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सियासत

वोटबैंक की राजनीति में जलता युवाओं का भविष्य

नई दिल्ली। चाहे राम मंदिर निर्माण का मामला हो, चाहे हिन्दुत्व का मामला हो, चाहे धारा 370 को हटाना हो, तीन तलाक हो या फिर नागरिकता संशोधन कानून हर मामले में भाजपा का एकमात्र एजेंडा मुस्लिमों के खिलाफ माहौल बनाकर अपने परंपरागत हिन्दू वोटबैंक को एकजुट करना रहा है। जामिया मिमिलया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में पुलिस का कहर भी इसी बात को दर्शाता है। भाजपा के गठन से लेकर अब तक की राजनीति की समीक्षा करें तो इसकी पूरी राजनीति हिन्दुओं के वोटबैंक को बांधे रखने पर केंन्द्रित रही है। भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज अरुण जेटली को उदारवादी हिन्दुओं की श्रेणी में रखकर देखा जाता रहा है। यही वजह रही कि जार्ज फर्नांडीस और शरद यादव जैसे समाजवादी नेता एनडीए के संयोजक बने।

लाल कृष्ण आडवाणी ने भाजपा में जो पौध तैयार की है वह कट्टर हिन्दुत्व की राह पर चलने वाली है। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह तो आडवाणी की पौध के सबसे अधिक कटीले पेड़ माने जाते हैं। राजनीति की गहरी समझ रखने वाले लोग तभी समझ गये थे जब मोदी ने राजनाथ सिंह को गृहमंत्री पद से हटाकर अपने पुराने सहयोगी अमित शाह को गृहमंत्री बनाया था कि अब ये दोनों मिलकर गुजरात का एजेंडा पूरे देश में लागू करेंगे। मतलब मोदी के दूसरे शासनकाल में आरएसएस का एजेंडा पूरी तहर से लागू होगा।

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वही हुआ जिसकी आशंका व्यक्त की जा रही है। जब देश में बेरोजगारी, भुखमरी, महंगाई और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे विकराल समस्या का रूप धारण कर लिए थे, ऐसे समय में मोदी सरकार ने सारे मुद्दों को दरकिनार कर उन मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर लिया जो सीधे मुस्लिम के खिलाफ जाकर हिन्दुओं की सहानुभूति बटोरने वाले थे। यदि आप धारा 370 हटाने के बाद गृहमंत्री अमित शाह की भाषा उनके भाषण में देखिए तो वह बार-बार इस बात पर जोर दे रहे थे कि 370 धारा के हटने पर विपक्ष कह रहा था कि ‘देश में खून की नदियां बह जाएंगी पर देश में तो एक पटाखा भी नहीं फूटा है।Ó उनका मतलब साफ था कि उन्होंने विपक्ष के साथ ही देश के मुसलमानों को भी इतना डरा दिया है कि अब ये लोग कुछ भी करेंगे तब भी कौन कान तक नहीं फड़फड़ाएगा।

दूसरी बार प्रचंड बहुमत आने के बाद भले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सबको साथ लेकर चलने की बात कही हो। बाबा साहेब और संविधान की तारीख करते हुए एक नये भारत के निर्माण की बात कही हो पर उनके दूसरे कार्यकाल में अब तक जो कुछ भी हुआ है वह धर्म और जाति के आधार पर हुआ है। कहने को तो प्रधानमंत्री और गृहमंत्री बार-बार हिन्दुस्तान के मुस्लिमों को डरने की कोई जरूरत नहीं कहने की बात कर रहे हैं पर जमीनी हकीकत यह है कि मोदी सकार में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे देश का मुसलमान अपने को सुरक्षित महसूस करता। यदि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री का थोड़ा सा भी ध्यान देश के भाईचारे पर होता तो सुप्रीम कोर्ट के राम मंदिर बनने का रास्ता प्रसस्त करने के तुरंत बात ये लोग नागकिरता संशोधन कानून न लाते। दरअसल ये लोग अति आत्माविश्वास में वह सब कुछ करके दिखा देन चाहते थे जो लोग सोच भी नहीं सकते। प्रचंड बहुमत का मतलब यह नहीं है कि आप कुछ भी कर सकते हैं । इन लोगों ने यह सोच लिया था कि अब उनके डर से पूरा देश सहमा हुआ है। जो मर्जी आए करो।

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करते भी क्यों नहीं ? देश संविधान की रक्षा के लिए बनाए गए तंत्रों विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया के साथ ही देश के राष्ट्रपति भी उनकी कठपुतली की तरह काम जो करने लगे हैं। विपक्ष तो देश में न के बराबर ही है। विपक्ष ही क्यों मोदी और शाह ने भाजपा में भी सांसदों व दूसरे नेताओं को अपनी कठपुतली बनाकर रखा हुआ है। खुद भाजपा के अंदर जो बातें निकलकर सामने आती रही हंै उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि मोदी सरकार में मोदी-शाह के अलावा किसी तीसरे व्यक्ति का कोई वजूद नहीं। ऐसा नहीं है कि देश का विपक्ष कोई देश और समाज की सोच रहा हो। जो विपक्ष विभिन्न समस्याओं पर चुप रहा वही विपक्ष नागरिकता संशोधन कानून पर मुखर हो गया। मुस्लिम वोटबैंक जो दिखाई दे रहा है।

जो लोग नागरिकता संशोधन कानून के विरोध को मुस्लिमों का विरोध समझ रहे हैं वे गलती कर रहे हैं। इस आंदोलन में मुस्लिमों के साथ ही दलित और पिछड़ों के साथ ही सवर्ण समाज के लोग भी हैं। दरअसल यह मोदी सरकार के खिलाफ वह गुस्सा है जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दमनकारी नीतियों के चलते दबा रखा था। इस आंदोलन में न केवल मॉब लिंचिंग के पीड़ित युवा हैं बल्कि विपक्ष के उकसाए गये वे बेरोजगार भी हैं जो अपनी बेरोजगारी को लेकर मोदी सरकार से नाराज हैं। इस आंदोलन में भीम आर्मी पूरी तरह से सक्रिय है। भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया है। नई दिल्ली से स्वराज इंडिया पार्टी के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव और माकपा महामंत्री सीताराम येचुरी की गिरफ्तारी का मतलब स्वराज अभियान के साथ ही वामपंथी संगठन इस आंदोलन में पूरी तरह से सक्रिय हैं।

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नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हो रहे आंदोलन यह बात प्रमुखता से देखने को मिल रह है कि न सत्ता पक्ष और न ही विपक्ष के नेताओं का कुछ बिगड़ रहा है। भविष्य बर्बाद हो रहा है उकसाए गए युवाओं का। विरोध में देश के उबलने के बाद सत्तापक्ष ने पक्ष में संगठन उतारने शुरू कर दिये हैं। आज राजीव चौक पर कानून के समर्थन में आंदोलन हो रहा है। हाल ही में दिल्ली यूनिवर्सिटी ने बिल के पक्ष में आंदोलन किया। बालीवुड में भी समर्थन और विरोध में प्रदर्शन किया गया। मतलब सत्तापक्ष और विपक्ष ने प्रदर्शनकारियों के टकराव की पूरी व्यवस्था कर दी है। पूर्वोत्तर के बाद जब यह आंदोलन दिल्ली और उत्तर प्रदेश में आया तो इसने विकराल रूप ले लिया है। उत्तर प्रदेश में 10 लोगों के मरने की खबर है। दिल्ली जामिया मिलिया, जाफराबाद, सीलमपुर, जामा मस्जिद पर हिंसक प्रदर्शन हुए हैं। उत्तर प्रदेश के लखनऊ, गोरखपुर, गाजीपुर, संभल, मेरठ, अलीगढ़, बिजनौर, मुजफ्फरनगर में आंदोलन के घुसने का मतलब स्थिति और बिगड़ेगी।

वैसे भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सरकारी नुकसान की भरपाई उपद्रवियों की संपत्ति नीलाम करके वसूलनी की बात कही है। बिहार में भी आंदोलन ने उग्र रूप ले लिया है। आज बिहार में राजद कार्यकर्ता उत्पात मचा रहे हैं। इस आंदोलन में यह बात प्रमुखता से उभरकर कर आई है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की सक्रिय भागीदारी रही है। भाजपा तो सोनिया गांधी के ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ वाले बयान को आंदोलन से जोड़कर देख रही है। असददुदीन ओवैसी को भाजपा ने आज का जिन्ना करार दिया है। उत्तर प्रदेश में आंदोलन में समाजवादी पार्टी के नेता भी सक्रिय भूमिका निभाते देखे जा रहे हैं। कुल मिलाकर सत्ता पक्ष और विपक्ष तो अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं पर जिन युवाओं के रोजगार के लिए बड़ा आंदोलन होना चाहिए था उन युवाओं को वोटबैंक की राजनीति के लिए आंदोलन की आग में झोंक दिया गया है। आंदोलन की वजह से आम आदमी के जान माल के नुकसान के साथ ही जो परेशानी उसे हो रही है उसे देखने या समझने वाला कोई नहीं?

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सोशल एक्टिविस्ट चरण सिंह राजपूत का विश्लेषण.

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