मिलिंद खांडेकर-
जॉर्ज सोरस 93 साल के है , उनकी संपत्ति लगभग 8 बिलियन डॉलर है यानी क़रीब एक लाख करोड़ रुपये. अरबपतियों की लिस्ट में 250 नंबर पर हैं. इसमें नीचे आने का एक कारण है कि वो 18 बिलियन डॉलर दान कर चुके हैं. दान किया है ओपन सोसायटी फ़ाउंडेशन को, यही संस्था आरोपों के जड़ में है. ये संस्था ‘लोकतंत्र को मज़बूत’ करने के लिए काम करती है. इसी पर सरकारों को अस्थिर करने का आरोप लगता रहा है.
पहले बात करेंगे सोरस की. उनका जन्म हंगरी के यहूदी परिवार में हुआ. हंगरी में नाजी यहूदियों को चुन चुनकर मार रहे थे, तंग कर रहे थे. सोरस के परिवार ने फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों के आधार पर पहचान बदल ली . उन्होंने ख़ुद कहा कि वो यहूदियों की संपत्ति ज़ब्त करने में मदद करते थे. पाला बदल कर उन्होंने जान बचा ली. फिर लंदन चले गए . लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में पढ़ाई की. वहाँ से अमेरिका गए और बाज़ार में सक्रिय हो गए.
1973 में जॉर्ज सोरस फंड मैनेजमेंट की स्थापना की . सोरस का नाम हुआ करेंसी की ट्रेडिंग से , वो कहते हैं कि पैसे कमाने में नैतिक अनैतिक कुछ नहीं होता है. पैसे कमाने के कारण मैं बहुत सारी चीज़ें कर पाता हूँ.
हिंडनबर्ग के कारण शॉर्ट सेलिंग चर्चा में आयी है. शॉर्ट पोजिशन का मतलब है कि आपने शेयर या करेंसी उधार लिए और बाज़ार में बेच दिए. आपने जब बेचे है तब दाम ज़्यादा है लेकिन जब लौटाएँगे तब तक भाव गिर जाएँगे.आपको पहले से भरोसा है कि दाम गिरेंगे. आप फिर सस्ते में बाज़ार से ख़रीदकर उधारी लौटा देंगे. इस सौदे का मार्जिन आपका मुनाफ़ा है. मान लीजिए हिंडनबर्ग ने अदाणी के शेयर महीने भर पहले उधार लिए. तब दाम था ₹2000 . वो शेयर किसी और को बेच दिया . उधारी का शेयर जब लौटाने का टाइम आया तो शेयर का भाव ₹1000 . हिंडनबर्ग ने उसे बाज़ार से ख़रीदा और उधार लौटा दिया. मतलब हर शेयर पर उसने एक हज़ार रुपये कमा लिए, उसे पता था कि इसके दाम गिरेंगे.
जॉर्ज सोरस यही काम करेंसी के बाज़ार में करते है. 1992 में जॉर्ज सोरस ने ब्रिटेन की करेंसी पाउंड को शॉर्ट सेल किया था. उन्होंने इस सौदे से एक बिलियन डॉलर कमाए थे. बैंक ऑफ इंग्लैंड मुश्किल में पड़ गईं थीं. पाउंड के दाम गिरते रहें. यही हाल 1997 में मलेशिया, थाईलैण्ड और इंडोनेशिया की करेंसी का हुआ. सोरस ने इन देशों की करेंसी में शॉर्ट पोजिशन ले ली. करेंसी में गिरावट आईं. पूर्वी एशिया के देशों के सामने संकट खड़ा हो गया. इसकी आँच भारत तक भी आयी थी.
शॉर्ट सेलिंग से कई देशों के नागरिकों की ज़िंदगी मुश्किल में डाल देने वाले सोरस की ज़िंदगी का एक पहलू है चैरिटी. उन्होंने 100 देशों में ओपन सोसायटी फ़ाउंडेशन के ज़रिए काम किया है.इसकी प्रेरणा उन्हें LSE के प्रोफ़ेसर कार्ल पॉपर की किताब से मिली थी. इस किताब में लिखा गया है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था से ही समाज फल फूल सकता है. बोलने की आज़ादी और लोगों के निजी अधिकारों की रक्षा जरुरी है. इसी कारण सोरस की बातों में लोकतंत्र का ज़िक्र बार बार होता है.
2020 में भी सोरस ने नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ बयान दिया था. तब कश्मीर और CAA निशाने पर था और अब गौतम अदाणी. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोरस को जवाब दिया है.सोरस ने कहा था कि भारत में लाखों मुसलमानों की नागरिकता चली जाएगी. ऐसा कुछ नहीं हुआ. सोरस को उन्होंने न्यू यॉर्क में रहने वाला बूढ़े अमीर कहा है जो ख़तरनाक है. जयशंकर की सारी उपमाएँ ठीक है. सोरस ख़तरनाक तो ही है .
( ये इकनॉमी और बिज़नेस को समझने-समझाने की कोशिश है . हर रविवार सुबह दस बजे हिसाब किताब छपता है . यहाँ छपे विचार मेरे अपने है और इंडिया टुडे ग्रुप से इसका कोई लेना देना नहीं है)
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