दैनिक जागरण के नोएडा कार्यालय में 7 फरवरी 2015 की रात में हुई हड़ताल के बाद तबादले वापस लिए जाने के आदेश पर मुझे जम्मू से वापस बुलाया गया था, लेकिन जब मैं नोएडा कार्यालय पहुंचा तो मुझ पर संस्थान के गार्डों से हमला करा दिया गया और मुझसे 36 हजार रुपये छीन लिए गए। 100 नंबर पर फोन कर मैंने पुलिस बुला ली, लेकिन दैनिक जागरण का बोर्ड देखकर पुलिस बैरंग लौट गई। उसके बाद मैं पुलिस चौकी, फेस तीन थाना, सीओ टू आफिस और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय के चक्कर लगाता रहा, लेकिन कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि दैनिक जागरण बहुत बड़ा बैनर है। उसके किसी भी प्रबंधक के खिलाफ हम एफआईआर दर्ज नहीं कर सकते, भले ही उन्होंने कितना भी बड़ा अपराध क्यों न किया हो। तो यह है नोएडा जैसे प्लेटिनम शहर की सुरक्षा व्यवस्था।
इससे आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि दूसरे शहरों का क्या हाल होगा। आज न तो पत्रकारिता सुरक्षित है और न ही पत्रकार। और पत्रकारों की असुरक्षा निश्चित ही समाज की असुरक्षा है। शायद यही वजह है कि आए दिन पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं और हमारा समाज मौन है। यह मौन बहुत ही घातक है। लोग तो यही सोच रहे होंगे कि मुझसे क्या मतलब, लेकिन अगली बारी किसकी होगी, कुछ कहा नहीं जा सकता। पांच महीने हो गए, लेकिन आरोपी मस्त हैं और पुलिस पस्त। मुझे जबरन न तो दैनिक जागरण कार्यालय में प्रवेश करने दिया जा रहा है और न ही सैलरी दी जा रही है। सैलरी मेरे लिए कितना जरूरी है, उसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि मैंने अपनी प्रोफाइल पिक्चर में सैलरी लगा रखी है। उसे देखकर मेरे मित्र मजा ले रहे होंगे, लेकिन मदद के लिए एक भी हाथ आगे नहीं बढ़ा। जरा सोचिए। यही हाल रहा तो दैनिक जागरण प्रबंधन का गुरूर बढ़ेगा ही और वह और बड़े अपराध करने के लिए प्रोत्साहित होगा।
कहने को तो दैनिक जागरण में यूनियन का गठन हो गया है और लोग काली पट्टी बांध कर प्रदर्शन भी कर रहे हैं। फिर भी मेरे जैसे लोगों के मामले की अनदेखी यूनियन के औचित्य पर सवाल खड़े कर रही है। यूनियन की मांगों में इस मुद्दे का जिक्र तक नहीं है। यूनियन की ओर से ऐसी स्वार्थपरता किस ओर संकेत कर रही है, इसे आप बखूबी समझ सकते हैं। आपने यूं ही भेदभाव सहन किया तो निश्चित ही दैनिक जागरण प्रबंधन आप पर भी हमले कराने में गुरेज नहीं करेगा। आज मेरी लाचारी, आर्थिक और भौतिक असुरक्षा आपके लिए मजा लेने का साधन भले ही बन सकती है, लेकिन मैं भी आपकी टीम का एक अंग हूं। तब भी जब आप मानने से भले ही इनकार करते रहें। क्योंकि मैंने भी चाटुकारिता अपना कर नौकरी करते रहने के बजाय अन्याय, अत्याचार और भेदभाव का विरोध करने के लिए कदम आगे बढ़ाया है।
आपने मेरी समस्या को अपनी समस्या न समझा तो आप जो चमचमाता इतिहास रच रहे हैं, उसमें मेरा मामला एक धब्बे के रूप में उसे विरूपित करता रहेगा। मेरी यह पोस्ट पढ़ने के लिए आपको धन्यवाद। कुछ अनुचित लिख दिया हो तो क्षमा करना। मजीठिया वेतनमान के लिए पर्दे के पीछे मैंने कितना काम किया है, उसे बताने की जरूरत नहीं है। मेरे मामले की उपेक्षा से मजीठिया वेतनमान की लड़ाई अधूरी ही रह जाएगी। मेरी ओर से भी बांस करो न भाई।
श्रीकांत सिंह के एफबी वाल से