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सियासत

आम बजट : ‘अच्छे दिनों’ के लिए शुरु हुई आधी-अधूरी कोशिश!

आम बजट लाने के पहले ही वित्तमंत्री अरुण जेटली ने काफी पहले से यह भूमिका बना ली थी कि देश की आर्थिक गाड़ी कितनी मुश्किलों में फंसी हुई है? क्योंकि, यह स्थिति कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के कारनामों के चलते बनी है। एनडीए सरकार को जो आर्थिक हालात विरासत में मिले हैं, वे काफी खस्ता हैं। ऐसे में, रातों-रात आर्थिक गाड़ी सही पटरी पर लाना संभव नहीं है। स्थितियां दुरस्त करने के लिए शुरुआती दौर में बतौर इलाज कुछ कड़वे ‘डोज’ देने पड़ सकते हैं। इस तरह की टिप्पणियां करके वित्तमंत्री ने पहले से ही लोगों को मनोवैज्ञानिक ढंग से तैयार कर दिया था कि वे बजट में ज्यादा लोकप्रिय फैसलों की उम्मीद न पालें। ऐसे में, लोग कयास लगाने लगे थे कि कहीं रेल मंत्री सदानंद गौड़ा की तरह जेटली भी बजट में राहत पैकेज देने के बजाए कड़वे डोज ही देते नजर न आएं। इस आशंका के बावजूद गुरुवार को बजट में वित्तमंत्री ने नए टैक्स प्रावधानों के जरिए मध्यवर्ग को राहत पहुंचाने की कोशिश की है। उन्होंने पहले ही बजट में लोकसभा चुनाव के समय किए गए प्रमुख वायदों को भी कुछ न कुछ निभाने की रस्म अदायगी जरूर की है। इसके जरिए उन्होंने यह आभास कराने की कोशिश की है कि चुनावी दौर में ‘अच्छे दिनों’ का वायदा महज एक राजनीतिक झांसाभर नहीं है।

आम बजट लाने के पहले ही वित्तमंत्री अरुण जेटली ने काफी पहले से यह भूमिका बना ली थी कि देश की आर्थिक गाड़ी कितनी मुश्किलों में फंसी हुई है? क्योंकि, यह स्थिति कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के कारनामों के चलते बनी है। एनडीए सरकार को जो आर्थिक हालात विरासत में मिले हैं, वे काफी खस्ता हैं। ऐसे में, रातों-रात आर्थिक गाड़ी सही पटरी पर लाना संभव नहीं है। स्थितियां दुरस्त करने के लिए शुरुआती दौर में बतौर इलाज कुछ कड़वे ‘डोज’ देने पड़ सकते हैं। इस तरह की टिप्पणियां करके वित्तमंत्री ने पहले से ही लोगों को मनोवैज्ञानिक ढंग से तैयार कर दिया था कि वे बजट में ज्यादा लोकप्रिय फैसलों की उम्मीद न पालें। ऐसे में, लोग कयास लगाने लगे थे कि कहीं रेल मंत्री सदानंद गौड़ा की तरह जेटली भी बजट में राहत पैकेज देने के बजाए कड़वे डोज ही देते नजर न आएं। इस आशंका के बावजूद गुरुवार को बजट में वित्तमंत्री ने नए टैक्स प्रावधानों के जरिए मध्यवर्ग को राहत पहुंचाने की कोशिश की है। उन्होंने पहले ही बजट में लोकसभा चुनाव के समय किए गए प्रमुख वायदों को भी कुछ न कुछ निभाने की रस्म अदायगी जरूर की है। इसके जरिए उन्होंने यह आभास कराने की कोशिश की है कि चुनावी दौर में ‘अच्छे दिनों’ का वायदा महज एक राजनीतिक झांसाभर नहीं है।

पिछले कई सालों से लोग लगातार यह उम्मीद करते रहे हैं कि मध्यवर्ग को आयकर जैसे कर प्रावधानों में वित्तमंत्री कुछ उदारता जरूर बरतेंगे। लेकिन, यूपीए सरकार के वित्तमंत्री पी. चिदंबरम कई सालों तक लोगों को ठेंगा दिखाते नजर आए। इस बारे में वे तमाम मुश्किलों का जिक्र करते रहे हैं। वे तो कई बार यह अहसान-सा जताते थे कि तमाम वित्तीय मुश्किलों के बावजूद सरकार कर दाताओं पर और बोझ नहीं बढ़ा रही है। यही सबसे बड़ी ‘राहत’ समझी जाए। उस दौर में प्रमुख विपक्षी पार्टी की हैसियत से भाजपा के दिग्गज नेता इन मुद्दों पर जबरदस्त विरोध दर्ज कराते थे। अब संसद में भाजपा की भूमिका बदल गई है। वह सत्ता में है, तो कई मुद्दों पर उसकी बोली और तेवर भी बदले-बदले दिखाई पड़े।

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वित्तमंत्री ने अब ढाई लाख रुपए तक की आमदनी करने वालों को राहत दे दी है। उन्हें कर नहीं देना पड़ेगा। जबकि, वरिष्ठ नागरिकों को तीन लाख रुपए तक की आमदनी पर यह छूट रहेगी। आयकर की धारा-80 सी के तहत अब कर छूट एक लाख के निवेश के बजाए इसकी सीमा डेढ़ लाख रुपए तक बढ़ा दी गई है। घर के लिए कर्ज लेने वालों को भी राहत देने के लिए प्रावधान किया गया है। इसी तरह से कई और कर प्रावधानों के जरिए वित्तमंत्री ने तेल, साबुन, मोबाइल, कंप्यूटर पुर्जे आदि में भी राहत देने की कोशिश की है। नए प्रावधानों से यह सामान कुछ सस्ते हो जाएंगे। लेकिन, जो उपभोक्ता अपने रहन-सहन के लिए कुछ ज्यादा बजट खर्च करते हैं, उन्हें वित्त मंत्री के नए प्रावधानों की वजह से कुछ और रकम खर्च करनी पड़ सकती है। क्योंकि, रेडीमेड गारमेंट और कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स में महंगाई का तड़का लग गया है। क्योंकि, टैक्स दरें बढ़ी हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उन्होंने अपने चुनाव क्षेत्र में ऐलान किया था कि उनकी सरकार गंगा की साफ-सफाई का संकल्प पूरा करके रहेगी। इसके लिए जो भी जरूरी होगा, उसका इंतजाम सरकार करेगी। वाराणसी के बुनकरों के हालात सुधारने का भी वायदा किया गया था। वित्तमंत्री ने मोदी के इन वायदों को ध्यान में रखते हुए इन दोनों मदों के लिए अपना खजाना खोल दिया है। बुनकरों की मदद के लिए इस साल 50 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। जबकि, गंगा की स्वच्छता और सफाई के लिए ‘नमामि गंगे’ परियोजना के लिए 2037 करोड़ रुपए के फंड का प्रस्ताव है। इतना ही नहीं बनारस के घाटों को ठीक करने के लिए 10 करोड़ रुपए का प्रावधान अलग से किया गया है। गंगा की साफ-सफाई का महकमा केंद्रीय मंत्री उमा भारती संभाल रही हैं। वित्तमंत्री की बजट उदारता से वे संसद के अंदर काफी गदगद नजर आईं। मीडिया से उन्होंने कहा कि गंगा मइया की सेवा के लिए यदि जरूरत पड़ी, तो वे वित्तमंत्री से अतिरिक्त बजट भी मांग लेंगी। लेकिन सफाई अभियान में किसी तरह की कमी नहीं आने दी जाएगी।

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सरकार ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा विस्तार के तमाम वायदे किए थे। लेकिन, बजट प्रस्तावों में इनकी झलक नहीं दिखाई पड़ी। सुदूर क्षेत्रों में दो विशिष्ट विश्वविद्यालयों की शुरुआत के लिए सरकार ने इस साल 200 करोड़ रुपए के बजट का प्रस्ताव किया है। लेकिन, इतना ही बजट नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी सियासी योजना, सरदार पटेल की प्रतिमा (स्टेच्यू आफ यूनिटी) के निर्माण के लिए भी दिया है। यह बजट गुजरात सरकार को दिया जाएगा। क्योंकि, इस परियोजना का काम उसी के जिम्मे है। उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव अभियान के पहले ही गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी ने इस परियोजना का शिलान्यास किया था। कन्या भ्रूण हत्या जैसा सामाजिक कलंक रोकने के लिए सरकार ने ‘बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ’ संकल्प जताया है। इस योजना के लिए वित्तमंत्री ने 100 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। हैरान करने वाली बात यह है कि इतने महत्वपूर्ण सामाजिक जागरूकता वाले कार्यक्रम के लिए महज 100 करोड़ रुपए की व्यवस्था की जा रही है। जबकि, सरदार पटेल की प्रतिमा के लिए इससे दूनी रकम का इंतजाम कर दिया गया है। जाहिर है कि यह उदारता वित्तमंत्री ने इसीलिए बरती है, क्योंकि यह परियोजना सीधे तौर पर प्रधानमंत्री मोदी के सियासी एजेंडे का हिस्सा है।

रक्षा क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए सरकार काफी उत्सुक है। ऐसे में, एफडीआई की सीमा 26 से बढ़ाकर 49 प्रतिशत कर दी गई है। बीमा क्षेत्र में भी एफडीआई का प्रावधान 49 प्रतिशत का कर दिया गया है। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि रक्षा क्षेत्र में 26 प्रतिशत की एफडीआई प्रस्ताव से एक भी बड़ा विदेशी निवेशक इस क्षेत्र में नहीं आया है। ऐसे में, व्यवहारिक दृष्टि अपना कर एफडीआई की हिस्सेदारी बढ़ा दी गई है। माना जा रहा है कि इस प्रावधान से रक्षा उत्पादन क्षेत्र में विदेशी निवेशक काफी आकर्षक होंगे। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौर में प्रमुख नदियों को जोड़ने की एक महत्वकांक्षी परियोजना तैयार हुई थी। कहा गया था कि नदियां जोड़ने से देश के बडेÞ हिस्से में बाढ़ और अकाल की समस्या का निदान हो जाएगा। लेकिन, देश के तमाम पर्यावरणविदों ने इस परियोजना को लेकर ऐतराज किया था। कहा था कि इस योजना से फायदे की जगह बड़ा नुकसान हो सकता है। इस विवाद के चलते यूपीए सरकार ने इस परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। लेकिन, मोदी सरकार ने फिर से इस परियोजना को आगे बढ़ाने की पहल शुरू की है। वित्तमंत्री ने इस परियोजना की अध्ययन रिपोर्ट तैयार करने के लिए इस बार 100 करोड़ रुपए का प्रावधान कर दिया है।

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पूर्वोत्तर राज्यों के साथ जम्मू-कश्मीर को भी कई परियोजनाओं में बजट देने का प्रावधान है। कश्मीर से निर्वासित पंडितों के पुनर्वास का मुद्दा संघ परिवार के लोग दशकों से उठाते रहे हैं। अपने पहले बजट में ही मोदी सरकार ने कश्मीरी शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए 500 करोड़ रुपए का प्रावधान कर दिया है। हालांकि, इस मद में कश्मीरी पंडितों का सीधे तौर पर जिक्र नहीं किया गया है। लेकिन, इसे समझा जा सकता है कि सरकार का उद्देश्य कश्मीरी पंडितों के कल्याण का ही है। इस मुद्दे पर जम्मू-कश्मीर में जमकर सियासत होने के भी आसार माने जा रहे हैं। इलाहाबाद से हल्दिया (पश्चिम बंगाल) तक गंगा में राष्ट्रीय जल मार्ग परियोजना का प्रावधान है। छह साल के अंदर इसका विकास किया जाना है। इसके लिए वित्तमंत्री ने 4200 करोड़ रुपए की भारी भरकम रकम का प्रावधान किया है।

किसानों को 7 प्रतिशत की रियायती दर पर कर्ज देने का प्रावधान है। प्रधानमंत्री ने चुनावी वायदों में 100 स्मार्ट शहरों के निर्माण की बात की थी। अब इन शहरों के निर्माण के लिए वित्तमंत्री ने 7060 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। यूपीए सरकार के दौर में तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने सरकारी क्षेत्रों के बैंकों में विनिवेश की मंशा जाहिर की थी, तो भाजपा के नेताओं ने बड़ा विरोध किया था। देश के सभी बड़े मजदूर संघों ने सरकार को विरोध का अल्टीमेटम देना शुरू किया था। लेकिन, पहले बजट में ही मोदी सरकार ने सरकारी बैंकों के शेयर बेचने का प्रस्ताव कर दिया है। हालांकि, यह नहीं बताया गया कि सरकार किस स्तर तक बैंकों के विनिवेश का कदम उठाने वाली है। इस तरह से जहां एक तरफ मोदी सरकार ने पहले बजट में ही आम लोगों को कुछ राहत प्रावधानों से खुश करने की कोशिश की है, वहीं आर्थिक सुधारों की आधी-अधूरी पहल से कॉरपोरेट सेक्टर को भी यह संदेश दे दिया है कि सरकार आर्थिक सुधारों को ठेंगा दिखाने वाली नहीं है। यानी, वोटर भी खुश रहें और कॉरपोरेट सेक्टर भी बड़ी उम्मीदों की आस लगाए रहे। लेकिन, सियासी बाजीगरी का यह संतुलन किस हद तक मोदी सरकार करने में सफल रहती है, यह तो आने वाले दिनों में ही पता चल पाएगा?

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लेखक वीरेंद्र सेंगर डीएलए (दिल्ली) के संपादक हैं। इनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है।

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