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पटना के युवा कार्टूनिस्ट गौरव ने बनायी 11 मिनट की अपनी पहली शॉर्ट फिल्म- ‘काश…थिंक बीफॉर एक्ट’

आदमी जन्म लेता है. मां की गोद से लुढ़क कर चलना सीखता है, फिसलते-फिसलते जवान हो जाता है, संभलते-संभलते बूढ़ा और फिर लुढ़क कर इस दुनिया को अलविदा कह देता है. लेकिन हमारे बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इस नैसर्गिक जीवन-चक्र को बीच में ही तोड़ने का आत्मघाती निर्णय ले बैठते हैं. सही मायने में किसी भी रिश्ते से कहीं महत्वपूर्ण है, आपका होना. महानगरीय जीवन, तो ऐसे ही एक त्रासदी है. टॉल्सटॉय ने ठीक ही कहा है “शहर में कोई खुद को मृत समझ कर बहुत दिनों तक जीवित रह सकता है.” अचानक हमारे बीच से किसी जिंदादिल इनसान का यूं ही साथ छोड़ कर चले जाना हमें स्तब्ध तो करता ही है, साथ ही सोचने पर मजबूर भी कर देता है.

<p>आदमी जन्म लेता है. मां की गोद से लुढ़क कर चलना सीखता है, फिसलते-फिसलते जवान हो जाता है, संभलते-संभलते बूढ़ा और फिर लुढ़क कर इस दुनिया को अलविदा कह देता है. लेकिन हमारे बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इस नैसर्गिक जीवन-चक्र को बीच में ही तोड़ने का आत्मघाती निर्णय ले बैठते हैं. सही मायने में किसी भी रिश्ते से कहीं महत्वपूर्ण है, आपका होना. महानगरीय जीवन, तो ऐसे ही एक त्रासदी है. टॉल्सटॉय ने ठीक ही कहा है "शहर में कोई खुद को मृत समझ कर बहुत दिनों तक जीवित रह सकता है." अचानक हमारे बीच से किसी जिंदादिल इनसान का यूं ही साथ छोड़ कर चले जाना हमें स्तब्ध तो करता ही है, साथ ही सोचने पर मजबूर भी कर देता है.</p>

आदमी जन्म लेता है. मां की गोद से लुढ़क कर चलना सीखता है, फिसलते-फिसलते जवान हो जाता है, संभलते-संभलते बूढ़ा और फिर लुढ़क कर इस दुनिया को अलविदा कह देता है. लेकिन हमारे बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इस नैसर्गिक जीवन-चक्र को बीच में ही तोड़ने का आत्मघाती निर्णय ले बैठते हैं. सही मायने में किसी भी रिश्ते से कहीं महत्वपूर्ण है, आपका होना. महानगरीय जीवन, तो ऐसे ही एक त्रासदी है. टॉल्सटॉय ने ठीक ही कहा है “शहर में कोई खुद को मृत समझ कर बहुत दिनों तक जीवित रह सकता है.” अचानक हमारे बीच से किसी जिंदादिल इनसान का यूं ही साथ छोड़ कर चले जाना हमें स्तब्ध तो करता ही है, साथ ही सोचने पर मजबूर भी कर देता है.

पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करते हुए पटना के युवा कार्टूनिस्ट गौरव ने अपनी पहली शॉर्ट फिल्म बनायी है, जिसका टाइटल है ‘काश’. लगभग 11 मिनट की इस फिल्म में एक ऐसे लड़के की कहानी है, जो गांव से शहर पढ़ने आता है. यहां की चकाचौंध और प्यार की जाल में फंस कर वह अपने जीवन की कहानी को पूर्णविराम देने का फैसला कर लेता है. अपने माता-पिता के नाम अपनी अंतिम चिट्ठी लिखते वक्त उसके जेहन में क्या-क्या ख्याल आते हैं और आखिरकार उसके साथ क्या होता है? यही फिल्म का मुख्य थीम है. फिल्म उन युवाओं को मोटिवेट करने का एक प्रयास है, जो अपने माता-पिता के त्याग और सपनों को भूल कर शहर के ग्लैमर में खो जाते हैं और आखिरकार एक याद बन कर रह जाते हैं. फिल्म 07 अगस्त, 2016 को यूट्यूब के जरीये रीलीज की गयी है.

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गौरव अब तक पटना के प्रमुख अखबारों में कार्टूनिस्ट के रूप में काम कर चुके हैं, फिलहाल वे प्रभात खबर के साथ जुड़े हैं. समाचारपत्र में काम करने के साथ-साथ रंगमंच व नुक्कड़ नाटकों में गौरव की खासी दिलचस्पी है. फिल्म और फिल्मी दुनिया के सागर में डुबकी लगाते रहने में गौरव को बड़ा आनंद आता है, यही वजह रही कि गौरव ऑफिस के बाद बचे समय में अपनी फिल्म पर काम करते रहे. इस फिल्म में अभिनय करने के साथ-साथ, गौरव फिल्म के  लेखक, निर्माता, निर्देशक भी हैं.

फिल्म लिंक

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https://www.youtube.com/watch?v=HmdMy9q45Us

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आभार
विवेकानंद सिंह
कॉपी एडिटर
प्रभात खबर
पटना
[email protected]

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