उच्चतम न्यायालय की पूर्व महिला कर्मचारी जिसने पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था, उसकी सेवाओं को फिर से बहाल कर दिया गया है। उसने ड्यूटी ज्वाइन कर लिया है और उसके सभी बकाया दे दिए गए है। इसके बाद वह अवकाश पर चली गयी है। लेकिन यह साफ नहीं हो सका है कि उसे किस आधार पर दुबारा काम पर उच्चतम न्यायालय ने वापस लिया है।
यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण है कि महिला कर्मचारी को उच्चतम न्यायालय की अनुशासनात्मक जाँच समिति ने दोषी पाया था जिसके बाद उसे बर्खास्त कर दिया गया था।अब यह बताने वाला कोई नहीं है कि जाँच करनेवाले रजिस्ट्री के रजिस्ट्रार सूर्य प्रताप सिंह जिन्हें एसपी सिंह के नाम से जाना जाता है उनके खिलाफ क्या कार्रवाई हुई क्योंकि जाँच सही थी तो महिला को काम पर वापस नहीं लेना चाहिए था और यदि जाँच गलत थी तो एसपी सिंह ही नहीं पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के विरुद्ध भी यौन उत्पीडन के लिए कार्रवाई होनी चाहिए थी।
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार सूर्य प्रताप सिंह ने विवादास्पद ‘अनुशासनात्मक जांच’ का संचालन किया था, जिसके परिणामस्वरूप उस जूनियर कोर्ट असिस्टेंट की बर्खास्त कर दिया गया,जिसने जस्टिस गोगोई पर यौन उत्पीडन का आरोप लगाया था । दरअसल रजिस्ट्रार सूर्य प्रताप सिंह से चीफ जस्टिस रंजन गोगोई का पूर्व संबंध रहा है और वे उनके चहेते रहे हैं। जस्टिस गोगोई पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे तो सूर्य प्रताप सिंह वहां उनके प्रधान सचिव पद पर तैनात थे। जब जस्टिस गोगोई उच्चतम न्यायालय में चीफ जस्टिस बने तो उसके दो तीन महीने ही सूर्य प्रताप सिंह की उच्चतम न्यायालय में तैनाती हुई। ऐसे में पीडिता के विरुद्ध आन्तरिक जाँच कहीं से निष्पक्ष नहीं थी।
इस अनुशासनात्मक जांच के बाद दिसंबर 2018 में एक जूनियर कोर्ट असिस्टेंट के रूप में महिला की सेवाएं समाप्त कर दी गईं थीं हालांकि, पिछले साल अप्रैल में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को संबोधित एक पत्र में, उसने शिकायत की थी कि उसे और उसके परिवार को न्यायमूर्ति गोगोई की अवांछित यौन इच्छा का विरोध करने के लिए उस समय पीड़ित किया गया जब वह अक्टूबर 2018 में उनके निवास स्थित कार्यालय में तैनात थी।
उसने आरोप लगाया था कि उसे इस मामले में तीन बार स्थानांतरित किया गया था और रिश्वत के मामले में झूठा आरोप लगाया गया था। इसके अलावा, उसका पति, जो दिल्ली पुलिस में हेड कांस्टेबल है, को भी क्राइम ब्रांच से अचानक स्थानांतरित कर दिया गया था।
इस मुद्दे पर बड़े पैमाने पर मीडिया की रिपोर्टिंग के बाद न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की विशेष पीठ ने”न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर महान सार्वजनिक महत्व” के मामले से निपटने के लिए सुनवाई शुरू की थी। विशेष पीठ ने वकील उत्सव बैंस द्वारा लगाए गए आरोपों के साथ यौन उत्पीड़न मामले पर विचार किया कि सुप्रीम कोर्ट के तीन असंतुष्ट कर्मचारियों ने कॉरपोरेट लॉबिस्टों के साथ मिलकर चीफ जस्टिस के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे।
इसके बाद, अदालत ने कथित साजिश को देखने के लिए उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एके पटनायक की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की थी। जस्टिस पटनायक समिति ने साजिश की बात सिरे से ख़ारिज कर दी लेकिन झूठी शिकायत के लिए वकील उत्सव बैंस के खिलाफ कोई कार्रवाई की आज तक सुचना नहीं है क्योंकि उत्सव बैंस से शिकायत के समर्थन में हलफनामा भी लिया गया था।
जब चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पर यौन शोषण के आरोप सामने आए थे तो उच्चतम न्यायालय के सभी मुखर न्यायाधीश चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को न केवल क्लीन चिट दे रहे थे बल्कि इस मामले की सुनवाई के समय कोर्ट रम में मुखर होकर असहमति व्यक्त करनेवाले वरिष्ट अधिवक्ताओं को बिना नाम लिए टारगेट किया जा रहा था और इस प्रकरण को पीठ की ही नहीं बल्कि उच्चतम न्यायालय की अस्मिता से जोड़कर मौखिक टिप्पणियाँ की जा रही थीं।
हमेशा की तरह लगभग पूरा गोदी मीडिया यही मानकर इस घटना का विश्लेषण कर रहा था कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को उक्त महिला फंसा रही है , यह कोई साजिश रची जा रही है, जिसमे वह महिला सबसे बड़ा मोहरा है। उसे बेंच फिक्सिंग करने वाले कुछ बड़े वकील और कतिपय कार्पोरेट्स अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। मई में जहाँ जस्टिस गोगोई को क्लीन चिट मिल गयी थी वहीं अक्तूबर में उस महिला को भी बेंच फिक्सिंग का मोहरा होने से क्लीन चिट मिल गयी।
यक्ष प्रश्न यह है की फिर बेंच फिक्सिंग का क्या हुआ ,क्या यह चीफ जस्टिस को बचने के लिए कवरअप आपरेशन था,क्या किसी को बचाने के लिए छद्म के रूप में उछाला गया था ताकि कोई मुखर विरोध न कर सके?जस्टिस पटनायक की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि कोर्ट और चीफ जस्टिस को बदनाम करने की साजिश में महिला कोटकर्मी शामिल नहीं है। जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा था कि न्यायालय हम सब से ऊपर है।
अगर उच्चतम न्यायालय में कोई फिक्सिंग रैकेट चल रहा है तो हम इसकी जड़ तक जाएंगे। हम जानना चाहते हैं कि फिक्सर कौन है? बेंच ने आईबी चीफ, दिल्ली पुलिस कमिश्नर और सीबीआई डायरेक्टर को चैम्बर में आकर मिलने के निर्देश दिए थे।
उत्सव बैंस ने कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि चीफ जस्टिस गोगोई के खिलाफ आरोप लगाने वाली महिला की ओर से पैरवी करने के लिए अजय नाम के व्यक्ति ने उसे 1.5 करोड़ रुपए का ऑफर दिया था।उत्सव ने बताया कि इस व्यक्ति ने प्रेस क्लब में चीफ जस्टिस गोगोई के खिलाफ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस अरेंज करने के लिए भी कहा था।
उत्सव ने यह भी दावा किया कि एक बेहद विश्वसनीय व्यक्ति ने उन्हें बताया कि एक कॉरपोरेट शख्सियत ने अपने पक्ष में फैसला करने के लिए उच्चतम न्यायालय के एक जज से संपर्क किया था। जब वह असफल रहा तो उस शख्स ने उस जज की अदालत से केस ट्रांसफर करवाने की कोशिश की।हलफनामे में उत्सव ने कहाथा कि जब यह कॉरपोरेट शख्सियत असफल रही तो “कथित फिक्सर’ के साथ मिलकर चीफ जस्टिस गोगोई के खिलाफ झूठे आरोप की साजिश रची ताकि उन पर इस्तीफा देने का दबाव बनाया जा सके।
न्यायपालिका में बेंच फिक्सिंग का मामला सीधे-सीधे भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ है। इसके तीन महत्वपूर्ण पहलू है। पहला यह कि उच्चतम न्यायालय और हाईकोर्ट में भाई भतीजावाद का बोलबाला है। दूसरा यह कि जजों के बेटे, बेटी और रिश्तेदार उसी कोर्ट में बेधड़क होकर वकालत करते हैं और कई बार इसमें भी “ब्रदर जजों” के आरोप लगते हैं। तीसरा पहलू यह कि न्यायाधीश एवं इनके सगे संबंधियों के सम्पत्ति का खुलासा प्रतिवर्ष नहीं होता है।
कहते हैं कुछ ही मछलियां होती हैं, जो पूरे तालाब को गंदा करती हैं। लेकिन जब न्यायपालिका जैसे अति महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील संवैधानिक संस्था की बात हो तो इन मछलियों को चिन्हित कर कार्रवाई करना बहुत बड़ी चुनौती होती है। हकीकत यह है कि इन मछलियों को न्यायपालिका में सभी जानते पहचानते हैं पर उन्हें सिस्टम से बाहर करने की दिशा में कोई ठोस कार्य नहीं किया जाता है। सब कुछ ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता’ का हवाला देकर और ‘अवमानना का भय’ दिखाकर इस तरह ढक दिया जाता है, जैसे अंदर सब कुछ ठीक-ठाक है वास्तव में यदि उच्चतम न्यायालय बेंच फिक्सिंग को लेकर चिंतित है और न्यायपालिका की गरिमा बचाना चाहती है, तो उसे ट्रांसफर नीति और संपत्ति का खुलासा नीति उच्चतम न्यायालय और हाईकोर्ट के न्यायाधीश और इनके सगे संबंधियों के संबंध में कड़ाई से लागू करना पड़ेगा।
दरअसल उच्चतम न्यायालय की एक पूर्व महिला कर्मचारी ने तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था।इस महिला कर्मचारी ने शपथ पत्र देकर उच्चतम न्यायालय के सभी जजों को आरोप लगाने वाला यह पत्र भेजा था। इस पर चीफ जस्टिस गोगोई ने अपने ऊपर लगे आरोपों को बेबुनियाद बताया और कहा कि इसके पीछे कोई बड़ी ताकत होगी, वे सीजेआई के कार्यालय को निष्क्रिय करना चाहते हैं।
इस पूरे मामले की सुनवाई के लिए एक स्पेशल बेंच का गठन किया गया था और एक उच्चस्तरीय इन-हाउस पैनल बनाया गया था। चार बैठकों के बाद पैनल ने जस्टिस गोगोई को क्लीन चिट दे दी। मई 2019 में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, शिकायत में शामिल आरोपों में कोई तथ्य नहीं मिला। उस संबंध में जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में, उच्चतम न्यायालय न्यायालय के सेकेट्री जनरल ने कहा था कि इंदिरा जयसिंह मामले में निर्णय के अनुसार, इन-हाउस प्रक्रिया के एक भाग के रूप में गठित समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक करने के लिए उत्तरदायी नहीं है।
Danish Ali
January 23, 2020 at 4:33 pm
भारत देश को दलाल , गोदी मीडिया वालों से और नागरिकों में आपस में नफरत फैलाने वालों से बहुत बड़ा खतरा है , यही लोग असली देश द्रोही और ग़द्दार हैं , इनही लोगों ने भारत देश की आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजों की दलाली और मुखबरी किया था आज भी वही कर रहें हैं —