भास्कर गुहा नियोगी-
पति को बस आक्सीजन चाहिए था पर न मिलने से सांस बंद हो गई : अंजलि
बनारस। जिस सरकार को हम-आप चुनते हैं वो सरकार हमारे सारे विकल्पों पर विकल्पहीन क्यों हो जाती है? कोरोना काल लोगों के लिए कष्टकाल बन गया। जानलेवा कोरोना से कही ज्यादा जानलेवा ये तंत्र साबित हो रहा है जो वक्त पर बीमार को न्यूनतम चिकित्सा सुविधा भी देने में असमर्थ है। जिनके अपने लापरवाही की मौत मर गए उनकी व्यथा को भी यह सिस्टम नहीं सुनता। न्याय के लिए हजारों अर्जियां सरकार के दर पर दस्तक दे रही है लेकिन सबकुछ अनसुना। अनसुने आंसू, अनसुना दुःख, पूछ रहे हैं सरकार क्यों और किसलिए?
प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से बार-बार न्याय की मांग करने वाली आज अखबार के समूह निदेशक शाश्वत विक्रम गुप्त की जीवन संगिनी अंजलि गुप्ता का कहना है कि सरकार छलावा है। उन्हें तो बस आक्सीजन की जरूरत थी लेकिन इन लोगों ने सांस ही बंद कर दिया। बार-बार प्रधानमंत्री को न्याय के लिए पत्र लिख रही अंजलि का कहना है जब प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में ही लोगों की नहीं सुनी जा रही है तो बाकी जगह….?
पति के असामयिक मृत्यु से दुखी अंजलि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई चाहती हैं।
कहने की जरूरत नहीं कोराना काल में निजी अस्पतालों ने लोगों की जान की कीमत पर मुनाफे का खेल खेला है। शिकायतों का ढेर है और जांच के नाम पर क्लीन चिट। क्या सारी शिकायतें झूठी और फर्जी हैं? या फिर तय-तमाम का फार्मूला ज्यादा फिट।
इस तरह की खबरों के लिए मुख्य धारा की मीडिया का मौन रहता है जो बताता है कि अतिरिक्त दबाव और मीडिया प्रबंधन की सरकारी कोशिशों के चलते इस तरह की खबरें दम तोड रही हैं। जिस अखबार ने जंगे आजादी की लड़ाई लड़ी वो अपने ही समाचार पत्र समूह के निदेशक के असामयिक मृत्यु पर उनकी जीवन संगिनी के मुखर और गंभीर आरोपों पर खामोश क्यों है? विज्ञापन बोध या कोई और फायदा क्या इतना जरूरी हो चला है कि सच और संवेदना का गला घोट दिया जाए?
पति के असामयिक मृत्यु से दुखी अंजलि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई चाहती हैं। पूरे प्रकरण पर उन्होंने हमसे मोबाइल पर बात करते हुए कहा- मुझे सरकार से धोखा मिला है।
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वाराणसी से भाष्कर गुहा नियोगी की रिपोर्ट.
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