Nitin Thakur : एनडीटीवी इंडिया पर बंदिश का फैसला कितना खतरनाक है, ये बात तीन तरह के लोगों की समझ में नहीं आएगी। 1. वो जिन्होंने मजबूरी में पत्रकारिता के पेशे को अपनाया है। 2. किसी और एजेंडे को पूरा करने के लिए इस पेशे में घुस आए लोग। 3. ग्लैमर से अंधे होकर पत्रकारिता की गलियों में आवारगर्दी कर रहे पत्रकार जैसे दिखनेवाले लोग। इनके लिए रिपोर्टिंग करते किसी पत्रकार का पिटना हास्य का विषय है। किसी पत्रकार या पत्रकारिता संस्थान पर चलनेवाले सरकारी डंडे को ये इज़्ज़त देते हैं। दरअसल इन्हें अपने पेशे पर शर्म है लेकिन ये लोग इस पेशे के लिए खुद शर्म का विषय हैं।
Nadim S. Akhter : एनडीटीवी पर एक दिन का ही सही, पर बैन लगाकर मोदी सरकार ने अपनी अब तक की सबसे बड़ी फ़ज़ीहत करवा ली है। उनकी सरकार का ये फैसला मोदी कार्यकाल के बाकी सारे बड़े फैसलों और नीतियों पे भारी पड़ेगा। कारण ये है कि इस देश की जनता ऐसे मामलों में सरकारों को माफ़ नहीं करती क्योंकि आज भी मीडिया की आज़ादी पे हमला वो खुद पे हमला मानती है। मैंने शुरू में ही कहा था कि देर-सबेर ये गुजरात की प्रयोगशाला ये पूरे देश पे लागू करने की कोशिश करेंगे। ये उसकी आहट भी है और शंखनाद भी। अगर दिल्ली का मीडिया एकजुट नहीं हुआ तो उसे अंदर से सदा के लिए तोड़ दिया जाएगा और इसका सबसे बड़ा नुकसान इस देश को होगा। फैसले की घडी है।
Narendra M Chaturvedi : एनडीटीवी इंडिया पर सरकारी पाबन्दी की कार्रवाई घोर निंदनीय है. ये सरकार के खतरनाक मंसूबों की एक झलक है. हर पत्रकार को , संपादक को, पत्रकार संस्था को निजी और सामूहिक स्तर पर इसका विरोध करना चाहिए भले ही चैनल से आपको ढेरों शिकायतें हो. एडिटर्स गिल्ड के अलावा बीईए और बाकी संस्थाओं, संगठनों को भी इस पर सख्त रुख अपनाना चाहिए. इमरजेंसी की आड़ में कांग्रेस को कोसने वाली सरकार हकीकत में आज़ाद प्रेस की अवधारणा से कितनी नफरत करती है . ये उसकी मिसाल है. ये इमरजेंसी नहीं तो और क्या है शर्मनाक.
Mukesh Kumar : अगर भारतीय मीडिया इमर्जेंसी की आहट को सचमुच सुन पा रहा है तो कायदे से उन चौबीस घंटों में तमाम न्यूज़ चैनलों को प्रसारण रोक देना चाहिए जिस समय एनडीटीवी पर बैन लगाया गया है और अगले दिन अख़बार भी नहीं निकलने चाहिए। हालाँकि मीडिया जिस तरह से सरकार की गोद में बैठ चुका है या उससे आतंकित होकर व्यवहार कर रहा है उसे देखते हुए इस तरह के प्रतिरोध की उम्मीद बेमानी लगती है लेकिन अगर वह समझ पाया कि ये हमला केवल एनडीटीवी या, मीडिया पर नहीं बल्कि समूचे लोकतंत्र पर है तो शायद उनका विवेक एवं अंतरात्मा उसे सही राह दिखा देंगे। आमीन।
Arvind Katiyar : नौ नवंबर की रात 24 घंटे के लिए सरकार का एनडीटीवी के प्रसारण पर रोक का फैसला तुगलकी है, इससे सरकार की किरकिरी ही होगी, कहीं हिटलर जिंदा होगा तो कहीं मोसलनी। अभी से कुछ लालपंथी पत्रकार फेसबुक पर हिटलर को लेकर संजीदा हैं…
Yusuf Ansari : NDTV पर एक दिन का बैन अभिभव्यक्ती की आजादी के खिलाफ है. ये फैसला मोदी सरकर के मानसिक दिवालियेपन का सबूत है. मोदी सरकार ने देश में इमरजेंसी जैसे हालत तो पैदा कार ही दिये हैं. अब इमरजेंसी का एलान भी कर ही दे. कम से कम देश मुगालते में तो नहीं रहेगा.
Vineeta Yadav : No channel should off air in any govt ! Many ques stands for this decision ! Its india nt pak …
Krishna Kant : इस देश को लाखों रवीश कुमार चाहिए। इस देश को दलालों की ज़रूरत नहीं, लाखों सवाल उठाने वाले चाहिए।
Pawan Lalchand : NDTV इंडिया पर गलत कवरेज के बहाने बैन की कड़ी निंदा की जानी चाहिये.
Sheeba Aslam Fehmi : मोदी जी NDTV को भी कन्हैया बनाएँगे! सिर्फ ‘रविश कुमार’ लिख दो तो पोस्ट हिट हुई जा रही है! मोदी जी, ये क्या किया?
Vivek Dutt Mathuria : आज NDTV की बारी और कल आपकी….आप तय कीजिए कि आप रीढ वाले प्राणी हैं या रेंगने वाले…वक्त इतिहास लिख रहा है ….
Anita Gautam : NDTV की खिलाफत से सरकार कठघड़े में हो सकती है, पर रवीश कुमार की आलोचना चाँद पर थूकने जैसा है।
सौजन्य : फेसबुक