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परंजॉय गुहा ठाकुरता का इस्तीफा बताता है कि अब वैकल्पिक पत्रकारिता भी कारपोरेट दबाव से मुक्त नहीं

Amitaabh Srivastava : इकोनामिक और पालिटिकल वीकली की छवि एक अरसे से गंभीर वैकल्पिक और वैचारिक, विश्लेषणात्मक पत्रकारिता के झंडाबरदार वाली रही है। वरिष्ठ पत्रकार परंजाय गुहा ठाकुरता का इसके संपादक पद से इस्तीफ़ा और उसके पीछे सामने आई अब तक की वजहों से यह लगता है कि बदले माहौल में वैकल्पिक पत्रकारिता भी कारपोरेट दबाव से मुक्त नहीं है। जनोन्मुखी पत्रकारिता का दावा करने वाले डिजिटल महारथियों के लिए भी इसमें सबक़ छुपे हैं। अगर सचमुच कोई विकल्प बनने की चाह है तो उसके लिए जोखिम उठाने के लिए भी तैयार रहना पड़ेगा। दोनों हाथों में लड्डू के ख़याली पुलाव नहीं चलेंगे। इसमें सवाल उस जनता या पाठक, दर्शक वर्ग पर भी है जो पत्रकारों को गाली तो बहुत देता है लेकिन उन्हें स्वतंत्र रूप से खड़े रहने में मदद करने के लिए आगे नहीं आता। समाज अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह चुराएगा तो ऐसे में किसी भी वंचित समुदाय, वर्ग की आवाज़ उठाने वाली और उनके अधिकारों से जुड़ी पत्रकारिता या समूचे समाज की बेहतरी का सपना देखने दिखाने वाली पत्रकारिता होगी भी कैसे?

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Amitaabh Srivastava : इकोनामिक और पालिटिकल वीकली की छवि एक अरसे से गंभीर वैकल्पिक और वैचारिक, विश्लेषणात्मक पत्रकारिता के झंडाबरदार वाली रही है। वरिष्ठ पत्रकार परंजाय गुहा ठाकुरता का इसके संपादक पद से इस्तीफ़ा और उसके पीछे सामने आई अब तक की वजहों से यह लगता है कि बदले माहौल में वैकल्पिक पत्रकारिता भी कारपोरेट दबाव से मुक्त नहीं है।

जनोन्मुखी पत्रकारिता का दावा करने वाले डिजिटल महारथियों के लिए भी इसमें सबक़ छुपे हैं। अगर सचमुच कोई विकल्प बनने की चाह है तो उसके लिए जोखिम उठाने के लिए भी तैयार रहना पड़ेगा। दोनों हाथों में लड्डू के ख़याली पुलाव नहीं चलेंगे। इसमें सवाल उस जनता या पाठक, दर्शक वर्ग पर भी है जो पत्रकारों को गाली तो बहुत देता है लेकिन उन्हें स्वतंत्र रूप से खड़े रहने में मदद करने के लिए आगे नहीं आता। समाज अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह चुराएगा तो ऐसे में किसी भी वंचित समुदाय, वर्ग की आवाज़ उठाने वाली और उनके अधिकारों से जुड़ी पत्रकारिता या समूचे समाज की बेहतरी का सपना देखने दिखाने वाली पत्रकारिता होगी भी कैसे?

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Arvind Shukkla : ये मायावती के इस्तीफ़े से बड़ी घटना थी लेकिन इस पर कोई बड़ी चर्चा नहीं हुई…बिना बहुत बड़े तामझाम और शोर शराबे की चलने वाली मैगज़ीन इकनामिक्स एंड पॉलीटिकल वीकली EPW के सम्पादक परंजय ठाकुरता गुहा ने इस्तीफ़ा दे दिया है। इस मैगज़ीन को एक ट्रस्ट चलाता है। यहां जो लिखा जाता रहा है वो अपना असर दिखाता है। इस बार जो सम्पादकीय लिखा गया वो अडानी की कम्पनी के ख़िलाफ़ था और उनकी कम्पनी ने कई करोड़ का नोटिस भेज दिया…

बताया जा रहा है नोटिस की रक़म बहुत ज़्यादा थी, और ट्रस्ट इसे ज़्यादा तूल नहीं देना चाहता था, लेख को लेकर विवाद के बाद गुहा जी ने इस्तीफ़ा दे दिया… पत्रकार जो ठहरे… जानकारों में चर्चा है कि इसके पीछे कई दिग्गज सफ़ेद पोश भी थे… यानी गुहा साहब मजबूर हुए होंगे … यानि एक और मज़बूत संगठन को झुकाया गया… लेकिन ख़बर नहीं बनी, चर्चा नहीं हुई.. कोई नहीं चला, कोई संगठन नहीं उतरा… अगर कुछ परदे के पीछे सच में हुआ है तो ये किसी एक व्यक्ति की हत्या (मैं पूर्व की घटनाओं को सही नहीं ठहराता) से कहीं ज़्यादा गम्भीर है ये एक़ क़ौम की हत्या जैसा होगा… ये सरकारों की निरंकुशता को बढ़ाएगा… सिर्फ़ आज की सरकार नहीं, आने वाली कई सरकारें आवाज़ के गले में गाँठे लगाएँगी..

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पत्रकार अमिताभ श्रीवास्तव और अरविंद शुक्ला की एफबी वॉल से.

मूल खबर…

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अडानी के खिलाफ खबर छापने पर हुए विवाद के बाद परंजॉय गुहा ठाकुरता ने EPW के संपादक पद से इस्तीफा दिया

https://www.youtube.com/watch?v=ZSWezgxj9ts

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