समाजवादी पार्टी में इस समय सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव पार्टी को फिर से खड़ा करने में लगे हैं। वहीं पार्टी के दिग्गज नेता अपने बयानों से माहौल खराब करने में लगे हैं। नेताओं के स्वार्थ के चलते समाजवादी पार्टी टुकड़ों में बंटी नजर आ रही है। राम गोपाल यादव, नरेश अग्रवाल, आजम खां जैसे नेता अलग-थलग नजर आ रहे हैं। तो दूसरी तरफ मुलायम, शिवपाल और अखिलेश यादव मिलकर मिलकर पार्टी को बचाने के लिये नई जुगत तलाश रहे हैं।
लोकसभा चुनाव के बाद मुलायम भी शिवपाल यादव पर अधिक विश्वास करने लगे हैं। इसका कारण है शिवपाल की कार्यकर्ताओं के बीच मजबूत पैठ। वह हर दम कार्यकर्ताओं से जुड़े रहने की कोशिश में रहते हैं। जहां एक तरफ सपा के बड़े नेताओं और मंत्रियों से मुलाकात करने में आम आदमी को छीकें आ जाती हैं, वहीं शिवपाल यादव कहीं भी कभी भी सहज उपलब्ध हो जाते हैं। सपा की ताकत में इजाफा करने के लिये ही शिवपाल यादव को इस समय वर्षो पूर्व पार्टी से बगावत करके जाने वाले अमर सिंह काफी रास आने लगे हैं।
सैटिंग-गैटिंग की राजनीति के चाणक्य समझे जाने वाले अमर सिंह को मुलायम के करीब लाकर शिवपाल यादव ने एक ही झटके में पार्टी के कई क्षत्रपों की नींद हराम कर दी है। राज्यसभा सदस्य राम गोपाल यादव को ही ले लीजिए, जिस दिन वह कहते हैं कि अमर सिंह की सपा में वापसी नहीं होगी, उसी के दूसरे दिन अमर सिंह सपा प्रमुख से मिलने पहुंच जाते हैं। मुलाकात भी ऐसी-वैसी नहीं करीब 45 मिनट तक मुलायम-अमर अकेले में मंत्रणा करते हैं। मुलाकात के सूत्रधार शिवपाल यादव इससे गदगद होते हैं तो पार्टी के करीब आधा दर्जन नेताओं के कान खड़े हो जाते हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा की इस समय अमर सिंह को अगर कोई पुनः सपा में देखना चाहता है तो वह सिर्फ और सिर्फ शिवपाल यादव ही हैं। उन्होंने ही मुलायम का मन बदला। अखिलेश यादव को तो जैसे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है कि पार्टी के भीतर हो क्या रहा है।
एक पखवारे के भीतर दो बार मुलायम-अमर की मुलाकात के बाद यह तय माना जा रहा है कि अब अमर की सपा में सैद्धांतिक रूप से वापसी हो चुकी है। बस इसकी घोषणा करने में समय लग रहा है। मुलायम जानते हैं कि अमर की वापसी की बात सार्वजनिक होते ही पार्टी में बगावत के सुर उठने लगेंगे। आजम खां तुरंत मोर्चा खोल सकते हैं। यहां तक की वह पार्टी से बाहर भी हो जाये तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए। आजम खां के ऊपर से अब नेताजी का भी विश्वास उठ सा गया है। जबकि शिवपाल यादव खेमा तो साफ-साफ मानता है कि आजम के कारण अब पार्टी को फायदा कम नुकसान अधिक हो रहा है।
शिवपाल और आजम के बीच हमेशा से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है,यह बात जगजाहिर है। अमर को वापस लाकर शिवपाल एक तीर से दो निशाने साधना चाह रहे हैं। शिवपाल की इच्छा तो यही है कि सपा में आजम से इत्तर मुस्लिम लीडरशिप तैयार की जाये। उनको लगता है कि पार्टी में मुस्लिम चेहरों की कमी नहीं है, परंतु आजम के कारण सब हाशिये पर पड़े हैं। इसमें एक नाम अखिलेश मंत्रिमंडल में शामिल अहमद हसन का भी है। शिवपाल आजम ही नहीं सांसद रामगोपाल यादव को भी जता देना चाहते हैं कि पार्टी में उनकी भी चलती है। पार्टी के हित में जो भी फैसले जरूरी होंगे वह लेने में कतरायेगें नहीं। भले ही इससे किसी को बुरा लगे।
बात मुलायम सिंह की कि जाये तो वह भी आजकल अपने आप को अकेला महसूस कर रहे हैं। आजम खां के व्यवहार ने उन्हें जितना दुखी किया है, उतना ही नाराज वह पार्टी के अन्य कुछ बड़े नेताओं से भी हैं जो पार्टी से अधिक अपने हितों को तवज्जो देते हैं। यह कहना भी अतिशियोक्ति नहीं होगी कि अमर सिंह के साथ कई विवाद जुड़े रहे हों लेकिन उन्हीं के समय में पार्टी ने नईं ऊंचाइयां भी हासिल की थीं। अमर की वापसी के बाद शिवपाल यादव को अपना काम करने में काफी आसानी हो जायेगी, यह बात भी किसी से छिपी नहीं है। शिवपाल वह शख्स हैं जिन्होंने कभी भी अमर सिंह से अपने संबंध पूरी तरह समाप्त नहीं किये थे।
लेखक अजय कुमार लखनऊ में पदस्थ हैं और वे यूपी के वरिष्ठ पत्रकार हैं। कई अखबारों और पत्रिकाओं में वरिष्ठ पदों पर रह चुके हैं। अजय कुमार वर्तमान में ‘चौथी दुनिया’ और ‘प्रभा साक्षी’ से संबद्ध हैं।
PM Mishra
August 23, 2014 at 3:57 pm
अमर सिंह सिंह का सपा प्रेम सिर्फ़ सहाराश्री को बचाने के महाभियान का एक हिस्सा मात्र है जिन्होंने बताया जाता है कि ख़ुद को आज़ाद करने की गरज़ से आख़िरकार केन्द्र की संस्थाओं को उन लोगों के नाम बता दिये हैं जिनके पैसे और काली कमाई से वे धन्नाशाह बने और कानून से खेलने की अपनी प्रवृत्ति के चलते इस दुर्गति को प्राप्त हुए.