Sanjaya Kumar Singh : मैं तीस्ता समर्थक नहीं हूं। ठीक से फॉलो भी नहीं करता। पर उनके खिलाफ इस खबर में दम नहीं है। मीडिया ट्रायल का हिस्सा है। बदनाम करने की कोशिश। खबर तब होती जब बताया जाता कि कुल कितने दिन में कितने की शराब पी गई (या पिलाई गई) कितनी फिल्मों की सीडी कितने दिनों में खरीदी गई। काम करने वाला कोई आदमी कितनी शराब पी जाएगा और कितनी सीडी देख लेगा। बांटा होता तो लगता कि आरोप है।
सुबह से शाम काम करते हुए हमलोग भी हजार दो हजार रुपए पर उड़ा देते हैं। दोस्त मित्र हों, साथ काम करने वाले तो यह खर्च ज्यादा भी होता है। अब कोई कहे कि दिन भर मेहनत करके कमाता है, शाम को पीने (खाने में) उड़ा देता है। भइया वो कमाई का बहुत छोटा हिस्सा होता है। और काम करने वाला आदमी इतना खर्च करता है – खुराक कहिए इसे डीजल मोबिल। ये कोई भ्रष्टाचार नहीं है।
जनसत्ता अखबार में लंबे समय तक काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.
Samar Anarya : जियो तीस्ता सीतलवाड़ आज हिन्दुस्तानी मीडिआ को उसकी औक़ात बताने के लिए. यह कहने के लिए कि ‘ब्रीफिंग’ है- जवाब नहीं देंगे, जो दिल हो कहिये। अरे हिटलर नहीं जीत पाया जनता से, अंबानियों अडानियों के जरखरीद जीत जायेंगे? मैं तीस्ता हूँ- और जो जो साबिर अली को कल तक भाजपा के दो मंत्रियों के मुताबिक आतंकवादी मानते थे, दाऊद का आदमी मानते थे, या तीस्ता बनेंगे, या अपनी जुबान बेच चुके गुलाम। ठीक वैसे जैसे उनमें से एक मंत्री गिरिराज सिंह (वही पाकिस्तान भेजू) बेच चुका है या बेशर्म लालची- (वही मुख़्तार अब्बास नक़वी जिसको इस बार ट्वीट करने के पहले ही धमका दिया लगता है.
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारवादी अविनाश पांडेय समर के फेसबुक वॉल से.