Rohini Gupte : मेरे एक मित्र सहारनपुर में पत्रकार हुए। सहारनपुर के नहीं थे, मगर नौकरी खींच ले गई। तनख्वाह तय हुई साढ़े पांच हजार रुपए महीना, साढ़े तीन सौ रुपए मोबाइल और साढ़े छह सौ रुपए पेट्रोल। मित्र महोदय खुश कि चलो फ्रीलांसिंग से तो पांच हजार का भी जुगाड़ नहीं हो पाता था, यहां कम से कम साढ़े छह मिलेंगे। दिल्ली से घर बार बीवी लेकर सहारनपुर पहुंचे और ढाई हजार रुपए में एक कमरा किराए पर लिया। आठ दस साल पहले की बात है, ‘सस्ते’ का जमाना था। साथ में एक साथी पत्रकार काम करते थे, जिनका सहारनपुर में ही गांव था। वो गांव से आने वाली आलू प्याज में एक हिस्सा इन्हें भी देते, सो बेसिक सब्जी का भी खर्च कम हो गया। फिर भी बचते बचते महीने की बीस तारीख तक वो पैसे खत्म हो जाते, जो लाला हर महीने सात दिन देर से देता।