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टेलीग्राफ ने क्यों लिखा है कि खडगे को ईडी द्वारा बुलाए जाने का समय ‘परफेक्ट’ था!

संजय कुमार सिंह-

अच्छे दिन बनाम तुच्छता की हद…. अब विपक्षी नेताओं को सरकारी एजेंसियों के जरिए न सिर्फ परेशान किया जाता है बल्कि एजेंसियों को यह ख्याल रखने की जरूरत नहीं महसूस हो रही है कि सांसदों से संसद के कार्यकाल के बाद भी पूछताछ हो सकती है।

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पहले संजय राउत को कार्यकाल के बीच में बुलाया गया और नहीं जाने पर गिरफ्तार कर लिया गया अब मल्लिकार्जुन खडगे को कार्यकाल के दौरान बुलाया गया। खडगे उपराष्ट्रपति पद की विपक्ष की उम्मीदवार मार्ग्रेट अल्वा के लिए एक रात्रिभोज का आयोजन करने वाले थे पर उन्हें रात साढ़े आठ बजे छोड़ा गया।

टेलीग्राफ ने लिखा है कि खडगे को ईडी द्वारा बुलाए जाने का समय ‘परफेक्ट’ था और इससे सरकार की तुच्छता की हद दिखाई दे रही है। अखबार की इस खबर का मुख्य शीर्षक है, स्वर्ग में हमलोगों के लिए एक और दिन।

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अगर कप्पन का हाथरस में कोई काम ही नहीं था!!

रिपोर्टिंग के लिए हाथरस जाते हुए गिरफ्तार किए गए केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को जमानत नहीं मिली। उन्हें 5 अक्तूबर 2020 को मथुरा में गिरफ्तार किया गया था। कप्पन पर पोपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के चार लोगों के साथ यात्रा करने का आरोप है – जबकि पीएफआई कोई प्रतिबंधित संगठन नहीं है। द टेलीग्राफ की खबर के अनुसार न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की एकल पीठ के अनुसार, “कप्पन को हाथरस में कोई काम नहीं था” और “सहअभियुक्तों, जो मीडिया के नहीं हैं, के साथ उनकी यात्रा उनके खिलाफ अहम सबूत है”।

मैं नहीं जानता कानूनी स्थिति या पूरा मामला अथवा आरोप क्या है लेकिन कोई आधिकारिक (कंपनी के आदेश और खर्च) पर कार से कहीं जाएं और खाली सीट पर साथ में दो-तीन मित्रों को बैठा ले यह कोई अपराध नहीं है। ना ही बैठाए जाने वाले लोगों की कोई अधिकृत सूची है ना ही किसे साथ नहीं लेना है और किसे लेना है ऐसा कोई भेद या कानून है। ऐसे में किसी की आधिकारिक यात्रा को (कप्पन की नौकरी यही थी) कह दिया जाए कि उसका वहां कोई काम ही नहीं था और वह जिन लोगों के साथ था वही उसके खिलाफ है – बड़ी सोचने वाली स्थिति है। सहअभियुक्त कोई फरार अपराधी या घोषित अभिुयक्त होते तो बात अलग थी।

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अव्वल तो मेरा मित्र अपराधी हो सकता है लेकिन जब तक अपराध में मेरी भागीदारी नहीं हो – मैं अपराधी नहीं होऊंगा। पुलिस को जांच करने का भी अधिकार है पर वह 22 महीने नहीं चलनी चाहिए और इसीलिए कहा जाता है कि जमानत नियम है, जेल नहीं। पर जाहिर है कानून मेरा विषय नहीं है। मैं सिर्फ कप्पन की जगह खुद को रखकर देख रहा हूं तो मुझे मामला अटपटा लग रहा है या कहिए समझ में नहीं आ रहा है। दिलचस्प यह है कि जब कप्पन को ही जमानत नहीं मिल रही है तो उसके सहअभियुक्तों की तो बात ही नहीं हो रही है जो क्यों और कैसे अपराधी हैं यह समझना आसान नहीं है।

दिलचस्प यह है कि यह सब तब हो रहा है जिसे अच्छे दिन कहा जाना चाहिए। पर सच यह है कि इन दिनों आम आदमी को तो छोड़िये विपक्षी नेताओं को सरकारी एजेंसियों के जरिए न सिर्फ परेशान किया जाता है बल्कि एजेंसियों को यह ख्याल रखने की जरूरत नहीं महसूस हो रही है कि सांसदों से संसद के कार्यकाल के बाद भी पूछताछ हो सकती है। पहले संजय राउत को कार्यकाल के बीच में बुलाया गया और नहीं जाने पर गिरफ्तार कर लिया गया अब मल्लिकार्जुन खडगे को कार्यकाल के दौरान बुलाया गया। खडगे उपराष्ट्रपति पद की विपक्ष की उम्मीदवार मार्ग्रेट अल्वा के लिए एक रात्रिभोज का आयोजन करने वाले थे पर उन्हें रात साढ़े आठ बजे छोड़ा गया। टेलीग्राफ ने लिखा है कि खडगे को ईडी द्वारा बुलाए जाने का समय ‘परफेक्ट’ था और इससे सरकार की तुच्छता की हद दिखाई दे रही है। अखबार की इस खबर का मुख्य शीर्षक है, स्वर्ग में हमलोगों के लिए एक और दिन।

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(आज द टेलीग्राफ के पहले पन्ने पर प्रकाशित खबरों के अनुसार। संजय राउत का मामला पहले का है और पहले छपा था।)

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