सीतापुर : प्रदेश में प्रशासन की निष्क्रियता के चलते अराजक तत्वों द्वारा पत्रकारों पर लगातार हमले कर भय का माहौल बनाया जा रहा है। निष्पक्ष पत्रकारिता को डरा-धमका कर प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है। यह बात उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष महेन्द्र अग्रवाल ने मुख्यमंत्री को सम्बोधित एक ज्ञापन एडीएम सर्वेश दीक्षित को सौंपते हुए कही।
पत्रकारों पर हमलों के विरोध में ज्ञापन देते सीतापुर के पत्रकार
जगेंद्र हत्याकांड के विरोध में धरना देते हुए पत्रकारों ने कहा कि पूर्व में जारी शासनादेश के मुताबिक जिला स्तर पर प्रशासन पत्रकारों से मासिक सद्भावना बैठकें भी नही कर रहा है। पत्रकारों की समुचित सुरक्षा हेतु जिला स्तर पर पत्रकार सुरक्षा फोरम का गठन किये जाने की मांग की गयी। कहा गया कि शाहजहांपुर में पत्रकार जोगेन्द्र सिंह की जलाकर हत्या कर दी गयी। कानपुर में पत्रकार को गोली मारी गयी, बस्ती में पत्रकार को गाड़ी से कुचला गया। पीलीभीत में पत्रकार को बाइक से बांधकर घसीटा गया, सीतापुर में विगत एक वर्ष में कई पत्रकारों को धमकी एवं हमला किया गया।
उपरोक्त घटनाओं को संज्ञान में लेकर त्वरित कार्यवाही किये जाने की मांग की गयी ताकि निष्पक्ष पत्रकारिता के प्रति विश्वास एवं सुरक्षा का माहौल बना रह सके। इस दौरान राहुल मिश्र, आनन्द तिवारी, राजेश मिश्रा, राहुल अरोरा, हरिओम अवस्थी, विनोद यादव, सुनील शर्मा, सुरेश सिंह, सूरज तिवारी, आशुतोष बाजपेयी, अमित सक्सेना, अनिल विश्वकर्मा, रिजवान, अम्बरीश पाण्डेय, वैभव दीक्षित, आशीष स्वरूप जायसवाल, कृष्ण कुमार, समीर, अवनीश मिश्रा, शिवकुमार जायसवाल, हरेन्द्र यादव सहित अन्य पत्रकार मौजूद थे।
पत्रकारों की ओर से अपर जिलाधिकारी को सौंपे गये ज्ञापन में सकरन काण्ड के खुलासे में पुलिस प्रशासन द्वारा मीडिया कर्मियों के प्रति व्यक्त की गयी प्रतिक्रिया की निन्दा की गयी है। साथ ही कहा गया है कि किसी जिम्मेदार पुलिस अधिकारी के स्तर से प्रेस के लोगों के प्रति ऐसी निम्न स्तरीय प्रतिक्रिया जताना न केवल मीडिया कर्मियों का अपमान है बल्कि उनके अधिकारों का हनन भी है। उक्त मामले में पीडि़ता द्वारा न्यायालय में 164 के तहत दिये गये बयानों के पश्चात उन्हीं बयानों के आधार पर यदि मीडिया कर्मियों ने अपना दायित्व निभाया तो इसमें वह साजिशकर्ता कहां से हो गये। इलेक्ट्रिानिक चैनलों के विभिन्न संवाददाताओं व प्रिन्ट मीडिया के लोगों ने यदि पीडि़ता द्वारा कही गयी आपबीती प्रसारित प्रकाशित की तो इसमें प्रेस के प्रतिनिधि कहां से कसूरवार हो गये। कहा गया है कि अपने बयान पर कायम रहना अथवा बयान बदल देना यह पीडि़ता का निजी प्रकरण है। ऐसी स्थिति में मीडिया कर्मियों की भूमिका संदिग्ध बताते हुए उनके खिलाफ कार्यवाही की प्रतिक्रिया व्यक्त करना न केवल समूचे पत्रकारिता जगत का अपमान है अपितु लोकत्रांतिक व्यवस्था में मीडिया के अधिकारों का हनन है। ज्ञापन में माध्यम से चेतावनी दी गयी है कि पुलिस प्रशासन एक सप्ताह के अन्दर अपनी यह प्रतिक्रिया वापस ले अन्यथा मीडिया कर्मी आन्दोलित होने को विवश होंगे।