गोविंद गोयल
श्रीगंगानगर। सत्ता का अहंकार जब जन भावनाओं से बड़ा हो जाता है, तब यही होता है, जैसा गुजरात मेँ हुआ। उस दौर मेँ जब सत्ता की आलोचना करना भी जान जोखिम मेँ डालना हो, तब सत्ता को आइना दिखाने का साहस करना बहुत हौसले का काम होता है। समझो दुस्साहस ही है ऐसा करना। जब यह हौसला गुजरात की जनता करे तो इसके मायने भी दूर दूर तक जाने वाले और बहुत गहरे होते हैं। क्योंकि गुजरात मेँ नरेंद्र मोदी जितना प्यार किसी और नेता को नहीं मिला। कांग्रेस तो जैसे दिखनी ही बंद हो गई थी। सत्ता के अहंकार ने नरेंद्र मोदी के अंदर ऐसी जगह बनाई कि उनको जन भावना दिखाई देनी बंद हो गई।
कांग्रेस सहित दूसरे दलों की कमजोरी ने उनके इस अहंकार का पोषण किया, तभी वे कांग्रेस मुक्त भारत की बात करने लगे। दूसरी पार्टियों से निराश जनता ने जब उनका साथ देना शुरू किया तो नरेंद्र मोदी के इर्द गिर्द लिपटा सत्ता का अहंकार और अधिक पुष्पित और पल्लवित होने लगा। इस अहंकार ने उनके अंदर धीरे से यह फिट कर दिया कि अब कोई नहीं है उनके अतिरिक्त, इसलिए जो चाहे करो। अहंकार सिर चढ़ के जब बोलने लगा तो पीएम ताली बजा बजा के भाषण देने लगे। ना जाने कैसे कैसे शब्द और ना जाने कैसी कैसी बात। ये लगने लगा जैसे बीजेपी और नरेंद्र मोदी अजेय हैं। उन पर जीत तो दूर,उनको चुनावी रण मेँ ललकारा भी नहीं जा सकता। गुजरात ने इन सब बातों का जवाब दे दिया है।
गुजरात की जनता ने अपनी भावनाओं के माध्यम से बीजेपी को आइना दिखाते हुए ये संकेत दिया कि हम आपको सचेत कर रहे हैं कि अगर भविष्य मेँ भी ऐसा करते रहे तो ठीक नहीं होगा। यही जनता कांग्रेस को यह कहती दिखी कि बढ़ते रहो, हम आपको भी निगाह मेँ रखेंगे। कांग्रेस की सरकार नहीं बना सकी, लेकिन उसने बढ़त बनाई भी और दिखाई भी। जो राहुल गांधी बात बात पे लतीफा बनते थे, वे गंभीरता से लिए गए। साथ मेँ सुने गए। गुजरात चुनाव का असर दोनों पार्टियों पर पड़ेगा। बीजेपी और उनके नेताओं का अहंकार टूटना चाहिए और कांग्रेस को अधिक मेहनत करनी चाहिए। राजस्थान के लिहाज से भी इस चुनाव का महत्व कम नहीं था। इधर एक साल बाद चुनाव होने है।
पूर्व सीएम और गुजरात कांग्रेस के प्रभारी अशोक गहलोत ने गुजरात मेँ ना केवल कांग्रेस की खोई पहचान बनाई बल्कि उसको खड़ा करने का काम भी किया। राजस्थान का चुनाव उसके लिए कोई सरल नहीं है। हां, अगर बीजेपी गुजरात मेँ छठी बार सत्ता पाकर इतराई रही तब राजस्थान मेँ कांग्रेस का काम कुछ कुछ आसान हो सकता है। बीजेपी ने गुजरात से थोड़ा भी सबक लिया तो फिर कांग्रेस को अभी से सब कुछ नहीं तो बहुत कुछ तय करना पड़ेगा। यहाँ तक कि अपना सीएम का उम्मीदवार भी। ताकि उसी के अनुरूप टिकटों का वितरण हो सके। वह भी चुनाव के वक्त नहीं, बहुत पहले। जिससे कांग्रेस के भावी उम्मीदवार को वोटर्स तक पहुँचने मेँ आसानी हो। जो इधर उधर होने वाले हों, उनको साधने का काम किया जा सके। इसमें कोई शक नहीं कि अशोक गहलोत का कद बढ़ेगा। किन्तु केवल कद तब तक सत्ता नहीं दिलाते जब तक बाकी भी ठीक ठाक ना हो।
अभी तो लगभग हर विधानसभा सीट पर दो गुट साफ दिखाई दे रहे हैं। एक अशोक गहलोत गुट का दावेदार और दूसरा सचिन पायलट गुट का। इनको एक नहीं किया गया तो फिर परिणाम पक्ष मेँ आना मुश्किल होगा। कांग्रेस अगर ये सोचे कि वर्तमान बीजेपी सरकार से नाराज प्रदेश की जनता उसे पड़े पड़े ही सत्ता सौंप देगी तो यह इसकी भूल होगी। और बीजेपी ने ये मान लिया कि उसके अतिरिक्त कोई विकल्प ही नहीं है तो यह उसकी नादानी होगी। सत्ता के अहंकार मेँ ऐसी नादानियाँ होना स्वाभविक होता है। संभावना यही है कि आने वाले कुछ माह मेँ दोनों पार्टियों मेँ बहुत कुछ बदला बदला दिखाई दे सकता है। सीएम और सीएम के वर्तमान दावेदार भी बदल जाएं तो हैरानी नहीं। दो लाइन पढ़ो-
दो किनारों को मिलाने की कोशिश में हूँ
देखना किसी रोज टूट के बिखर जाऊंगा।
लेखक गोविंद गोयल श्रीगंगानगर (राजस्थान) के वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.