सुभाष सिंह सुमन-
कल के पोस्ट में मैंने एक जगह हल्की सी बात की थी चंद्रयान को लेकर… कि अगर कोई चांद पर जा रहे रॉकेट की धुन में या फ्रांस से आ रहे राफेल के स्वर में रोटी-मकान के शोर की मिलावट करने लगे, तो उसे एकदम से इग्नोर कर देना. बुद्धि से वह बेचारा है. वह जिक्र अनायास नहीं था. चंद्रयान समेत तमाम स्पेस मिशन सिर्फ विज्ञान के लिए प्रासंगिक नहीं हैं, बल्कि उससे कहीं ज्यादा अर्थ यानी इकोनॉमी के लिए प्रासंगिक हैं. मार्क्स की एक बात बड़ी वजनदार है… कि दुनिया में कुछ भी होता है तो उसके पीछे सबसे बड़ा कारण आर्थिक होता है. (इस पर आज बहस नहीं करना है. अच्छा लगे तो अच्छा, न ठीक लगे तो कोई बात नहीं.)
अभी एक नई खबर आई है नासा की. नासा वाले एक मिशन प्लान कर रहे हैं. मिशन चांद या मंगल का नहीं है, बल्कि एक एस्टेरॉयड का है. इसे The Psyche Mission भी कहा जा रहा है. पर्याप्त माल-मटीरियल नेट पर उपलब्ध हैं इसके बारे में. मुझे बहुत डीप में नहीं जाना है. अपने मतलब की बात थोड़ी अलग है. वो जो एस्टेरॉयड है, 16 Psyche, उसकी वैल्यू बताई जा रही है 10 क्विंटिलियन डॉलर.
इंडियन नंबर सिस्टम में होता है… इकाई, दहाई, सैकड़ा, हजार… इंटरनेशनल नंबर सिस्टम में होता है थाउजेंड, मिलियन, बिलियन, ट्रिलियन, क्वैड्रिलियन और उसके बाद आता है क्विंटिलियन. इंटरनेशनल सिस्टम में ही आगे समझिए. अभी भारत की जीडीपी करीब 3.5 ट्रिलियन डॉलर है. इस साल पूरी दुनिया की जीडीपी होगी करीब 113 ट्रिलियन डॉलर. 10 क्विंटिलियन को ट्रिलियन में कंवर्ट करेंगे तो आएगा 10 मिलियन ट्रिलियन. और आसान करें तो 1 करोड़ ट्रिलियन. मतलब पूरी दुनिया की अभी जो जीडीपी इस साल होगी, 16 Psyche एस्टेरॉयड की वैल्यू उसके 1 लाख गुणे के आस-पास है. वैल्यू का कारण है कि एस्टेरॉयड पूरा गोल्ड, आयरन और निकेल से बना हुआ है.
अभी नासा का सैटेलाइट मस्क भाई के रॉकेट पर सवार होकर उस एस्टेरॉयड के पास जाएगा. उसके ऑर्बिट में कुछ दिन रहेगा. ढेर सारी जानकारियां जुटाएगा. प्लान उस एस्टेरॉयड को खोदने की है, वैसे ही जैसे धरती पर माइनिंग की जाती है. फिर बेशकीमती खजाने को धरती पर जाया जाएगा… इस्तेमाल किया जाएगा.
ये जो सिस्टम डेवलप हो रहा है, उसके लिए टर्म है स्पेस इकोनॉमी. यह इकोनॉमी अभी उसी फेज में है, जहां क्रूड इकोनॉमी 100-150 साल पहले थी. इस बात की खूब संभावना है कि हमारी पीढ़ी अपने सामने एस्टेरॉयड माइनिंग को सच होते देख लेगी. स्पेस इकोनॉमी में बहुत संभावनाएं हैं, इसी लिए उसके ऊपर नासा से लेकर एलन मस्क तक अरबों डॉलर फूंक रहे हैं. अपने वाले तो बेचारे वहां भी बहुत किफायत कर रहे हैं. जितने में आदिपुरुष का चरस बोया गया, उतने में ये लोग आपको चांद पर पहुंचा दे रहे हैं.
समाज में हमेशा दो तरह के लोग रहे हैं. एक तरफ बहुत दूर तलक देखने वाले, जो 10-20-50-100 साल आगे की सोच रखते हैं और उस दिशा में दिमाग से लेकर पैसा खर्च करते हैं. दूसरी तरफ चिरकाल से कुढ़ने वाली नस्ल भी है. पहले वाले काम करते हैं, दूसरे वाले छिद्रान्वेषण. पहले वाले चांद पर उतर जाते हैं, दूसरे वाले हिसाब बताते रहते हैं कि उतने खर्चे में तो इतनी रोटियां बन जाती. फिर होता ये है कि पहली प्रजाति के उद्यम से हासिल संसाधन पर दूसरी प्रजाति चिरकाल तक पाली-पोषी जाती रहती है. अगर पहली प्रजाति वालों ने समय रहते यूं ही अंतरिक्ष में रॉकेट भेजकर अपना पैसा नहीं गलाया होता, तो इंटरनेट और फोन पर बातचीत जैसी सुविधाओं से अभी तक मनुष्यता वंचित ही रहती. अब एक लाइन में कथा समाप्त करें तो कहेंगे कि ‘पहले वाले श्रम कर रहे हैं, दूसरे वाले कुछ कर नहीं सकते तो थोड़ी शर्म ही कर लें’.