसा निर्मम चेहरा दिखता है, जिसे देखा तो कई लोगों ने होगा, लेकिन लिखने की हिम्मत सीत ही कर सकीं। इसमें सीत की आत्मकथात्मकता छिपी नहीं रह पाती।

दरअसल इसे लिखा ज़रूर सीत मिश्रा ने है, लेकिन रूममेट्स सीत मिश्रा की बपौती नहीं, बल्कि यह उन सबका साझा सच है जो किसी अलसाये से कस्बे से निकलकर चमकीले शहर में अपने होने के मायने ढूंढते हैं, रूममेट्स हमारी आकांक्षाओं, संभावनाओं और उम्मीदों का जिन्दा दस्तावेज़ है। बस सीत मिश्रा इसे कलमबंद कर दिया है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अपने घर से निकलने के बाद सीत जहाँ-जहाँ गयीं उनमें से कोई भी जगह अनजानी या अनदेखी नहीं है। चाहे वो इलाहाबाद का होस्टल हो या दिल्ली की तंग गलियों में खोये हुए मोहल्लों के सीलन भरे बंद कमरे। जहाँ आदमी सिर्फ सांस ले सकता है। अगर सीत ने वहाँ जिंदगी का जश्न मना लिया तो यह उनका अपना हुनर है। सीत की कहानी भले ही जिंदगी से उधार लिए कुछ किरदारों के सहारे आगे बढती है, लेकिन ये किरदार असल होते हुए भी प्रतीकात्मक है। राजलक्ष्मी हमारे अन्दर समाये डर का प्रतीक है। ईश हमारे अन्दर के उस भोलेपन की शक्ल है, जिसे अब हम अमूमन बचपन में ही मार डालते हैं और निभा शायद वो है जो होने से सीत ने इनकार कर दिया और जो हम अक्सर हो जाया करते हैं।

सीत इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की जगमगाती दुनिया में अपनी जगह बनाने दिल्ली आई थी, लेकिन इस जगमगाहट के पीछे छिपे स्याह अंधेरो में उलझकर रह गई। इस क्रम में उसने अपने सपनों की कीमत भी चुकाई और अपनों को खोया भी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस किताब की नायिका सीत एक ऐसी लड़ाई लड़ रही थी जिसे अब हममें से ज्यादातर लोग लड़ाई नहीं बेवकूफी समझते हैं, वो अपने ऊपर लगे एक झूठे आरोप को नज़रअंदाज़ नहीं कर पाई। उसका झूठ से समझौता नहीं हो पाया, ‘यह सब तो होता रहता है…’ कहकर आगे नहीं बढ़ पाई बल्कि वो वहीं ठहरकर पीछे पलटी, ललकारा और पूरे ताकत से उस पत्थर पर अपना सिर दे मारा। जिसके टूटने की गुंजाईश नहीं थी शायद सीत कोई गुंजाइश तलाश भी नहीं रही थी। वो तो बस अपने खून से उस पत्थर का रंग बदल देना चाहती थी ताकि पीछे से आने वाले इस ख़तरे को पहचान ले। शायद इसीलिए खून का रंग लाल होता है।

ऐसा करते ही सीत हमारे चेहरे से वो नकाब नोच लेती है, जिसका नाम हमने कम्प्रोमाइज रखा है और जिसके दम पर हम अपनी लडाईंया बिना लड़े ही जीत रहे हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

ऐसा नहीं है कि सीत की जिंदगी पर प्यार ने दस्तक नहीं दी, लेकिन यह प्यार भी प्रतीकात्मक था, जब उसने ने चाहा कि उसका प्यार उसके मुश्किल समय में उसका हाथ पकड़ ले तो उसने सिर्फ हाथ ही पकड़ा साथ नहीं निभा सका। रब इस भरोसे के साथ कमरे के बाहर गया कि सीत आवाज़ देकर रोक लेगी, आवाज़ आई भी लेकिन दरवाज़े के अन्दर से बंद होने की। सीत ने दरवाज़ा इतनी ज़ोर से बंद किया कि कैफ़ी आज़मी के मशहूर नज़्म उस बंज़र माहौल में भी उम्मीद बोने लगी-

“ज़ोफ़ -ए-इशरत से निकल वहम -ए-नजाकत से निकल,
कैद बन जाए मोहब्बत तो मोहब्बत से निकल,
राह का खार ही क्या गुल भी कुचलना है तुझे
उठ मेरी जान !!!! मेरे साथ ही चलना है तुझे”।।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कहानी के आखिर में सीत का नुकसान हो जाता है, उसे कुछ नहीं मिलता। पाने-खोने के पैमाने पर कहें, तो उसने अपना आत्म सम्मान छोड़कर सब कुछ खो दिया, पाया कुछ नहीं। एक कसक एक कड़वाहट और एक बेचैनी लिए वह लड़ती रही। वो तब भी लड़ रही थी, जब उसके लड़ने से कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था बस यहीं से सीत की लड़ाई विशेष हो जाती है, अनोखी हो जाती है। जो सीत के नाम के मायने भी हैं और जो वो महसूस भी कर रही थीं।

सीत हार गई, लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है। वह झाँसी वाली भी तो हार गई थी, कुछ लड़ाइयो में लड़ने का हौसला जुटा पाना ही जीत होती है। दरअसल किसी गलत चीज़ के खिलाफ लड़ना एक सामूहिक चेतना है और जीत -हार एक नितांत निजी उपलब्धि। और मैंने पहले ही लिखा है, सीत अपनी नहीं, हमारी कहानी कह रही हैं। सीत एक सामूहिक चेतना की खोई हुई प्रतिध्वनि हैं, जब तक हम इसे तलाश नहीं कर लेते तब तक ‘रूममेट्स’ में इसकी गूंज महसूस करते रहना चाहिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement