बड़े साहब थे। उनका एक पालतू कुत्ता था। साहब कड़क थे। कुत्ता नम्र था। साहब काम से काम रखते थे। कुत्ता इधर उधर भी देख लेता था। साहब किसी को भाव नहीं देते थे। कुत्ता इस काम मेँ मास्टर था। साहब के मातहतों को इसकी जानकारी हो गई। उन्होने साहब के घर आना जाना शुरू …
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शुक्रिया गुजरात! अहंकार को आइना दिखाने के लिए
गोविंद गोयल
श्रीगंगानगर। सत्ता का अहंकार जब जन भावनाओं से बड़ा हो जाता है, तब यही होता है, जैसा गुजरात मेँ हुआ। उस दौर मेँ जब सत्ता की आलोचना करना भी जान जोखिम मेँ डालना हो, तब सत्ता को आइना दिखाने का साहस करना बहुत हौसले का काम होता है। समझो दुस्साहस ही है ऐसा करना। जब यह हौसला गुजरात की जनता करे तो इसके मायने भी दूर दूर तक जाने वाले और बहुत गहरे होते हैं। क्योंकि गुजरात मेँ नरेंद्र मोदी जितना प्यार किसी और नेता को नहीं मिला। कांग्रेस तो जैसे दिखनी ही बंद हो गई थी। सत्ता के अहंकार ने नरेंद्र मोदी के अंदर ऐसी जगह बनाई कि उनको जन भावना दिखाई देनी बंद हो गई।
मीडिया का नेशनल इश्यू… हनीप्रीत! हनीप्रीत!! हनीप्रीत!!!
गोविंद गोयल
श्रीगंगानगर। हनीप्रीत इस देश के मीडिया के लिए बड़ा मुद्दा है। उस मुद्दे से भी बड़ा जो जन जन से जुड़ा हो सकता है। इसीलिए तो तमाम मीडिया केवल और केवल हनीप्रीत की खबर दिखा और छाप रहा है। हनीप्रीत मिल भी जाए तो इससे जनता का क्या भला होने वाला है। वह मिल जाए तो बाद पेट्रोल-डीजल के दाम कम हो जाएंगे क्या! ना मिले तो नोट बंदी फिर से लागू होने वाली नहीं। सीधी बात सीधे शब्दों मेँ कि उसका मिलना ना मिलना देश हित मेँ कोई महत्व नहीं रखता।
नागरिक करे तो जागरूकता, पत्रकार करे तो धौंस
गोविंद गोयल
श्रीगंगानगर। फेसबुक की एक छोटी मगर बहुत प्यारी पोस्ट के जिक्र के साथ बात शुरू करेंगे। पोस्ट ये कि एक दुकानदार ने वस्तु का मूल्य अधिक लिया। ग्राहक ने उलाहना देते हुए वीडियो शूट किया। दुकानदार ने सॉरी करना ही था। हर क्षेत्र मेँ जागरूकता जरूरी है। बधाई, उस जागरूक ग्राहक को। तारीफ के काबिल है वो। लेकिन अगर यही काम किसी पत्रकार ने किया होता मौके पर हँगामा हो जाता। लोग पत्रकार कि वीडियो बनाते। सोशल मीडिया पर बहुत से व्यक्ति ये लिखते, पत्रकार है, इसलिए धौंस दिखा रहा है। पत्रकारिता की आड़ लेकर दुकानदार को धमका रहा है। चाहे उस पत्रकार को कितने का भी नुकसान हुआ होता। पत्रकार के रूप मेँ किसी की पहचान उसके लिए मान सम्मान के साथ दुविधा, उलझन, कठिनाई भी लेकर आती है। क्योंकि हर सिक्के दो पहलू होते हैं। एक उदाहरण तो ऊपर दे दिया। आगे बढ़ते हैं।
ऐसी-ऐसी खबरें गढ़ी जा रहीं जिनका कोई वजूद नहीं!
श्रीगंगानगर। समझ से परे है कि मीडिया/मीडिया कर्मियों को हुआ क्या है! ऐसी-ऐसी खबरें जिनका कोई वजूद नहीं! इसमें कोई शक नहीं कि कुछ खबरें होती हैं और कुछ वक्त की मांग के अनुसार गढ़ी भी जाती हैं, यूं कहिये की गढ़नी भी पढ़ती हैं, लेकिन गढ़ाई गढ़ाई जैसी तो हो! ये क्या कि सिर कहीं और पैर कहीं। बाबा गुरमीत सिंह राम रहीम और मंत्री परिषद के पुनर्गठन विषय पर मीडिया ने जो कुछ कहा, उसमें कब कितना सच था, सब सामने आ गया। झूठ, कोरे कयास और गढ़ाई सच की तरह परोसी जाती रही। आम जन के पास ऐसा कोई जरिया होता नहीं जो सच को जान सके। उसके लिए तो मीडिया और मीडिया कर्मी ही भगवान होते हैं, ऐसे गरमा गरम विषयों पर।
न्यूज चैनलों का लाइव पाखंड
श्रीगंगानगर। धर्म के नाम पर पाखंड होता ही आया है, अब तो मीडिया द्वारा सच के नाम भी पाखंड किया जाने लगा। सच के नाम पर झूठ बोलने, दिखाने का पाखंड। पाखंड चाहे धर्म के नाम पर बाबाओं द्वारा किया गया हो या मीडिया द्वारा सच के नाम पर, पाखंड तो पाखंड है। पाखंड की चकाचौंध से इंसान पूरा अंधा तो नहीं होता लेकिन उसकी हालत अंधे जैसी ही हो जाती है। धर्म के नाम पर होने वाले पाखंड का जब पर्दाफाश होता तब जन जन की आस्था, श्रद्धा और भावना आहत होती हैं। जब मीडिया सच के नाम पर कोरा झूठ, आधा झूठ पेश करता है तो विश्वास टूटता है। यह मीडिया का आम जन से विश्वासघात है। विश्वासघात भी किसने किया, उस मीडिया ने जिसे लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है। हालांकि संविधान मेँ इसका कोई उल्लेख नहीं है, लेकिन उसकी भूमिका के मद्देनजर मीडिया को यह दर्जा दे दिया गया, चाहे वह उचन्ती ही सही। कल सोमवार को सुनारिया जेल से लगभग दो किमी दूर इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया ने सच के नाम पर झूठ का जो लाइव पाखंड रचा, उसकी मिसाल शायद ही कोई और हो।
देश को ‘कांग्रेस मुक्त’ करने के मायने
श्रीगंगानगर। कांग्रेस मुक्त भारत। कांग्रेस मुक्त देश। बीजेपी के महापुरुष नरेंद्र मोदी के ये शब्द लगभग 3 साल से मेरे कानों मेँ गूंज रहे हैं। अकेले मेरे ही नहीं और भी ना जाने कितने करोड़ देश वासियों के कानों मेँ होंगे ये शब्द। किसी के कानों मेँ मिठास घोल रहे होंगे और किसी के जहर। इन शब्दों का मायने ना जानने वालों के लिए ये शब्द गुड़ है और जो समझ रहे हैं उनके लिए कड़वाहट है। चिंता भी है साथ मेँ चिंतन भी।
किसानों को छींक भी आ जाए तो सरकारें कांपने लगती हैं
सरकार को केवल किसानों की चिंता है… लगता है कोई और तबका इस देश में रहता ही नहीं…
श्रीगंगानगर। पटाखा फैक्ट्री मेँ आग से दो दर्जन से अधिक व्यक्ति मारे गए। एमपी मेँ सरकारी गोली से आंदोलनकारी 6 किसानों की मौत हो गई। दो दर्जन से अधिक संख्या मेँ मारे व्यक्तियों का जिक्र कहीं कहीं है और किसानों के मरने का चप्पे चप्पे पर। राजनीतिक गलियारों मेँ। टीवी की डिबेट मेँ। अखबारों के आलेखों मेँ। संपादकीय में। बड़े बड़े कृषि विशेषज्ञ लेख लिख रहे है। उनकी इन्कम का लेख जोखा निकाला जा रहा है। उनके कर्ज माफ करने की चर्चा है। उस पर चिंतन और चिंता है। कुल मिलाकर देश का फोकस किसानों पर है।
लगता है कोई और तबका इस देश मेँ रहता ही नहीं।
राष्ट्रभक्ति किसी की जागीर नहीं है
गोविंद गोयल
श्रीगंगानगर। जनाब! जिसे आप राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ति कहते हो ना, वो व्यक्तिपूजा है। खास व्यक्ति की चापलूसी है। पता नहीं आपने किस किताब मेँ पढ़ ली, क्या मालूम कहाँ से सुन ली, देशभक्ति, राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ति की ये नई परिभाषा। जिसमें श्री नरेंद्र मोदी जी की जय घोष, उनकी सरकार की जय जय कार, बीजेपी की प्रशंसा को ही देशभक्ति, राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ति माना गया है। उनकी कार्यशैली, उनकी सरकार की नीतियों की आलोचना देशद्रोह हो चुका है। राष्ट्रद्रोह की श्रेणी मेँ मान लिया जाता है मोदी जी और उनकी सरकार की आलोचना को।
राजस्थान में लोकतंत्र नहीं राजशाही है
गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर
बुजुर्गों से राजशाही के बारे मेँ खूब सुना। इतिहास मेँ पढ़ा भी। राजाओं, महारानियों के एक से एक किस्से। उनका राज चलाने का ढंग। उनकी प्रजा के प्रति लगाव और दुराव। राजघरानों मेँ षडयंत्र और राजाओं को हटाने की चालें। राजा की फोटो वाले सिक्के। उनकी तस्वीर वाले दस्तावेज़। ये सब सुन और पढ़ मन मेँ इच्छा होती कि काश! काश मेरा जन्म भी उस दौर मेँ होता जब राजशाही थी। मैं भी देख लेता विभिन्न स्थानों पर उनके फोटो। लेकिन नहीं हुआ। जन्म नहीं हुआ तो नहीं हुआ।
माँ के पास खाट थी, मेरे पास लोकतन्त्र है
गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर (राजस्थान)
मेरी माँ थी। इसमें तो कोई खास बात नहीं, आप यही सोचेंगे। क्योंकि माँ तो जन्म लेने वाले हर जीव की होती है। रंग, रूप, सूरत भिन्न भिन्न होने के बावजूद सब माएं होती एक जैसी हैं, ममता, करुणा, दया, वात्सल्य, त्याग और उदारमना। कम शब्दों मेँ माँ जैसा कोई है ही नहीं। खैर, मेरी माँ थी। जैसे सबकी माँ होती है। माँ के पास एक खाट थी। लकड़ी के चार पाये वाली। एकदम मजबूत। कसी हुई। चारों पाये पूरी तरह चाक चौबन्द। पाये चमकते थे। खाट का वजन तो था ही, उनके ऊपर इसके साथ-साथ उस पर बैठने वालों का वजन भी उठाते पाये। बड़े होनहार थे। बड़े प्यारे और स्वाभिमानी भी। मजाल कोई उसमें कमी निकाल दे।
हे न्यूज चैनल वालों, युद्ध से पहले तो युद्ध मत कराओ…
श्रीगंगानगर। बेशक देश की सेनाएं हर पल युद्ध के लिये तैयार रहती हैं, लेकिन ये भी सच है कि युद्ध पल मेँ ही शुरू नहीं किया जा सकता। बहुत कुछ सोचना और करना पड़ता है। जन भावनाओं से सरकार चुनी तो जा सकती है। परंतु जनभावनाओं से युद्ध नहीं लड़ा जाता। ना ही जनभावना युद्ध आरंभ करवाने में सक्षम है। हां, राज अविवेकी, नासमझ और लाचार व्यक्तियों के हाथ में हो तो दोनों बातें संभव हैं। युद्ध पल में शुरू भी हो सकता है और जनभावनाएं को देख सरकार भी युद्ध शुरू कर दे तो कोई बड़ी बात नहीं। कल रात को एक बड़े टीवी चैनल पर ‘राजस्थान गंगानगर सीमा पर हलचल’ की बात ने ऐसी हलचल मचाई कि फेसबुक और व्हाट्सएप पर चर्चा होने लगी। स्वाभाविक है। क्योंकि हम बार्डर पर रहते हैं। हलचल हमें भी प्रभावित करेगी। परंतु कुछ हो तो! केवल खबर बनाने के लिये सनसनी फैलाना ऐसे हालात में ठीक नहीं है।