पुण्य प्रसून बाजपेयी के लिए सूर्या समाचार चैनल काफी भाग्यशाली सिद्ध हो रहा है. चैनल प्रबंधन ने उन्हें भरपूर छूट दे दी है. इस कारण पुण्य पहले से जमे लोगों को चैनल से बहरियाने में बिलकुल संकोच नहीं कर रहे हैं. एक के बाद एक पुराने लोगों को निकाला जा रहा है. ताजी सूचना है कि चैनल के सीईओ दिनेश्वर सिंह को भी जाना पड़ा है. इसके बाद पुण्य प्रसून बाजपेयी की अब सूर्या समाचार चैनल में तूती बोलने लगी है. पुण्य क्रांति का नया जमीन बन गया है सूर्या समाचार.
पुण्य के सूर्या समाचार में आने के बाद ‘एजेंडा’ नहीं मानने पर दिवाकर विक्रम सिंह को बाहर जाने के लिये मजबूर किया गया. उसके बाद इस चैनल के सीईओ दिनेश्वर सिंह के लिये भी ऐसा माहौल बनाया गया कि वह छोड़ कर चले गये. अब चैनल के सर्वेसर्वा पुण्य प्रसून बाजपेयी बन बैठै हैं.
पुण्य प्रसून बाजपेयी के आने के बाद अब न्यूज रूम का माहौल ऐसा बन गया है कि पुराने कर्मचारियों, रिपोर्टरों को तरह तरह से परेशान किया जा रहा है. इस से आहत और नाराज पत्रकार गाली-ग्लौज को मजबूर हो रहे हैं. रिजाइन करने को मजबूर हो रहे हैं. हाल चार दिन पहले का है. बीजेपी बीट देखने वाले पत्रकार अमिताभ ने एक खबर दी. खबर पर उस पत्रकार का लाइव लिया जाने वाला था. उसे लाइव खड़ा कर दिया गया, लेकिन जब खबर चली तब एंकर ने बाजपेयी के खास अजय झा का फोनो लेकर खबर चला दिया, लाइव वाले रिपोर्टर से कुछ नहीं कराया गया.
इससे नाराज अमिताभ ने जब इसका कारण पूछा तो गोलमोल जवाब दिया जाने लगा. इसके बाद उन्होंने न्यूज रूम में ही जिम्मेदारों को खरी-खोटी सुनाई. इस दौरान बाजपेयी भी चैनल में मौजूद थे. जब उनके लोगों ने अमिताभ को नौकरी जाने का डर दिखाया तो उन्होंने बिना किसी चीज की परवाह किये अपना रिजाइन दे दिया. जब इसकी सूचना मालिक तक पहुंची तो उन्होंने रिजाइन स्वीकार करने से इनकार करते हुए अमिताभ को काम करने का निर्देश दिया.
चर्चा है कि पुण्य प्रसून बाजपेयी अपनी ही जाति के खास लोगों पर मेहरबानी दिखाने में जुटे हुए हैं. पुराने रिपोर्टरों को गाड़ी तक नहीं दी जा रही है. इनपुट हेड राजेश सिन्हा को हटाकर उनकी जगह मोहित शंकर तिवारी को लाया गया है. आउटपुट का हेड पीयूष पांडेय को बनाने के साथ एंकर हेड गीतांजति शर्मा को बनाया गया है. ईपी के पद पर अपने खास अजय झा को जिम्मेदारी सौंपी गई है. इसके साथ ही अपनी टीम में ऐसे लोगों को जोड़ रहे हैं, जो मोदी सरकार के खिलाफ एजेंडा पत्रकारिता कर सकें, क्योंकि एक कांग्रेसी नेता के सहयोग से चैनल के लाला को करोड़ों दिलवाये जाने की चर्चा सामने आई है.
सूर्या समाचार चैनल में कार्यरत एक पत्रकार द्वारा भेजे गए मेल पर आधारित.
manoj
March 4, 2019 at 10:24 am
क्रांतिकारी पत्रकारिता का चोला पहनने-ओढ़ने का बेहतरीन अभियन करने वाले पुण्य प्रसून बाजपेयी जब एबीपी न्यूज से निकाले गये थे, तब उन्होंने ऐसा माहौल बनाया था जैसे कि मोदी सरकार इस पत्रकार के खुलासे से परेशान होकर इनके पेट पर लात मरवा दिया है। तब देश भर को ऐसा लगने लगा था कि स्क्रीन पर हाथ रगड़ कर बाजपेयीजी जो जिन्न निकाला करते थे, वह जिन्न बैताल का रूप धारण कर मोदी सरकार के कंधे पर चढ़ बैठता था। और बापजेयी के इसी बैताल से पूरी मोदी सरकार हिल जाया करती थी!
एबीपी से बहरियाये जाने के बाजपेयीजी ने एक ब्लाग लिखा था, जिसमें उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की थी कि केंद्र की मोदी सरकार में बैठे लोग इस क्रांतिवीर पत्रकार के कार्यक्रम को सेंसर करने और दबाव बनाने का प्रयास करते रहे। ऐसा बताने का प्रयास किया गया था कि मोदी के नेतृत्व में सरकारी बाबू ‘मास्टर स्ट्रोक’ के समय उपग्रहों को भी एबीपी से हटाकर उस जी न्यूज की तरफ घुमा देते थे, जिस पर वे कभी दो ब्लैकमेल के आरोपी पत्रकारों के अरेस्टिंग को हाथ रगड़-रगड़ कर इमरजेंसी बता रहे थे।
ब्लॉग लिखने के कुछ समय बाद ही दिल्ली में हुए एक राष्ट्रीय सेमीनार में पुण्य एबीपी न्यूज से निकाले जाने की घटना पर पूरी तरह से पल्टी मार गये। यू-टर्न लेते हुए कहा, ‘इतनी निराशा नहीं है जितनी निराशा में आप लोग यहां बैठे हुए हैं। ऐसी स्थिति तो बिल्कुल नहीं है कि कोई आपको काम करने से रोक रहा है। हमें तो नहीं रोका गया। हम लोग बहुत निराशा में इसलिए हैं, क्योंकि हम मान रहे है कि शायद हमें काम करने से रोका जाता है। हम आपको साफ बता दें कि हमें काम करने से बिल्कुल नहीं रोका जाता है।’ अपनी ही बातों को झुठला दिया यह क्रांतिवीर पत्रकार।
दरअसल, एजेंडा पत्रकारिता के शौकीन पुण्य प्रसून बाजपेयी जहां से भी निकले या निकाले गये, अपने ही पुण्य कर्मों के चलते। चेहरे पर सौम्यता ओढ़े बाजपेयीजी का असली चरित्र वही है, जब वह लालू से डींगे हांकते हुए सहारा को सुधारने का दावा करते ऑन एयर हो गये थे। या फिर सुधीर चौधरी और समीर आहलूवालिया के ब्लैकमेलिंग के आरोप में गिरफ्तार होने के बाद पूरी बेशर्मी से उस दौर को टीवी स्क्रीन पर आपातकाल और इमरजेंसी साबित कर रहे थे, दोनों हाथ रगड़-रगड़कर। या फिर अरविंद केजरीवाल को क्रांतिकारी और बहुत ही क्रांतिकारी बनाने वाला इंटरव्यू का मामला हो।
Shashi Prasad
March 4, 2019 at 5:04 pm
क्रांतिकारी पत्रकार नही कोठे पर बैठे दल्ले से भी गए गुजरे हैं ऐसे अहंकारी और दम्भी रिपोर्टर।