Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

शेषजी, मुझे आपका इंतजार है… आइए न प्लीज : प्रोफेसर जेएस राजपूत

Prof. JS Rajput-

मैं आज भी शेष जी की ही प्रतीक्षा कर रहा हूँ. उनका अनेक बार सुना वह वाक्य फिर सुनना चाहता हूँ: “डा.साहब, क्या आप फ्री हैं, मैं आ जाऊं, कुछ सत्संग होगा, अच्छा लगेगा!”.

मैं भी कहना चाहता हूँ: मैं घर पर हूँ आपकी प्रतीक्षा है, आ जाइए प्लीज, मुरमुरे भी तैयार हैं!

Advertisement. Scroll to continue reading.

जीवन को सात दशकों से अधिक देख चुका हूँ, जानता हूँ कि यह वाक्य अब कभी सुनाई नहीं देगा, मगर इच्छा इतनी तीव्र क्यों है?

आपके परिवार से बात करने का साहस नहीं जुटा पा रहा हूँ. वे लोग जो आपको अनेक दशकों से जानते रहे हैं, कितने बड़े सदमें हैं!

Advertisement. Scroll to continue reading.

मुझे ग्रेटर नॉएडा में रहते हुए ग्यारह वर्ष पूरे हो रहे हैं, २०१० में वह मई का ही महीना था, हम अपने मकान में पहली बार रहने आये थे, शेष जी वहां उपस्थित थे, गैस के सिलिंडर के लिए जैसे ही चर्चा की गई, शेष जी बोले कागज़ मुझे दीजये, उन्होंने फोन किया, सिलिंडर एक घंटे में आ गया, हमें आश्चर्य हुआ, बहुत अच्छा भी लगा था.

२ April २०२१ को, ग्यारह साल बाद, मैंने फ़ोन किया- मेरे घर में बिजली नहीं है, कंपनी में कोई सुनता नहीं है, हमारा इलेक्ट्रीशियन कोरोना से पीड़ित है. शेष जी बीच में बोले पड़े- मैं अभी किसी को भेजता हूँ, रात में आपने क्यों नहीं बताया.
थोड़ी देर में इलेक्ट्रीशियन हमारे दरवाजे पर था.

Advertisement. Scroll to continue reading.

एक दिन पहले मैंने कहा मुझे कई लोगों का कोरोना टेस्ट करना है, घर पर आने के लिए प्रति व्यक्ति दो हजार रुपये मांगे जा रहे हैं, वे बोले- आप यह सब खुद क्यों करते हैं, मैं प्रबंध कर रहा हूँ, वह नियत फीस लेगा, सही रसीद देगा. ऐसा ही हुआ. यह सब तब हो रहा था जब उनकी अस्वस्थता का पता उन्हें चल चूका होगा, मुझे नहीं बताया था, मुझे तो पांच मई को ही पता लगा कि वे अस्पताल में हैं. उस अस्पताल में जहा हम दोनो नें पांच मार्च को पहला और २० अप्रैल को दूसरा कोरोना का टीका साथ-साथ लगवाया था. पहलीबार हम एक गाड़ी में गए थे, दूसरी बार १९ April को ही उन्होंने कह दिया चूँकि मैं कलकत्ते से लौटा हूँ, अतः हम कल अलग अलग गाडी से चलेंगे, मैं आपके पास आऊंगा मगर अपनी गाड़ी में ही रहूँगा! ऐसा ही हुआ, २३ April को हमारी बात हुई, इस बार भी टीके का कोई विपरीत प्रभाव हम दोनों में किसी पर नहीं पड़ा था, यह संतोष का विषय था.

उन्हें मेरी चिंता थी, और यह ऐसा वह ग्यारह वर्ष करते रहे. उन्होंने मुझे एक पीढ़ी आगे मानकर मेरी देखभाल की. मैंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में तीन वर्ष भौतिकी विभाग में प्रवक्ता के पद पर अध्यापन और शोध किया था. अनेक महानुभाव हम दोनों के परिचित निकले जो उस विश्वविद्यालय और पूर्वांचल से जुड़े थे. शेष जी ने भी महाविद्यालय में अध्यापन से प्रारम्भ किया था, कहीं न कहीं वह भी हमारे जुड़ाव का एक माध्यम था. वे अध्यापन से पत्रकारिता में आये, मैं भौतिकी के अध्यापन और शोध से दूर होकर शिक्षा तथा शैक्षणिक प्रशासन में विस्थापित हुआ. संतुष्ट हम दोनों ही थे.

Advertisement. Scroll to continue reading.

मैंने प्रारम्भ से उनके अन्दर एक अत्यंत सराहनीय प्रवृत्ति पहचानी थी: दूसरों के लिए कुछ करने की तत्परता! परिचित या अपरिचित, सहायता करने के किसी भी अवसर को वे कभी भी हाथ से से नहीं जाने देते थे, पूरे जी-जान से उसमे लग जाते थे. कुछ वर्ष मेरे पड़ोस में पहले एक राज-मिस्त्री के बच्चे को सांप ने काट लिया. माता पिता सबसे नजदीकी अस्पताल में गए, उन्होंने तीन दिन रखा, डेढ़ लाख का बिल बनाया! मुझे जब बिलखते परिवार का पता चला, तो मैंने शेष जी को फोन किया. मैं और कुछ कर भी नहीं सकता था. वे लग गए, समाधान निकले. मगर मुझे धीरे से यह भी बता गए कि देश में जिन लोगों के पास पैसा सत्ता की कृपा से बहकर आता है, वे तो नहीं जानते हैं कि उसका क्या करें, मगर राह दिखाने वाले उन्हें शिक्षा संस्थानों और अस्पतालों या मेडिकल कालेज खोलने के सुनहरे मार्ग पर आगे बढ़ा देते हैं.

शेष जी का देश की राजनीति का ही नहीं, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति का विवेचन और विश्लेषण अद्भुत होता था, उनका अपना अध्ययन, समझ की गहराई और निगाह की ईमानदारी सभी को प्रभावित कर जाते थे. ऐसे अनेक अवसरों पर मुझे कई बार लगता था कि कितना अच्छा होता हम दोनों ने किसी विश्वविद्यालय में साथ साथ अध्ययन और अध्यापन किया होता! वे अपने गाँव, क्षेत्र और आँचल से लगातार गहराई से जुड़े रहे, वहां हो रहे परिवर्तनों का जमीनी अध्ययन भी करते रहे. उनका जुडाव संयुक्त परिवार की आत्मीयता को आज के समय भी अपरिवर्तनीय स्वरुप में ही दर्शाता था.

Advertisement. Scroll to continue reading.

अपने बच्चों की उपलब्धियों से वे गौरवान्वित थे, स्वयं से उनका अत्यंत संतोषपूर्ण संवाद था. अनेक प्रकार के सम्मान, पुरुस्कार और पद उनके समक्ष प्रस्तुत किये जाते रहे, वे लगातार अस्वीकार करते रहे. कई बार ऐसा मेरी उपस्थिति में भी हुआ. वे चाहते थे कि लोग उन्हें जैसा जानते रहे हैं, वह उनकी उपलब्धि है, उन्हें अपने मूल्यों और मान्यताओं से किसी को भी किसी भी कारण दूर नहीं जाना चाहिए. मेरे लिए वे कल्पनाएँ करते थे, आप जब इस पद पर होंगे, तब मैं अथिति बनकर आऊंगा, और हम तब क्या क्या करेंगे. ऐसे हास-परिहास के समय पारिवारिकता और अपनेपन का जो आनंद प्रवाहित होता था, वह शेष जी ही पैदा कर सकते थे.

शेष जी इस तथ्य के सर्व- मान्य उदाहरण थे कि किसी खेमें में बांटकर या पूर्वाग्रह से इंगित होकर संचार माध्यमों के लोग अपना कर्तव्य निर्वाह ईमानदारी से कर ही नहीं सकते हैं. उनकी मित्रता का विस्तार किसी प्रकार की सीमाओं में बंधा नहीं था. मैं देख रहा हूँ कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर उनके वरिष्ठ सहयोगिओं और प्रशिक्षु युवाओं तक के जो संवेदना सन्देश आ रहे हैं, वे निर्बाध नैसर्गिक प्रवाह बन रहे हैं. मैं भी इस समय अत्यंत विचलित हूँ. शेष जी के चित्र की ओर देख भी नहीं पा रहा हूँ. चाहता हूँ कि वह आवाज कहीं से आ जाय: डा. साहब क्या मैं आ जाऊं? अब तो उत्तर एक ही हो सकता है: आप वहीं रुकिए, मुझे भी आना है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

जगमोहन सिंह राजपूत
मई ८, २०२१

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement