Sudhir Chandra Asthana-
आजमगढ़ जनपद के वरिष्ठ पत्रकार और छायाकार सुनील दत्ता कबीर के कार्यालय को प्रशासन ने आज शाम ज़मींदोज़ कर दिया। उनकी बिटिया चिल्लाती रही पर प्रशासन ने उसकी एक न सुनी। उनका यह कार्यालय नगरपालिका आजमगढ़ ने वर्षों पूर्व आबंटित किया था, जिसका वह नियमित रूप से किराया देते आ रहे थे।
इसी कार्यालय से ‘द पायनियर’ अख़बार का संचालन होता था। प्रशासन ने दत्ता के कार्यालय पर एक दिन पूर्व नोटिस चिपकाया था। नोटिस में 25 मार्च को उन्हें अपना पक्ष रखने का समय दिया गया था, किन्तु 24 मार्च की शाम को ही बुलडोज़र लगाकर अख़बार के दफ्तर को ज़मीदोज़ कर दिया गया। जनता की आवाज़ को इस तरह से ख़ामोश करना जिसमें एक वरिष्ठ पत्रकार भी अपना पक्ष प्रस्तुत न कर सका। ठीक इमरजेन्सी जैसे हालात। प्रशासन के इस तानाशाही पूर्ण कार्य से जनपद के पत्रकार और बुद्धिजीवी स्तब्ध हैं।
D. N. Sagar-
अभी फेसबुक खोला तो पता चला की साथी Kabeer जी के पायनीयर अख़बार के कार्यालय को प्रशासन द्वारा तोड़ दिया गया है.. कबीर जी आज़मगढ़ के एक वरिष्ठ फोटो पत्रकार है, जीवन मे कभी समझौता नहीं करने वालो के साथ यही होता है, अगर आज ये चापलूस, बेईमान रहते तों शायद ये नहीं होता.. नगर पालिका के नाम पर जमीन आवंटन होने के बावजूद भी कार्यालय को तोड़ दिया गया.. रामराज है अफसर से लेकर ऊपर तक सभी मिली भगत है, कार्यालय को तोड़ने के साथ ही उनके दो कंप्यूटर और इसके अलावा कई सामान गायब कर दिया गया! इनकी बेटियां रोती रही लेकिन लाठी के दम पर चुप करा दिया गया! देश मे कई जगह बड़े बड़े धन्ना सेठ कई हजार एकड़ की जमीन को हड़प कर बैठे है लेकिन सरकार कुछ नहीं बोलती, लेकिन गरीब आदमी के रोजी रोटी का जरिया हटाने मे हमारी पुलिस सबसे आगे है! शर्म इन्हे नहीं आती.
Rakesh Gandhi-
SDM सदर गौरव कुमार अगर सच में बहुत ईमानदार और न्याय प्रिय हैं तो उन अवैद्ध निर्माणों को भी गिरवा कर दिखाए जो सरेआम सरकारी जमीनों पर बनवाये गए हैं। सिधारी से लेकर कालीनगंज तक बंधे की सरकारी जमीन शहर के अमीरों के कब्जे में है। कबीर दत्ता जो एक ऐसे इंसान है जिन्होंने सायद ही कभी अनैतिक पैसा कमाया हो और उसकी रोटी खाई हो। जहां तक मैं कबीर दत्ता जी को जानता और समझता हूँ वह जीवन भर उन उसूलों पर चलते रहे जो किसी व्यक्ति, समाज या देश को उन्नत और संवृद्ध बनाता है। परिस्थितिया कुछ भी रही हो चंद पैसों के लिए अपना जमीर नही बेचा। ऐसे सरल, सहज और ईमानदार आम नागरिक का नगरपालिका द्वारा आवंटित दुकान, जो उनकी आय का एक मात्र साधन था, वह अवैद्ध निर्माण हो गया तो सरकारी जमीन पर बनी अमीरों की बड़ी-बड़ी कोठियां वैद्ध कैसे।
Pushpraj Shanta Shastri-
आजमगढ़ में पत्रकार सुनील दत्ता के स्टूडियो सह प्रेस कार्यालय को बुल्डोजर से ध्वस्त करने के खिलाफ…
मैं आजमगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार सह छायाकर सुनील कुमार दत्ता उर्फ कबीर पर राज्यपोषित हमले की भर्त्सना करता हूँ।आजमगढ़ जिला प्रशासन ने बुल्डोजर से हमारे प्रिय पत्रकार-छायाकार के स्टूडियो सह प्रेस कार्यालय को ध्वस्त करने की हिम्मत की है।उत्तर प्रदेश शासन के इस जुल्म के खिलाफ भारत के पत्रकारों एक हो।रिहाई मंच के संयोजक राजीव यादव घटनास्थल पर पहुँच रहे हैं।अभिनव कदम के संपादक जयप्रकाश धूमकेतु ने इस घटना को जुल्म की हद कहा है।राहुल सांकृत्यायन की धरती पर राहुल सांकृत्यायन की विचारधारा के प्रवर्तक पत्रकार की आवाज को बुल्डोजर से दबाने की कोशिश के खिलाफ उत्तर प्रदेश सहित संपूर्ण राष्ट्र के पत्रकार प्रतिरोध करें।।पत्रकारों की एकता जिंदाबाद।।
अरविंद सिंह-
अगर आप इंसान हैं.. अगर आप में थोड़ी भी संवेदना बाकी है.. तो इस अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाइए..! कलम के सिपाही एसके दत्ता पर टूटा प्रशासनिक वज्रपात… इतने के बाद भी अगर आप को क्रोध नहीं आता है. इतने के बाद भी अगर आप की आंखों में पानी नहीं आता है. इतने के बाद भी अगर आप की संवेदना,सरकार-और उसके सिस्टम को धिक्कारती नहीं, तो हमें पत्रकार, चिकित्सक, व्यापारी, अधिवक्ता और सबसे पहले इंसान होने पर सवाल खड़ा करती है. आप पूछेंगे क्यों- जवाब है कि एक इंसान जो जीवन के साठ साल में से चालीस बरस आजमगढ़ और पूर्वांचल की पत्रकारिता को देने के बाद आखिर में आर्थिक तंगी से जुझते हुए अपनी तीन- तीन बेटियों को पढ़ाने लिखाने और परिवार का पेट पालने के लिए एक अदद दुकान के लिए भूखंड लगभग बीस बरस पहले नगर पालिका परिषद से आवंटित कराता है. अपने पैसे से निर्माण करता है, और उसका किराया भी नगर पालिका को नियमित जमा करता है, आज अचानक से उपजिलाधिकारी आजमगढ़ ने उसे अवैध बताते हुए उसपर शाम लगभग सात बजे बुलडोजर चला जमीदोज़ कर दिया, जबकि दो दिन पहले एसडीएम ने धारा-133 की नोटिस जारी कर आवंटी किरायेदार और आवंटन कर्ता संस्था नगर पालिका आजमगढ़ को 25 मार्च को अपने न्यायालय में हाजिर होकर जवाबदेही दाखिल करने का फरमान दिया था. आज उन्हें अपने ही कानून और विधि प्रक्रियाओं पर से जैसे विश्वास नहीं रहा और पक्षकार को सुनवाई की नोटिस जारी कर तो दिया लेकिन सुनवाई का अवसर ही नहीं दिया. यह तो नैसर्गिक न्याय विधि की घोर अवहेलना है.
दरअसल हम बात कर रहे हैं आजमगढ़ के सबसे पुराने फोटो जर्नलिस्ट एसके दत्ता की. और फोटो में जो जमीदोज़ मलबा दिखाई दे रहा है, वह 24 मार्च को शाम सात बजे पायनियर अखबार का ब्यूरो दफ्तर था, और उसमें कर्मचारी काम करते थे. शाम के सात बजे के बाद वह एसडीएम सदर की तुगलकी फरमान और विधि व्यवस्था की भेंट चढ़ कर मलबे में तब्दील हो गया. जबकि 25 मार्च को डिप्टी कलेक्टर साहब इसके वैध और अवैध पर सुनवाई करने वाले थे. वहीं इसको लेकर आवंटी एसके दत्ता ने सिविल कोर्ट में मुकदमा भी किया है और इस भूखंड और कमरे का कमीशन भी हुआ है, नगर पालिका परिषद और डीएम, एसडीएम इसमे पक्षकार हैं. इससे तो यह साबित होता है कि एसडीएम सदर किसी को सुनवाई का अवसर ही नहीं देते, बल्कि तानाशाही पर स्वयं उतर जाते हैं. सवाल यह उठता है कि अगर यह आवंटन गलत था तो इसे सुनवाई का अवसर देने के बाद गिरा देते. और अगर यह गलत था तो नगर पालिका के विरुद्ध क्या कार्रवाई किए, जो बीस साल से किराया ले रहा है..
अगर अब भी आप को यह अन्याय नहीं लगता तो… फिर आप अपनी संवेदना का जनाजा उठते देखते रहिए.. अगला नंबर आप का हो सकता है.. क्योंकि कि जब सिस्टम निरंकुश और तानाशाह हो जाएगा तो लोकतंत्र का जनाजा उठने से कोई नहीं रोक सकता है…उनके लिए यह केवल दुकान भर नहीं था, बल्कि जीवन जीने का आधार था..
Wasim Akram-
कहते हैं कि भारत सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है . यहाँ पर जनता ही मालिक है . हमारा देश अंग्रेजों का गुलाम था , उसके बाद तमाम कुर्बानियां देकर लोगों ने इसे अंग्रेजों के चंगुल से आज़ाद कराया . गांधी से लेकर तमाम पत्र – पत्रिकाओं को संपादित करने वाले लोगों और पत्रकारों ने इस मुहीम में अपना बड़ा योगदान दिया …देश आज़ाद हुआ … देश में संविधान बना और उसी संविधान से कहते हैं कि देश और कानून चलता है ..लेकिन क्या सच में ऐसा है ..ये अब सोचने का समय आ गया है …क्योंकि जनता के नौकर , सेवक अब खुद को राजा समझने लगे हैं ….
अगर आपको मेरी बातों पर यकीन न हो तो एक बार उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिले जिले आज़मगढ़ घूम जाइए …जहाँ पर एक बेलगाम एस डीएम मदमस्त होकर गरीबों , मध्यम वर्ग के व्यापारियों पर अपना जुल्म ढा रहा है . यही नहीं न्याय के लिए आखिरी उम्मीद यानी की अधिवक्ता भी इस सरकारी नौकर के गुरूर का शिकार बन रहे हैं …जब देखो आये दिन अधिवक्ता आज़मगढ़ सदर के एस डीएम गौरव कुमार के खिलाफ आपको सड़कों पर दिख जायेंगे ….जिंदाबाद ..मुर्दाबाद करते हुए …..यकीन न हो तो सुन भी लीजियेगा . देख भी लिजियेगा बहुत सारा विडिओ एस डीएम के खिलाफ दिख जाएगा आपको …अब ये मत कह दीजिएगा कि अधिवक्ता मनबढ़ हो गए हैं
अब आपको समझ में आ ही गया होगा …खैर आपको लेकर चलते हैं दूसरी तस्वीर की तरफ …उम्र के 50 से भी ज्यादा साल पार कर चुके इस शख्स को देखिये …ये इस मलबे के ढेर में क्या तलाश रहा है …..हैं न कमाल साहब ……दरअसल ये मलबा नहीं है ….ये मलबा है भारत के तिल – तिल करते …..दम तोड़ रहे लोकतंत्र का संविधान का ….उसको अपने पैरों के नीचे रौंदते एक मगरूर सरकारी अधिकारी का ….क्योंकि वह जब चाहता है ..तब बुलडोजर लेकर गरीबों पर जुल्म ढाने निकल पड़ता है …और अतिक्रमण के नाम सिर्फ गरीबों ..लाचारों पर ही ताण्डव करता है ….और अमीरों ..रसूख वालों का अतिक्रमण इस अधिकारी को नहीं दिखता …खैर इस इंसान को गौर से देखिये …
जो शख्स आपको इन तस्वीरों में दिख रहा है ..वो कोई आम इंसान नहीं है .इनका नाम है सुनील कुमार दत्ता …इस इंसान ने 40 साल से ज्यादा आजमगढ़ में अपनी पत्रकारिता और फोटोग्राफी से सभी को प्रभावित किया ..अन्याय के खिलाफ हमेशा लिखा , हमेशा तस्वीरों में क़ैद किया ..ये उसी का सिला मिला है उसे आज …एस डीएम गौरव कुमार का बुलडोजर सिर्फ इस दूकान पर ही नहीं ..पत्राकरिता की आत्मा पर भी चला है ..आज पत्रकारिता की आत्मा भी छलनी हो गयी है शायद ….क्या दमन ही इस सरकार के पास …सरकारी नौकरों के पास रह गया है …आज ये सवाल है जिले के कलेक्टर से ..मण्डल के कमिश्नर से ..क्या आपके अधीनस्थ आपका एस डीएम इतना बेलगाम हो चुका है कि वह अब आपके भी काबू में नहीं है …क़िताबें पढ़कर गौरव कुमार साहब आईएएस तो बन गए .लेकिन शायद उनके अन्दर मानवीय संवेदनाएँ नहीं पनप पायी ..नहीं तो ऐसा काम करते हुए एक बार सोचते ज़रूर….
सुनिए न साहब … इस पत्रकार की गलती क्या थी आखिर ?क्या ये अधिकारियों की औरों की तरह ख़ुशामद नहीं कर पाता .इसलिए …थानों और सरकारी दफ्तरों के चक्कर नहीं लगता इसलिए …जिस दूकान को अतिक्रमण के नाम पर ढ़हाया गया ….दरअसल उसको सुनील कुमार दत्ता ने लगभग 20 साल पहले नगरपालिका से खाली ज़मीन का आवंटन कराकर ..कार्यालय का निर्माण अपने पैसों से कराकर …बाकायदा हर महीने किराया …जमा करते रहे …कभी कोई विवाद नहीं हुआ …लेकिन जबसे आईएएस गौरव कुमार सदर एस डीएम बनकर जिले में आये न जाने उनको सुनील कुमार दत्ता से क्या चिढ हो गयी …जब एस डीएम ने उनके कार्यालय को गिराने की बात कही तो पत्रकारों ने जिले के डीएम से मिलकर अनुरोध किया कि ऐसा करना उचित नहीं होगा . सुनील कुमार दत्ता ने पत्रकारिता को अपना जीवन समर्पित किया है ..नाली के उस तरफ मौजूद उनके अखबार के कार्यालय से किसी को कोई भी असुविधा नहीं है ….
इसके बाद एस डीएम गौरव कुमार 23 मार्च को एक नोटिस भेजते हैं कि 25 मार्च तक आप अपना लिखित जवाब एस डीएम को दें …लेकिन ना जाने एस डीएम साहब को क्या जल्दी मची थी …अपने ही 25 मार्च के आदेश का उन्होंने उलंघन करते हुए ..24 मार्च को ही शाम 7 बजे के बाद स्ट्रीट लाइट को बुझाकर एक अखबार के कार्यालय को ज़मींदोज करने पहुँच गए …जैसे ये किसी अखबार का कार्यालय नहीं किसी माफिया की अवैध संपत्ति हो ..इसका क्या जवाब है एस डीएम के पास कम से कम 25 मार्च की जो तारीख दी थी उन्होंने , उसका तो इंतज़ार कर लेते …लेकिन ना जाने क्या जल्दी थी एस डीएम को कि एक रात का इंतज़ार भी न कर पाए ….
इस घटना को लेकर पत्रकारों , सिविल सोसाईटी के लोगों , राजनैतिक दल , ड्रग एसोसिएशन और तमाम आम जनता ने मिलकर एक बैठक किया और आजमगढ़ स्वाभिमान संघर्ष समिति का गठन वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष द्विवेदी की अध्यक्षता में किया गया ….इस 21 सदस्यीय संघर्ष समिति में समाज के हर तबके के लोगों को शामिल किया जायेगा …साथ ही इसी संघर्ष समिति के बैनर तले आगामी 2 अप्रैल को कलेक्ट्रेट में धरना दिया जायेगा ….इसके साथ ही सोशल मीडिया पर ‘एसडीएम हटाओ, शहर बचाओ’ नाम से कैम्पन चलाया जायेगा। साथ ही लोगों ने तय किया कि इस एस डीएम के खिलाफ हाई कोर्ट में भी रीट दाखिल की जायेगी …
अब इस मामले में आगे क्या होगा ये तो भविष्य के गर्भ में है , लेकिन एक सवाल है आज़मगढ़ ..सहित देश के तमाम अवाम से पत्रकार कभी अपने लिए किसी खबर को नहीं बनाता , वो हमेशा समाज का आईना बनने की कोशिश में रहता है …आप अब नहीं जागेंगे तो कब जागेंगे …क्या वाकई हम आज़ाद हैं …अँगरेज़ तो चले गए ..लेकिन आज भी उनकी वहशत ..उनकी तरह जुल्म ढाने वाले ये लोग कौन हैं जो अपनों पर ही जुल्म ढा रहे हैं …आज हमें एक साथ खड़े होकर दत्ता जैसे लोग जहां भी हैं उनका सहारा बनने की ज़रुरत है ..नहीं तो ऐसे ही ये अधिकारी ..लोगों की उमीदों ..आकांक्षाओं को अपने गुरूर तले रौंदते रहेंगे …..
Ashutosh Dwivedi-
आजमगढ़ मंडल के कमिश्नर… विजय विश्वास पंत साहब ने बहुत गौर से सुना .. कहा कैसे हुआ! एसडीएम आजमगढ़ ने… किस अलोकतांत्रिक तरीके से एक अखबार के दफ्तर को “मैं “सामान जमीनदोज़ कर दिया । जांच शुरू हो चुकी है। आंच आएगी। आने के लिए तो 48 घंटे में उच्चन्यायालय से लेकर उच्चतम न्यायालय की नोटिस भी आ जायेगी। मुसीबत में पड़े पत्रकार के साथ जो आये उनका शुक्रिया है।
मूल खबर-
Ajai Singh Bhadauria
March 27, 2021 at 12:55 pm
आजमगढ़ में प्रशासनिक तांडव सरकार और सरकारियत को शर्मसार करने वाला है। इससे योगी आदित्यनाथ सरकार की न्याय का दावा इस घटना से पूरी तरह खोखला साबित हो गया है। अगर सरकार और सरकारियत में कहीं भी संवेदना जीवित है तो पत्रकार कबीर जी से सार्वजनिक रूप से माफी मांगे। एसडीएम को सेवा के विपरीत आचरण के लिए बर्खास्त करें और ढहाया गया निर्मित करा कर श्री कबीर को पुनः सौंपे। साथ ही गलती का प्रायश्चित करते हुए भविष्य में किसी भी पत्रकार का उत्पीड़न नहीं करने का संकल्प लें।
घटना को लेकर सूबे के पत्रकारों को एकजुट होकर सरकार की असलियत जनता के बीच लाने के लिए सड़क से संसद तक संघर्ष करना चाहिए।
हमारे वरिष्ठ कहलाने वाले पत्रकार नेताओं में अगर थोड़ी भी शर्म है तो आन्दोलन का ऐलान करें, अन्यथा पत्रकार संगठनों से स्वयं: संन्यास की घोषणा करें।