एक समय भारत में ट्विटर से बड़ा बनने का सपना देखने वाली सोशल मीडिया कंपनी शेयरचैट – अपने मुक़ाम तक तो नहीं पहुँच पाई, लेकिन कंपनी ने अपने कर्मचारियों को निकालने में ट्विटर की नक़ल ज़रूर की.
रविवार और सोमवार की दरमियानी रात कंपनी ने अचानक कर्मचारियों के लैपटॉप और मोबाइल फ़ोन लॉक कर दिये. उनके जीमेल और स्लैक अकाउंट बंद कर दिये गए. साथ ही सिस्टम में मौजूद सारी दफ़्तर संबंधी और निजी जानकारियाँ या काग़ज़ात कंपनी ने बिना सूचना के ज़ब्त कर लिये.
इसके बाद, सोमवार सुबह (क़रीब साढ़े आठ बजे) कंपनी ने कर्मचारियों को मेल किया कि उनका वर्क कॉन्ट्रैक्ट तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया गया है और जो फ़ोन या लैपटॉप उनके पास हैं, वो उन्हें जमा करा सकते हैं या निजी इस्तेमाल के लिए अपने पास रख भी सकते हैं.
छटनी से प्रभावित, कंपनी के एक कर्मचारी ने बताया कि सुबह दस बजे तक उनकी टीम के सदस्यों के फ़ोन आते रहे, लोग समझ रहे थे कि किसी तकनीकी ख़ामी के चलते लैपटॉप लॉक हो गया है, लेकिन पर्सनल मेल पर भेजी गई सूचना ने जल्द ही तस्वीर साफ़ कर दी.
उन्होंने बताया, “लोग रविवार रात तक काम कर रहे थे, कुछ लोग देर रात की शिफ़्ट करके सोए थे, कुछ ने सोमवार का कैलेंडर रात 12 बजे देखा था, और सुबह सब कुछ बंद हो गया. कंपनी ने बड़े दावे से दिसंबर के टाउनहॉल (मासिक बैठक) में कहा था कि अगले छह महीने छटनी का कोई प्रश्न ही नहीं है और लोग विश्वास कर रहे थे.”
कंपनी के मालिक अंकुश सचदेवा के मुताबिक़, शेयरचैट की कुल वर्क-फ़ोर्स का क़रीब बीस प्रतिशत वर्ग इस छटनी से प्रभावित हुआ है. लेकिन निकाले गए लोगों के मुताबिक़, ये संख्या इससे कहीं ज़्यादा है.
कुछ जानकार कंपनी के इस फ़ैसले को सरकार की नीति के विरुद्ध भी बता रहे हैं क्योंकि महीना भर पहले ही केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव ने छटनी से जुड़े एक सवाल के जवाब में राज्यसभा में कहा था कि कोई भी छटनी अगर आईडी एक्ट को ध्यान में रखे बिना की जाती है तो उसे ग़ैर-क़ानूनी समझा जायेगा.
क़रीब 700 लोग निकाले गए
सूत्रों के अनुसार, शेयरचैट के मुख्य स्लैक ग्रुप में रविवार शाम तक जहाँ 2300 से ज़्यादा लोग मौजूद थे, वहीं ये संख्या सोमवार सुबह घटकर 1623 रह गई. यानी छटनी से प्रभावित लोगों की कुल संख्या 700 के क़रीब है.
इसी स्लैक ग्रुप में कंपनी के मालिक अंकुश सचदेवा ने, निकाले गये कर्मचारियों को मेल किये जाने के बाद, एक संदेश डाला.
उन्होंने लिखा, “जो बचे हैं, वो ही इस सफ़र में अब हमारे साथ हैं. पैसा बचाने की क़वायद में हमने ये छटनी की है, ताकि आने वाले समय में और लोगों को ना निकालना पड़े.” इसी मैसेज में उन्होंने लोगों का मनोबल बढ़ाने के लिए लिखा कि कंपनी वर्ष 2023 में क्या झंडे खड़े करने वाली है.
अंकुश सचदेवा ने इससे पहले, दिसंबर 2022 में अपनी कंपनी के एक अन्य ऐप – जीत-11 – को बंद करने की घोषणा की थी जिसकी वजह से सौ से ज़्यादा लोगों की नौकरी गई थी. इसके साथ ही उन्होंने 2022 की अंतिम तिमाही में क़रीब सौ लोगों को परफ़ॉर्मेंस के नाम पर शेयरचैट से बाहर का रास्ता दिखाया था.
इसके बाद कंपनी में अस्थिरता को लेकर चर्चाएँ होने लगीं, तो उन्होंने दिसंबर में एक बड़ी मीटिंग बुलाकर ये दावा किया उनके पास यथास्थिति बनाये रखने के लिए 2024 तक का फंड है, और वे छटनी के बारे में बिल्कुल भी विचार नहीं कर रहे हैं.
लेकिन सोमवार (16 जनवरी) को उनका ये दावा झूठा साबित हुआ. इसे लेकर कंपनी के पूर्व-कर्मचारियों और छटनी से प्रभावित हुए लोगों ने सोशल मीडिया पर जगह-जगह कंपनी के फ़ाउंडर की ‘अंकुश झूठदेवा’ कहकर टांग खिंचाई भी की.
अंकुश सचदेवा ने पिछले तीन वर्षों में, ख़ासकर चीनी ऐप्स पर बैन लगाये जाने के बाद मार्केट से काफ़ी फंड उठाया. उन्होंने दावा किया कि वो चीनी ऐप्स की जगह भरेंगे और सोशल मीडिया के क्षेत्र में पश्चिमी देशों के एकाधिकार को चुनौती देंगे.
उनके दावे हमेशा बड़े थे जिन्हें देखते हुए गूगल, टाइम्स ग्रुप, टाइगर ग्लोबल और ट्विटर जैसी कंपनियों ने उनके मॉडल में निवेश किया, लेकिन वे एक दिन के लिए भी कंपनी को मुनाफ़े का सौदा नहीं बना पाये.
Inc.4 की रिपोर्ट के अनुसार, अंकुश सचदेवा की कंपनी के कुल जमा घाटे, उसके मुनाफ़े से हमेशा ही कई गुना अधिक रहे. वित्त वर्ष 2022 में कंपनी ने क़रीब ढाई हज़ार करोड़ का घाटा दर्ज किया जो 2021 से लगभग दोगुना था.
यही वजह रही कि सोमवार को कंपनी ने अपने बयान में कहा कि उन्होंने सोशल मीडिया मार्केट से कहीं ज़्यादा की उम्मीद लगाई थी, पर अनुमान के मुताबिक़ नतीजे नहीं मिले.
मैनेजमेंट में मतभेद
अंकुश सचदेवा दरअसल एक हारी हुई जंग के बीच, सिर्फ़ अपनी जगह बचाने के लिए जूझ रहे हैं.
छटनी से प्रभावित, जीएम स्तर के एक वरिष्ठ कर्मचारी ने नाम ना देने की शर्त पर बताया कि कंपनी ने 2023 का जो प्लान तैयार किया है, वो 2022 की तुलना में बहुत सिकुड़ चुका है. मिडिल ऑर्डर का मैनेजमेंट कंपनी में लगभग आधा या उससे कम बचा है. जूनियर डायरेक्टर स्तर के लोगों से सीधे काम सँभालने की उम्मीद है. निचले क्रम की वर्क फ़ोर्स भी कम हुई है, पर वहाँ चोट फिर भी कम पहुँचाई गई है, ताकि कम से कम खर्च में कंपनी को चालू रखा जा सके.
कंपनी के इस फ़ैसले से डरे हुए कर्मचारियों ने सोमवार की बैठक में कंपनी के फ़ाउंडर से सीधे सवाल किये. उन्होंने अपने भविष्य को लेकर उनसे सवाल पूछे और निकाले गये लोगों के चयन का आधार पूछा तो अंकुश ने फिर कहा, “कंपनी का भविष्य सुनहरा है और जिन्हें निकाला गया है, वो उम्मीदों के मुताबिक़ नतीजे नहीं ला सके, इसलिए यह निर्णय लेना पड़ा.”
लेकिन एक अन्य मीटिंग में कंटेंट विभाग के सीनियर डायरेक्टर शशांक शेखर ने अंकुश की बात को काट दिया. उन्होंने कहा कि परफ़ॉर्मेंस छटनी का आधार नहीं था. किन्हें निकाला जाना है, उन नामों का चयन फ़ाइनेंस टीम ने किया और उसी लिस्ट के मुताबिक़ लोगों को निकाला गया है. उन्होंने टीम के सदस्यों से आग्रह भी किया कि वो निकाले गये लोगों को बतायें कि परफ़ॉर्मेंस वजह नहीं थी.
शशांक शेखर एक समय में सर्किल नामक ऐप के फाउंडर थे जहाँ स्थानीय (हाइपर-लोकल) ख़बरें देखने को मिलती थीं. यह ऐप स्थानीय रिपोर्टरों के साथ झगड़ों को लेकर भी काफ़ी चर्चा में रहा और कुछ ही वर्षों में बर्बाद हो गया जिसे बाद में अंकुश की कंपनी ने ख़रीदा और चलाने की कोशिश की, पर यह कोशिश भी नाकाम रही. सर्किल ऐप के पूरी तरह बंद होने के बाद, शेयरचैट ने कुछ कर्मचारियों को तुरंत, तो बाकियों को छटनी की ताज़ा प्रक्रिया में निकाल दिया है.
आगे क्या?
कंपनी के सूत्रों का मानना है कि शशांक शेखर से भी जल्द ही उनकी ज़िम्मेदारियाँ ली जा सकती हैं.
उनके विभाग में काम कर चुके और छटनी से प्रभावित एक कर्मचारी ने बताया कि शशांक पिछली दो तिमाही से सोशल मीडिया और शॉर्ट वीडियो मॉडल को लेकर उदासीन रहे हैं, कुछ मीटिंगों में उन्होंने अनौपचारिक रूप से शेयरचैट में कंटेंट के ज़रिये कंपनी को मुनाफ़े में लेकर आने पर आशंकायें भी ज़ाहिर कीं, साथ ही शेयरचैट पर हाइपर-लोकल कंटेंट को लोकप्रिय बनाने का उनका मॉडल भी बुरी तरह पिट गया, और इसने उनकी राह को काफ़ी मुश्किल बना दिया है.
बताया गया कि कुछ महीने पहले कंपनी के को-फाउंडर फ़रीद एहसान ने एक टाउनहॉल मीटिंग में यह कहा था कि चीनी ऐप हेलो ने शेयरचैट को पूरी तरह बर्बाद कर दिया था, ऐप बंद होने की कगार पर था, तभी मोदी सरकार ने चीनी ऐप्स बैन करके हमें एक मौक़ा दिया जिसके बाद कंपनी को काफ़ी फंड मिला, जिसका एक बड़ा हिस्सा हमने घाटे में चल रहीं कुछ कंपनियों को ख़रीदने और मार्केट को क़ब्ज़ाने पर खर्च कर दिया, इसलिए बाक़ी पैसे को खर्च करने के लिए हमें सही रणनीति बनानी होगी.
कंपनी के सूत्रों के अनुसार, इसी के चलते शेयरचैट ने 2022 में पैसा बचाने के लिए कई बड़े निर्णय लिये जिनमें क्रिएटर्स को दिये जाने वाले गिफ़्ट कम कर दिये गए, मीडिया संस्थानों से पैसा देकर कंटेंट ख़रीदने में कमी की गई, हर चार महीने में होने वाले इवेंट नहीं किये गए, कर्मचारियों को मिलने वाली सहूलियतों में कटौती हुई, पर इन सबके बीच कंपनी में दूसरी नामी कंपनियों से भारी सेलरी पैकेज पर लोगों को लाने का सिलसिला जारी रहा, जिनमें से कई लोग आंतरिक स्थिति देखते हुए कुछ ही महीनों में कंपनी को छोड़ गये.
मिसाल के तौर पर, कंपनी में महज़ दो साल के भीतर तीन प्रॉडक्ट हेड नौकरी छोड़कर जा चुके हैं, जिसकी वजह से शेयरचैट ऐप के इंटरफ़ेस में कंपनी बीते वर्षों में उपभोक्ताओं के लिए कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं कर पायी है, जिसका असर पिछले कई महीने से शेयरचैट के एक्टिव यूज़र्स की गिरती संख्या के रूप में दिखाई दे रहा है.