जो गर्दन काटने वालों के समर्थक हैं वो मोहम्मद साहब के अनुयायी नहीं हो सकते!
-नवेद शिकोह-
मोहम्मद साहब का जन्म दिन मनाने का हक़ ही नहीं है आप जैसों को! मुसलमानों के रसूल हज़रत मोहम्मद मुस्तफा(s.w) की मोहब्बत के जज्बात यदि आपको उग्र प्रदर्शन करने पर मजबूर कर देते हैं.. या गर्दन काटने वालों का आप समर्थन करते हैं तो आप मोहम्मद साहब के अनुयायी तो नहीं हो सकते। उनको चाहने का मतलब है उसकी तालीम को अपनाना। उनके चरित्र का अनुसरण करना। मोहम्मद साहब की सबसे बड़ी खूबी इनका इखलाक (व्यवहार) थी। वो सिर्फ उपदेश नहीं देते थे, भाषण ही नहीं देते थे, खुतबे ही नहीं देते थे बल्कि नेक अमल अपने किरदार में ढाल कर इंसानियत के रास्ते पर चलने का पैग़ाम देते थे।
उन्होंने कहा था कि वो शख्स सबसे ज्यादा बहादुर और ताकतवर होता है जो अपने गुस्से और जज्बात़ो को काबू कर ले। तो जाहिर सी बात है कि अच्छे व्यवहार वाले.. जज्बातों और गुस्से पर काबू करने वाले और उग्रता से दूर रहने वाले ही मोहम्मद साहब के अनुयायी होते होंगे। उग्र प्रदर्शनकारी, निर्दोषों का गला काटने वाले और ऐसी अमानवीय हरकतों का समर्थन करने वाले मुसलमानों के रसूल के विरोधी तो हो सकते हैं पर उनके मानने वाले नहीं हो सकते। रसूले पाक की जितनी ज्यादा चाहत पेश करना है तो उतना अच्छा व्यवहार कुशल होना पड़ेगा। इंसानियत का दामन पकड़कर मानवता की रक्षा करनी पड़ेगी। यही रसूल और इस्लाम का पैग़ाम है।
आप उग्रता पर विश्वास रखते हैं और जज्बातों पर काबू नहीं कर सकते तो मोहम्मद साहब का जन्मदिन बारावफात मनाने का भी आपको कोई हक़ नहीं।
अल्लाह के रसूल हों, इमाम हों,पैगम्बर, औलिया या सूफी संत हों ,हम इनके किरदार से प्रभावित होकर इनके करीब जाते हैं। इनके सिद्धांतों को फॉलो करते हैं, अपनाते हैं, इसे अमली (प्रयोगात्मक) जिन्दगी की गाइड लाइन मानते हैं। इनका किरदार अपने किरदार में ढालने की कोशिश करते हैं।
हजरत मोहम्मद मुस्तफा पर लम्बे समय तक एक महिला कूड़ा फेकती रही। वो दौर था जब अरब मोहम्मद साहब के किरदार, आचरण और व्यवहार से प्रभावित होकर ईमान ला रहे थे। पैगम्बर मोहम्मद अपने तमाम सहाबा-ए-कराम से घिरे रहते थे। रसूले पाक पर गंदा कूड़ा फेकने वाली महिला पर क्या कोई सहाबा (रसूल के अनुयायी) उग्र हुआ ! क्या रसूल के किसी सहाबी ने महिला की गर्दन काटी या सर काटने की कोशिश की ! क्या उस गुस्ताख महिला के इलाके में मोहम्मद साहब पर जान देने वालों ने कोई उग्र प्रदर्शन किया था !
नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बल्कि बहुत दिनों तक रोज कूड़ा फेकने वाली महिला ने जिस दिन कूड़ा नहीं फेका तो हजरत मोहम्मद को चिंता हुई। उन्होंने खैरियत जानने की कोशिश की तो पता चला कि उस महिला की तबियत खराब है। ये जानकर रसूल परेशान हो गये और कूड़ा फेकने वाली महिला को देखने पंहुचे। जो रोज़ उनपर कूड़ा फेकती थी उसकी सेहत के लिए उन्होंने दुआ की।
ये थे पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा। और ऐसे ही उनके सहाबी थे। यही कारण है कि रसूले पाक की यौमे विलादत के मौके पर उनके सहाबियों को भी याद किया जाता है। और इनके बताये इंसानियत के रास्ते पर चलने का संकल्प लेते हैं।
लेकिन अफसोस कि कुछ ऐसे भी ह़ै जो हिंसा और नफरत का प्रदर्शन कर रसूल की चाहत साबित करते हैं जबकि ये सब मोहम्मद साहब और इस्लाम के पैग़ाम के विपरीत है। सच ये है कि नफरत के खिलाफ गांधीगीरी का इंडियन कंसेप्ट भी इस्लामी किरदारों से निकल कर आया है।
मोहम्मद साहब के नाती इमाम हुसैन ने अपने नाना के चरित्र का अनुसरण करते हुए कत्ल करने आये प्यासे दुश्मन को भी अपने हिस्से का पानी पिलाने जैसे अमल पेश किए थे। और महत्मा गांधी ने कहा था कि मैं हजरत इमाम हुसैन के किरदार से काफी प्रभावित हूं। गांधी के चरित्र को लेकर गांधीगीरी का कान्सेप्ट एजाद हुआ। मोहब्बत के साथ विरोध जताने का एक ऐसा तरीका कि आपके साथ बुरा करने वाला आपके मोहब्बत से भरे व्यवहार से शर्मिंदा हो जाये।
इंडियन गांधीगीरी की शुरुआती चेन का जन्म रसूल और कूड़ा फेकने वाली महिला जैसे किस्सों से होता है।
इसलिए तमाम बातों का लब्बोलुआब ये है कि यदि मुसलमानों के रसूल को लेकर कोई गलत बयानी करे भी तो इसका जवाब हिंसा से नहीं मोहम्मदी ओर हुसैनी विचारधारा यानी गांधीगीरी से दिया जाना चाहिए।
- नवेद शिकोह
पढ़े लिखे मुसलमान सच बोलने में कतराते हैं!
-पुष्य मित्र-
इन दिनों फेसबुक पर फ्रांस से जुड़े मसले पर पढ़ते हुए एक बात बड़ी शिद्दत से महसूस हुई है कि इस्लाम को भी एक पेरियार की बड़ी सख्त जरूरत है।
इस्लाम में धर्म का दबाव इतना अधिक है कि बहुत पढ़े लिखे लोग भी सच बोलने में कतराते हैं और परहेज करते हैं। असहमति की गुंजायश नहीं के बराबर रह गयी है। फ्रांस की सरकार कुछ और नहीं कर रही, बस इसी कमजोरी का फायदा उठा रही है।
और हां, दाभोलकर और कलबुर्गी की हत्या के समर्थक दूर रहें। वे भी इसी श्रेणी में आते हैं।
कार्टूनों से ईश्वरों, देवदूतों और धर्मों का पराभव नहीं होता!
-राजीव नयन बहुगुणा-
इस विश्व में सिर्फ तुम्हारा धर्म ही इकलौता नहीं है ।
अन्य धर्म भी हैं, और उनके अनुयायी भी। साथ ही नास्तिक भी इसी विश्व में रहते हैं, जो सभी धर्मों की खिल्ली उड़ाते हैं। उनकी निंदा की जाती है, पर गला नहीं रेता जाता। कार्टूनों से ईश्वरों, देवदूतों और धर्मों का पराभव नहीं होता।
जब कार्टून मोदी और ट्रम्प का कुछ नहीं बिगाड़ सकते, तो पवित्र पैगम्बर का कैसे कुछ बिगाड़ पाएंगे? कार्टून से पैगम्बर का कुछ नहीं बिगड़ा। तुम्हारा और उस घनचक्कर कार्टूनिस्ट का अवश्य कुछ बिगड़ा है।
तुम्हारा मंशा क्या है? क्या पूरे विश्व मे चांपड़, भुजाली, शमशीर, रेती और छुरा लेकर लोगों का गला रेतने वास्ते फैल जाना चाहते हो?
तुम्हे यह कदापि नहीं करने दिया जाएगा।
ध्यान रखो कि तुम चंद नासमझ अपने शेष धर्म बंधुओं की जान मुफ्त साँसत में डाल रहे हो।
भारत, अमेरिका और फ्रांस समेत अनेक देशों में इस वक़्त लोकतंत्र को कमज़ोर कर पद दलित करने वाली शक्तियां सत्तानशीन हैं। वे चाहते हैं कि तुम भड़को, ताकि उन्हें दिल की लगी निकालने का अवसर मिले।
वे समय समय पर विविध अवसरों पर बारी बारी सभी देवदूतों और ईश्वरों को अपमानित करना चाहते हैं, ताकि उन्हें सत्ता लाभ हो?
राफेल का नाम सुने हो? जिस देश के विरुद्ध जगह जगह संकरी गलियों में इकट्ठा होकर शोर मचा रहे हो , वह उसी देश की निर्मिति है। जिसे मृत्यु का सगा भाई कहा जाता है।
शांत हो बैठो, ताकि ईश्वरों और मनुष्यों के शत्रुओं के विरुद्ध वातावरण बनाया जा सके।