Parag Mandle-
कुणाल सिंह के संपादन में प्रकाशित कहानी पर केंद्रित पत्रिका वनमाली का पहला अंक मिला। कुणाल इससे पहले रवींद्र कालिया जी के सहायक के रूप में वागर्थ और नया ज्ञानोदय में काम कर चुका है इसलिए स्वतंत्र संपादक के रूप में उससे उम्मीदें सहज रूप से ऊँची हैं।

कुणाल में एक संपादक के रूप में अपनी अलग लकीर खींचने की पूरी काबिलियत है। इस अंक का संयोजन जिस तरह से उसने किया है, वह भविष्य को लेकर आश्वस्त करने वाला है। अब कुछ पुरानी हो चली पीढ़ी के कथाकारों पर ‘फोकस’ हो या फिर किसी एक शहर के कवियों पर एकाग्र सृजन यात्रा – इनका नवाचार आकर्षित करता है।
पत्रिका को देखते ही सहसा नया ज्ञानोदय का प्रेम कहानियों पर केंद्रित एक अंक याद आ गया, जिसमें मोनालिसा की तस्वीर के साथ प्रयोग करके आवरण बनाया गया था। पता नहीं यह यह मोनालिसा के प्रति कुणाल का प्रेम है या पुरातन का आकर्षण।
पत्रिका पूरी नहीं पढ़ पाया हूँ, मगर चंदन की कहानी चोट और उस पर व्यक्त अन्य रचनाकारों के विचारों को पढ़ गया हूँ। चंदन की कहानी अपने शिल्प और विषय की नवीनता दोनों से प्रभावित करती है। लेकिन उन पर फोकस सामग्री पाठकीय भूख को संतुष्ट नहीं कर पाती।
एक तो इस पीढ़ी के रचनाकारों पर केंद्रित सामग्री किसी पत्रिका में पाना दुर्लभ है, ऐसे में यदि कहीं ऐसा किया जा रहा है तो उस रचनाकार की सृजनात्मकता के विविध पहलू सामने आने जरूरी है।
उपासना की छोटी-सी टिप्पणी और अरुणेश की प्रकाशित कहानी चोट पर एक पृष्ठ की टिप्पणी के अलावा अविनाश मिश्र का लेख चंदन की रचनाओं पर है। मगर वह लेख किसी एबस्ट्रेक्ट पेंटिंग की तरह है। स्वतंत्र रूप से उसे पढ़ना रोचक हो सकता है, मगर चंदन के कृतित्व पर ज्यादा बेहतर ढंग से पढ़ने की आस रह जाती है।
हिंदी पत्रिकाओं की अपनी एक खेमाबंदी है, जिसमें किसी और का प्रवेश सामान्यतः आसान नहीं होता। वनमाली इससे बची तो कुणाल अपनी क्षमता और प्रतिभा से संपादन के नये प्रतिमान गढ़ने में कामयाब होगा, इसमें संदेह नहीं। बहरहाल वनमाली पत्रिका और कुणाल दोनों को भविष्य के लिए अनंत मंगलकामनाएं।