: राजस्थान के डीआई पीआर में अखबारों की मान्यता का फर्जीवाड़ा : 4 पेज के अखबार को राज्यस्तरीय दर्जा, लाखों का चूना : जोधपुर। राजस्थान के सूचना एवं जन सम्पर्क निदेशालय के आला अधिकारी अखबारों की मान्यता की कार्यवाही मे बड़े स्तर पर घपला कर सरकार को चूना लगा रहे हैं। ऐसा ही एक मामला सामने आया है जोधपुर में फर्जी प्रिंट लाईन से छप रहे 4 पेज के अखबार दैनिक प्रतिनिधि का। दैनिक प्रतिनिधि का मालिक खुद को राज्यसभा सांसद अभिषेक मनु सिंघवी का रिश्तेदार बताता है। उक्त समाचार पत्र का एक ही संस्करण जोधपुर में छप रहा है। इस चार पेज के अखबार के पीछे प्रिन्ट लाईन में नियम तोड़ कर प्रिन्टिंग प्रेस के पते की सूचना तक दर्ज नहीं की जा रही हैं जबकि प्रेस एक्ट में मुद्रणालय के पूरे पते की सूचना आवश्यक रूप से दी जाती है। जिस भण्डारी ऑफसेट से यह अखबार छपना बताया जा रहा है इस नाम की कोई प्रिंन्टिंग प्रेस अस्तित्व में नही है।
उक्त समाचार पत्र को डीआई पीआर के अधिकारियों ने कभी जिला स्तर तो कभी संभाग व राज्य तो वापस जिला स्तर का समाचार पत्र मानते हुए वर्गीकृत किया। जब जब भी मेहरबानी की उस समय वर्गीकरण की प्रक्रिया बदल दी गई। अंत में गई कांग्रेस सरकार ने फिर संभाग जोधपुर के लिए राज्यस्तरीय अखबार बना लिया। जबकि संभाग स्तर पर अलग से राज्यस्तरीय मान्यता देने का प्रावधान राजस्थान विज्ञापन नियम 2001 में कहीं भी नहीं है।
राज्य सरकार के विज्ञापन नियम में जयपुर सहित राज्य के दो स्थानों से प्रकाशित होने वाले 10 पेज के अखबार को ही राज्यस्तरीय मान्यता विभिन्न पात्रताएं पूरी करने पर देने का प्रावधान है। यह अखबार तो सिर्फ 4 पेज का और वह भी सिर्फ जोधपुर से प्रकाशित होने वाला है। अब तक डीआई पीआर से राज्यस्तर के नाम पर लाखों का चूना लगा चुका है। जोधपुर विकास प्राधिकरण भी इस अखबार को राज्यस्तरीय मानते हुए वाणिज्यिक दरों पर भुगतान की कार्यवाही कर जेडीए को 25 लाख से अधिक का चूना लगाने की प्रक्रिया को अंतिम रूप में चला रहा है।
डीआई पीआर में आखिर 4 पेज के अखबार को राज्यस्तरीय बनाने वाला कौन है? इसकी जांच करवाई जाये तो कईं ऐसे मामले सामने आ सकते हैं। बेचारे कई अखबार जो 10 पेज के निकलते हैं कईं जगहों से प्रकाशित होते हैं उन पर डीआई पीआर मेहरबानी नहीं कर रहा है। इस चार पेज के अखबार को राज्यस्तरीय बनाने में किसने क्या व कितने लिये, यह दावा तो नहीं कर सकते लेकिन इस दाल को बनाने मे काले रंग का इस्तेमाल जरूर हुआ है वरना नौकरी बेच कर ऐसे काम कौन करता?