उत्तर प्रदेश में खाकी अपनी करतूतों के चलते अक्सर ही शर्मसार होती रहती है, लेकिन जब भ्रष्टाचार के आरोप विभाग के मुखिया पर ही लगे तो हालात कितने खराब हैं, इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। खाकी पर अबकी से उसके दो ‘हाकिमों’ (पूर्व पुलिस महानिदेशकों (डीजीपी) के कारण दाग लगा है। दोनों डीजीपी ने अपनी तैनाती के दौरान ट्रांसफर-पोस्टिंग को धंधा बना लिया।
इस धंधे से इन अधिकारियों ने करोड़ों की दौलत बटोरी। आगरा के जालसाज सपा नेता शैलेंद्र अग्रवाल से हाथ मिला कर प्रदेश के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक एसी शर्मा के साथ-साथ एएल बनर्जी ने डीजीपी रहते खूब मनमानी की। यह राज खुलता भी नहीं लेकिन शैलेंद्र जब पुलिस की ही नजरें टेड़ी हुईं तो उसके मोबाइल ने भ्रष्टाचार का सारा राजफाश कर दिया। जिससे पता चला कि कथित सपा नेता ने प्रदेश भर के दारोगाओं के प्रमोशन डीजीपी एएल बनर्जी और एसी शर्मा से कराए, जिसमें प्रत्येक का रेट आठ लाख रुपये तय था। कभी इन पुलिस महानिदेशकों के अधीन काम कर चुके पुलिस के अधिकारी कहते हैं शैलेन्द्र और दोनो तत्कालीन हाकीमों के बीच करीब 3.20 करोड़ रुपये का लेनदेन हुआ।
प्रदेश में सपा सरकार में बड़े पैमाने पर दारोगाओं के प्रमोशन हुए। इनमें रेग्यूलर के सात आउट ऑफ टर्न प्रमोशन भी हुए थे। जेल में बंद शैलेंद्र अग्र्रवाल इन प्रमोशन के लिए डीजीपी और दारोगाओं के बीच की कड़ी बन गया था। उसकी नजदीकी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दोनों हाकिमों ने 15 अक्टूबर 2014 को मोबाइल पर एसएमएस के जरिए ही तबादलों के रेट तय कर दिये।शैलेंद्र ने एसएमएस के जरिये तबादले का रेट सात लाख रुपये रखने का प्रस्ताव रखा तो डीजीपी ने एक लाख और बढ़ा दिए। अब तक की जांच से खुलासा हुआ है कि सपा नेता के माध्यम से प्रदेश में करीब 40 दरोगाओं को प्रोन्नति देकर इंस्पेक्टर बनाया गया।ये सभी वे दारोगा थे जो प्रमोशन के लिये अधिकतर मानकों को पूरा तो करते थे लेकिन छोटी-मोटी जांचों के कारण या तो उनके प्रमोशन की फाइल बंद पड़ी थी या उसकी गति धीमी थी।परंतु सपा नेता के बीच में पड़ते ही इन सभी फाइलों ने रफ्तार पकड़ ली और इन दरोगाओं को प्रमोशन भी मिल गया।सूत्रों के अनुसार 40 दारोगाओं से लिए पूर्व डीजीपी को 3.20 करोड़ रुपये दिए गये। इसके अलावा शैलेंद्र ने अपना कमीशन अलग से वसूला।
गौरतलब हो आईजी (नागरिक सुरक्षा) अमिताभ ठाकुर ने बनर्जी व शर्मा पर पोस्टिंग, प्रमोशन और गंभीर अपराधों की जांच बदलवाने के नाम पर 7-25 लाख रुपये तक की घूस लेने का आरोप लगाया था। आईजी ने आगरा में गिरफ्तार किए गए जालसाज शैलेन्द्र अग्रवाल के लैपटॉप व मोबाइल फोन की फरेंसिक जांच के बाद सामने आए तथ्यों के आधार पर ये आरोप लगाए थे। कानून व्यवस्था का राज स्थापित करने और अपराध पर अंकुश लगाने का दायित्व निभाने वाले शीर्ष पुलिस अधिकारी जब इस तरह घपलों-घोटालों के आरोपों से घिरे हांेगे तो इनके द्वारा अपना कर्तव्य कितनी निष्ठा से निभाया जाता होगा ? बहरहाल,इस मामले में अंतिम जांच परिणाम क्या आएंगे और किस गति को प्राप्त होंगे, यह भविष्य के गर्भ में है किंतु जितने तथ्य उजागर हुए हैं, उससे न केवल पूरा विभाग शर्मसार हुआ है बल्कि सरकार भी अपनी जवाबदेही और जिम्मेदारी से बच नहीं पा रही है।आगरा जेल में बंद एक दलाल नेता दो पूर्व महानिदेशकों के साथ मिलकर पुलिस महकमे में पैसे लेकर प्रोन्नति के काम में लगा था। पहले राज खुला कि उसके संबंध एक पूर्व पुलिस महानिदेशक से थे लेकिन अब जांच आगे बढ़ी तो एक और पूर्व महानिदेशक से भी संबंध उजागर हुए हैं। हालांकि, पहले दोनों ने ही अपने संबंध से इन्कार किया पर जब तथ्य सार्वजनिक हुए तो कहा कि उसके संबंध सभी से थे। उसका अक्सर पुलिस मुख्यालय आना जाना था। अफसर उसके साथी और कनिष्ठ उसके दबाव में रहते थे।वैसे,यह नहीं कहा जा सकता कि पूरा महकमा ही दागदार है। आखिर, दलाल नेता को जेल पहुंचाने और दलाली के तथ्य उजागर करने वाले भी इसी महकमे के लोग हैं।
ओहदेदार पदों पर बैठे खाकी वर्दी वालों द्वारा महकमें को कलंकित किये जाने से आईपीएस एसोसियेशन को अपनी छवि की चिंता सताने लगी है जो जायज भी है।मामला खुलने के बाद निष्पक्ष जांच और ऐसे दागी अफसरों को चिह्न्ति कर जेल भिजवाने की जिम्मेदारी अब सरकार पर ही है।अफसरों की पोस्टिंग और प्रमोशन को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे दोनों पूर्व डीजीपी के खिलाफ आईपीएस एसोसिएशन ने भी मोर्चा खोल दिया है। गाजियाबाद के एसएसपी धर्मेन्द्र यादव ने एसोसिएशन से दोनों अधिकारियों के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाने की मांग की थी। इसके बाद एसोसिएशन ने बैठक बुलाई और मसले पर चर्चा हुई।एसोसिएशन ने मुख्य सचिव व डीजीपी से दोनों अफसरों के खिलाफ जांच करवाकर कार्रवाई की मांग की है। आईपीएस एसोसिएशन के सदस्य धर्मेन्द्र यादव ने संगठन के सचिव आईजी एसटीएफ सुजीत पांडेय को पत्र लिख कर मांग रखी है कि एसोसिएशन की मीटिंग में भ्रष्टाचार के कारण चर्चा में आए दोनों पूर्व डीजीपी के नाम उजागर किए जाएं और उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाया जाए।मीटिंग के बाद एसोसिएशन के उपाध्यक्ष जाविद अहमद और सचिव सुजीत पांडेय ने मुख्य सचिव आलोक रंजन और डीजीपी एके जैन से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि एसोसिएशन सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही मुहिम का पुरजोर समर्थन करती है।जबकि डीजीपी एके जैन ने भी डीआईजी रेंज आगरा लक्ष्मी सिंह के साथ जालसाज शैलेन्द्र अग्रवाल और उससे जुड़े मुकदमों व शिकायतों पर हो रही कार्रवाई व जांच की समीक्षा की। उन्होंने डीआईजी रेंज को निर्देश दिए हैं कि आरोपित किसी भी स्तर का हो, उसे बख्शा नहीं जाए।
बात शैलेन्द्र की कि जाये तो वह दो पूर्व डीजीपी का ही दलाल नहीं था, बल्कि उसके फंदे में एक दर्जन से ज्यादा आईएएस व आईपीएस थे। शैलेंद्र ने आम लोगों को ठगा तो अफसरों को भी तगड़ी चपत लगाई।आम लोग तो मुकदमा लिखाने आगे आ भी गए लेकिन अफसर हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। अभी तक शैलेंद्र के खिलाफ 27 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं। इसमें एक मुकदमा लखनऊ निवासी रिटायर डीआईजी अनिल दास की पत्नी संगीता दास ने लिखाया था। आगरा में तैनात रहे एक आईएएस के दो करोड़ रुपये शैलेंद्र डकार गया था। पैसा नंबर दो का था इसलिए वे तगादा नहीं कर पाए।शैलेन्द्र ने कई बड़े नेताओं को भी अपने जाल में फंसा रखा था। सपा के अलावा बसपा के शासन में भी उसकी खूब धमक थी। सूत्रों की मानें तो लखनऊ के एक होटल में उसके नाम से हमेशा कमरे बुक रहते थे। वहां सिर्फ शैलेंद्र अग्रवाल का नाम लेना होता था।शैलेंद्र पहले गिफ्ट देकर अफसरों से दोस्ती करता था। फिर वह उन्हें अपनी आलू की स्कीम समझाता था। भरोसा देता था कि पैसा तो मैं लगा दूंगा, बस कुछ काम आप करा देना। उसके बदले जो रकम आएगी वह उसे आलू स्कीम में लगा देगा। बदले में नंबर एक में फर्म के चेक से रुपए देगा। अफसर उसके झांसे में फंस जाते थे। वह अफसरों की पत्नियों को भी महंगे उपहार देता था।शैलेन्द्र गनर के साथ चलता था और बसपा राज में भी उसने अपने आप को आलू का करोबारी बन कर अपने पैर सत्ता के गलियारों में पसार रखे थे।
इस संबंध में पुलिस महकमे के रिटायर्ड अफसरों का कहना था कि सरकारें चाहें किसी भी दल की हों,वह डीजीपी की तैनाती पुलिस सुधार के लिए नहीं बल्कि राजनीतिक लाभ और अपने करीबियों को फायदा पहुंचाने के लिए करती हैं। तीन साल के कार्यकाल में सात डीजीपी बदले जाएंगे तो ऐसे ही आरोप लगेंगे। एक और दो माह के लिए डीजीपी बनाए जा रहे हैं। ईमानदार अफसरों को सिर्फ इसलिए डीजीपी नहीं बनाया जा रहा है कि वे सरकार के मुताबिक काम नहीं करेंगे। रिटायर डीजीपी श्रीराम अरुण का कहना है कि पहली बार डीजीपी स्तर के अफसर पर इस तरह आरोप लगे हैं। जब तक सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक तय प्रक्रिया और साफ छवि वालों को नहीं चुना जाएगा तब तक हालात नहीं सुधरेंगे।वहीं एक अन्य रिटायर पुलिस अफसर का कहना है कि उत्तर प्रदेश में अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप मायने नहीं रखते हैं। करीब 18 साल पहले आईएएस असोसिएशन ने तीन सबसे भ्रष्टतम अफसरों को चुनकर उनकी सूची जारी की थी। लेकिन इनमें से दो को सरकार ने मुख्य सचिव के पद से नवाज था। इसी तरह आईपीएस अफसरों में भी है। कई अफसरों को तमाम आरोपों में घिरे होने के बाद भी महत्वपूर्ण तैनातियां दी गईं। अयोग्य होते हुए भी डीजीपी बनाया गया। एक अन्य रिटायर पुलिस अफसर का कहना था कि जब विश्व की सबसे बड़ी फोर्स का मुखिया ही भ्रष्ट हो जाएगा तो फोर्स का क्या होगा। पुलिस में निचले स्तर पर भ्रष्टाचार के मामले सामने आते रहते हैं।पूर्व डीजीपी एसी शर्मा पर डीजीपी रहने के दौरान भी भ्रष्टाचार का आरोप लगा था। अलीगढ़ पीएसी में तैनात डिप्टी एसपी बीके शर्मा ने आरोप लगाया था कि डीजीपी एसी शर्मा पोस्टिंग के नाम पर घूस लेते हैं। बीके शर्मा का आरोप था कि जब वह घूस नहीं दे पाए तो कुछ दिन के अंदर ही उनका पांच बार तबादला किया गया।
शैलेन्द्र के समाजवादी पार्टी का नेता होने की लगातार चर्चा के बीच सपा के प्रवक्ता और मंत्री राजेन्द्र चैधरी ने सफाई दी है कि शैलेन्द्र से सपा का कोई लेना-देना नहीं है, न ही शैलेन्द्र समाजवादी पार्टी का नेता है।वहीं भाजपा का आरोप है कि बिना सरकारी मदद के कोई व्यक्ति तबादला-पोस्टिंग का इतना बड़ा नेटवर्क नहीं चला सकता है।