Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

यूजीसी कराएगा ‘योगाभ्यास’ – आपको खबर दिखी क्या?

सतर्क चौकीदार, आचार संहिता उल्लंघन के मामले और अखबार

आज द टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर एक खबर छापी है कि चुनावों की इस गहमा-गहमी में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने देशभर के सभी विश्वविद्यालय एवं कॉलेजों को दो मई से योग गतिविधियां शुरू करते हुए 50 दिनों तक निरंतर योग अभ्यास करने के निर्देश दिए हैं। युवाओं को योग से जोड़ने के लिए देश के सभी विश्वविद्यालयों को जागरुकता अभियान भी चलाने होंगे। आप जानते हैं कि 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस होता है और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के आदेश पर देश भर के विश्वविद्यालय और कॉलेजों में तैयारियां शुरू हैं। टेलीग्राफ के अनुसार, खास बात यह है कि यूजीसी ने पहली बार योगदिवस की तैयारियों और योगाभ्यास के लिए कहा है। और यह 50 दिन चलेगा जबकि इस साल इसी बीच 11 अप्रैल से लोकसभा चुनाव होंगे और 19 मई तक चलेंगे। मतों की गणना 23 मई को होनी है। योग दिवस 21 जून को है।

टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर है यह खबर

कहने की जरूरत नहीं है कि चुनावी साल में ऐन चुनाव के दौरान योगाभ्यास कराने का मतलब क्या हो सकता है। अगर यह खास और किसी मकसद से प्रेरित नहीं हो तो भी खबर है। आपके अखबार ने छापी क्या? यहां यह बताता चलूं कि टेलीग्राफ की इस खबर का अनुवाद और टाइप करने से बचने के लिए मैंने गूगल सर्च किया तो यह खबर एमएसएन डॉट कॉम पर मिली। इसका मतलब यह है कि खबर गोपनीय भी नहीं है और छिपाई भी नहीं गई है। अगर एमएसएन को मिल सकती है तो सरकारी विज्ञापन छापने वाले अखबारों को क्यों नहीं? एमएसएन की खबर के अनुसार यूजीसी ने योग को बेहतर स्वास्थ्य के लिए जरुरी गतिविधियों के रूप में प्रोत्साहित करने को कहा है। इसके लिए विशेषज्ञों को बुलाते हुए कॉमन योग प्रोटोकॉल (सीवाईपी) की जानकारी छात्रों तक पहुंचाने को कहा गया है।

चुनाव की घोषणा के बाद सरकार और सरकारी योजनाओं का प्रचार आचार संहिता का उल्लंघन है। ऐसा नहीं है कि ऐसे मामले पकड़े जाएं, शिकायत हो तभी रोका जाए। कायदे से चुनाव की घोषणा होने और आचार संहिता लागू होने के बाद संबंधित विभागों, अधिकारियों और मंत्रियों को ऐसे कार्य स्वयं रोक देना चाहिए और रोकने के आदेश देना चाहिए। पर स्थिति यह है कि इसका पालन नहीं हो रहा है और रेल टिकटों पर सरकारी योजनाओं के प्रचार की शिकायत पर कई हिस्सों में बंटे भारतीय रेल के एक हिस्से ने एलान कर दिया कि पुराने स्टॉक के टिकट गलती से बेचे जा रहे थे अब नहीं बिकेंगे। पर ऐसी शिकायत देश के दूसरे रेलवे और रेल क्षेत्रों से भी है। साफ-साफ यह चौकीदार की बेईमानी है और आंख मूंद लेने का मामला है। लेकिन अभी-अभी मैंने रेडियो पर विज्ञापन सुना, आपका ये चौकीदार पूरी तरह चौकन्ना है। एक तरफ संपूर्ण भारतीय रेल में प्रचार वाले टिकटों की बिक्री बंद नहीं हुई और एयर इंडिया के बोर्डिंग पास पर प्रचार जारी रहा। जैसे उसे अलग आदेश की जरूरत हो। और यह सब हुआ तो अब योग के जरिए प्रचार।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मीडिया का काम ऐसे मामलों में सतर्क रहना है। अगर मीडिया अपना काम सही ढंग से कर रहा होता तो यह सब अपने आप बंद हो जाना चाहिए था और नहीं हुआ तो इसकी खबरें छपतीं, कार्रवाई होती तो यह सब रुक जाता। पर ऐसा हो नहीं रहा है और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस को चुनाव आयोग से मांग करनी पड़ी कि देश भर में पेट्रोल पंपों, रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकारी प्रचारों से जुड़ी तस्वीरें तत्काल हटाए जाएं। पीएम की तस्वीरों से जुड़े होर्डिग्स को सरकारी धन के जरिये राजनीतिक प्रचार करार देते हुए आयोग से यह मांग की गई है। चुनाव आयोग ने इस शिकायत पर कार्रवाई का भरोसा देते हुए कहा कि इन प्रचार तस्वीरों को हटाने का काम शुरू हो गया है। कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य आरपीएन सिंह की अगुआई में पार्टी नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग से यह शिकायत की है। होने को तो यह भी खबर है, आपको दिखी क्या? देश भर में लगी प्रधानमंत्री की इन तस्वीरों को लेकर कांग्रेस ने 10 मार्च को ही चुनाव आयोग को शिकायत भेजी थी। चुनाव आचार संहिता इसी दिन लागू हुई थी।

ऐसा नहीं है कि आचार संहिता का उल्लंघन सरकारी विभाग ही करते हैं। बड़े अधिकारी जिनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है वे भी किसी राजनीतिक दल के पक्ष में या खिलाफ बोल जाते हैं जो आचार संहिता का उल्लंघन है। ऐसे ही एक मामले में कार्रवाई की खबर को आज इंडियन एक्सप्रेस ने लीड बनाया है। खबर के मुताबिक चुनाव आयोग ने नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार से कांग्रेस की न्याय योजना पर उनकी टिप्पणी के संबंध में स्पष्टीकरण मांगा है। उन्होंने इस योजना की निन्दा करते हुए इसे चुनावी वादा कहा था। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार उन्होंने सोमवार को समाचार एजेंसी एएनआई से कहा था कि प्रस्तावित योजना से वित्तीय घाटा बढ़ेगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सरकारी अफसर की बात चली तो बता दूं कि टाइम्स ऑफ इंडिया ने आज एक खबर छापी है जिसके मुताबिक केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने सरकार से कहा है कि 2010 के बाद से सभी दागी अफसरों की सूची साझा की जाए। अखबार ने इस खबर को लीड बनाया है और उपशीर्षक है, केंद्र इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर कर सकता है। इस आदेश के तहत सरकार को उन आईएएस अधिकारियों के नाम का खुलासा करना है जिनके खिलाफ अभियोजन की मंजूरी दी गई है और उनका नाम भी बताया जाना है जिनके खिलाफ यह मंजूरी नहीं दी गई। सीआईसी का यह आदेश ऐक्टिविस्ट नूतन ठाकुर की आरटीआई याचिका पर आया है जो उन्होंने मई 2017 में दायर किया था।

एक तरफ तो सरकार और सरकारी अफसरों का यह हाल है दूसरी ओर चुनाव आयोग का प्रचार आ रहा है कि चुनाव आयोग का ऐप्प डाउनलोड कर चुनाव से संबंधित गड़बड़ी की सूचना उसे दी जाए। चुनाव आयोग को एक आदेश यह भी जारी करना चाहिए था कि सरकारी स्तर पर प्रचार न हो और अगर हुआ तो जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी और जो मामले सामने आए हैं उनमें कार्रवाई हुई होती तो स्थिति कुछ और होती। लेकिन चुनाव जीतने के लिए अगर प्रधानमंत्री चौकीदार बन जाए अपने सभी सहयोगियों से चौकीदर बनने के लिए कहे और वे बन भी जाएं। अखबारों को आछार संहिता का उल्लंघन न दिखे और चौकीदार आश्वस्त करे कि मैं सतर्क हूं तो मतदाता के रूप में आपके भी सतर्क रहने का समय है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement