मीडिया संस्थानों में विज्ञापनों का जोर चलता है। विज्ञापन देने वाला उनके लिए देवता होते हैं। मैंने छोटे कस्बों की किराना की दुकानें में लिखा देखा है ‘ग्राहक भगवान का रूप होता है’। यूपी में यही दिखाई दे रहा है। यूपी सरकार ने मीडिया संस्थानों को जब से विज्ञापन उड़ेलना शुरू किया है तब से मीडिया वालों के लिए अखिलेश और नेताजी की सरकार भगवान का रूप बन गई। ऐसे में कोई लखनऊ शहर में अपनी जायज मांग करता है तो उसे पीटा जाता है, लेकिन मीडिया के लिए यह घटना या तो खबर नहीं बनती या संक्षेप में समेटकर पत्रकारिता कर्म की इतिश्री कर ली जाती है। यह सब पिछले कुछ महीनों से ही सतह पर आया है।
मसला यह कि यूपी में शिक्षकों भारी कमी है। कोर्ट के आदेश के बाद शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया सरकार ने शुरू कराई है, जिसके तहत करीब 29 हजार शिक्षक जूनियर हाईस्कूलों के लिए और करीब 72 हजार शिक्षकों की प्राथमिक स्कूलों में भर्ती की प्रक्रिया चल रही है। भर्ती प्रक्रिया करीब एक वर्ष या उससे ज्यादा समय से चल रही है, लेकिन सपा सरकार के लचर रवैये की वजह से पूरी नहीं हो पा रही है। जूनियर हाईस्कूल भर्ती में काउंसिलिंग करीब पूरी करा ली गई है व प्राइमरी में कछुआ चाल से चल रही है। काउंसिलिंग पूरी होने के बाद भी जूनियर हाईस्कूल शिक्षक भर्ती प्रक्रिया के अभ्यर्थियों को ज्वाइनिंग लेटर नहीं दिए जा रहे हैं। साथ ही, उनके ओरजिनल कागज जमा कर लिए गए हैं, जिसकी वजह से वह अन्य कहीं और भी नौकरी नहीं कर पा रहे हैं। सरकार के ओर से दलील दी जाती है कि कोर्ट का अंतिम फैसला आना बाकी है। लेकिन हकीकत यह है कि कोर्ट के तमाम आदेशों के बावजूद सरकार जवाब दाखिल नहीं करती है। ऐसे में अभ्यर्थियों की परेशानी यह है कि कोर्ट केवल सरकार को आदेश दे सकती है, लागू करना सरकार का काम है, जिसे सरकार नहीं कर रही है।
नियुक्ति पत्र की मांग करते हुए कुछ लोग अभी हाल में ही लखनऊ के लक्ष्मण मैदान में शांतिपूर्वक धरना दे रहे थे, जिनपर सरकार के नुमाइंदगों ने लठियां बरसायीं और उन्हें दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया। इस लाठी चार्ज में कुछ लड़कियां और लड़के गंभीररूप से घायल भी हुए, जिन्हें बाद में अस्पताल में भर्ती करना पड़ा था। लेकिन मीडिया ने इसे कोई तरजीह नहीं दी। कुछ टीवी चैनलों से इसे चलाया जो टीआरपी में पहले दस में शामिल नहीं होते हैं। इस भर्ती प्रक्रिया के भारी-भरकम विज्ञापन प्राप्त करने वाले अखबारों ने इसे संक्षेप में कहीं भीतर कोने में लगा दिया। सबसे अधिक विज्ञापन पाने वालों में दैनिक जागरण व हिंदुस्तान अखबार शामिल हैं। उनके लिए यह प्रदेश की खबर नहीं बन पायी, जबकि धरना देने वाले लोगों में प्रदेशभर से आए हुए चयनित अभ्यर्थी शामिल थे।
भावी शिक्षकों का मामला तो महज एक बानगी है, ऐसे तमाम मामले गिनाए जा सकते है। ऐसा ही एक अन्य मामला है यूपी के बुलंदशहर जिले का, दिल्ली से महज 60-70 किमी दूर, जहां करीब तीन माह पूर्व एक बस हादसे में 43 लोग जिंदा जलकर मर गए थे। ताज्जुब होता है, इतने बड़े हादसे के बावजूद राष्ट्रीय मीडिया में सन्नाटा छाया रहा। स्थानीय मीडिया ने भी घटना की कुछ खबरें छापकर अपने कर्तव्य पूरे कर लिए। पीड़ितो की लगातार कोई पैरवी नहीं की गई। स्थानीय मीडिया में इस मामले का प्रभावी फॉलोअप दिखाई नहीं दिया। मीडिया के इस चरित्र को देखकर आश्चर्य होता है कि अमेरिका की छोटी सी घटना इनके लिए राष्ट्रीय खबर होती है, लेकिन देश में घटने वाली बड़ी घटनाएं भी इनकी नजर में ही नहीं आती हैं। चलो शिक्षकों का मामला समाचार चैनलों के लिए न सही प्रदेश के अखबारों के लिए तो खबर होना चाहिए था। लेकिन 43 लोगों की मौत का मामला तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए भी अहमियत रखता है, इसलिए वहां इसका दिखाई न देना सवाल खड़े करता है।
अब बात सपा सरकार द्वारा समझे गए मीडिया के विज्ञापन चरित्र की। सपा सरकार ने, खासकर युवा मुख्यमंत्री अखिलेश नें हालिया यानि वर्तमान मीडिया के चरित्र को भलीभांति समझा है। वह अच्छी तरह से समझ गए हैं कि यूपी के प्रति पूर्वाग्रह रखने वाले मीडिया को कैसे सॉफ्ट किया जा सकता है। यह उसी समझ का नतीजा है जिसके तहत पिछले कुछ महीने में अखबारों में विज्ञापनों की बाढ़ आ गयी है। विज्ञापन देने या छपवाने के पीछे बहाना कुछ भी रहा हो, लेकिन ऐसे में अखबारों और चैनलों की खूब चांदी कटी है। ऐसा लगता है सपा सरकार विज्ञापनों के जरिए ही उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बना रही है। विज्ञापन के जरिए ही अपराध की खबरों से लेकर प्रदेश में फैली अव्यवस्था की खबरों को कोने में लगाया जा रहा है या कहें ठिकाने लगाया जा रहा है।
लखनऊ से आशीष कुमार का विश्लेषण.