: मुनव्वर राणा का दर्द और संघ परिवार की मुश्किल : ”आप सम्मान वापस लौटाने के अपने एलान को वापस तो लीजिये। एक संवाद तो बनाइये। सरकार की तरफ से मैं आपसे कह रहा हूं कि आप सम्मान लौटाने को वापस लीजिये, देश में एक अच्छे माहौल की दिशा में यह बड़ा कदम होगा। आप पहले सम्मान लौटाने को वापस तो लीजिये। यहीं न्यूज चैनल की बहस के बीच में आप कह दीजिये। देश में बहुत सारे लोग देख रहे हैं। आप कहिए इससे देश में अच्छा माहौल बनेगा।” 19 अक्टूबर को आजतक पर हो रही बहस के बीच में जब संघ विचारक राकेश सिन्हा ने उर्दू के मशहू शायर मुनव्वर राणा से अकादमी सम्मान वापस लौटाने के एलान को वापस लेने की गुहार बार बार लगायी तब हो सकता है जो भी देख रहा हो उसके जहन में मेरी तरह ही यह सवाल जरूर उठा होगा कि चौबीस घंटे पहले ही तो मुनव्वर राणा ने एक दूसरे न्यूज चैनल एबीपी न्यूज पर बीच बहस में अकादमी सम्मान लौटाने का एलान किया था तो यही संघ विचारक बाकायदा पिल पड़े थे। ना जाने कैसे कैसे आरोप किस किस तरह जड़ दिये।
लेकिन महज चौबीस घंटे बाद ही संघ विचारक के मिजाज बदल गये तो क्यों बदल गये। क्योंकि आकादमी सम्मान लौटाने वालों को लेकर संघ परिवार ने इससे पहले हर किसी पर सीधे वार किये। कभी कहा- लोकप्रिय होने के लिये। तो कभी कहा- न्यूज चैनलों में छाये रहने के लिये। तो कभी कहा- ”यह सभी नेहरु की सोच से पैदा हुये साहित्यकार हैं, जिन्हें कांग्रेसियों और वामपंथियों ने पाला पोसा। अब देश में सत्ता पलट गई तो यही साहित्यकार बर्दाश्त कर नहीं पा रहे हैं।”
सिर्फ हिंसा नहीं हुई बाकी वाक युद्ध तो हर किसी ने न्यूज चैनलों में देखा ही, सुना ही। और यही हाल 18 अक्टूबर को उर्दू के मशहूर शायर मुनव्वर राणा के साथ भी हुआ। लेकिन अंदरुनी सच यह है कि जैसे ही मुनव्वर राणा ने अकादमी पुरस्कार लौटाने का एलान किया, सरकार की घिग्गी बंध गई। संघ परिवार के गले में मुनव्वर का सम्मान लौटाना हड्डी फंसने सरीखा हो गया। क्योंकि अकादमी सम्मान लौटाने वालों की फेरहिस्त में मुनव्वर राणा पहला नाम थे जिन्हें साहित्य अकादमी सम्मान देश में सत्ता परिवर्तन के बाद मिला। सीधे कहें तो मोदी सरकार के वक्त मिला। 19 दिसबंर 2014 को जिन 59 साहित्यकार, लेखक, कवियों को अकादमी सम्मान दिया गये उनमें मुनव्वर राणा अकेले शख्स निकले जिन्होंने उसी सरकार को सम्मान लौटा दिया जिस सरकार ने दस महीने पहले सम्मान दिया था। यानी नेहरु की सोच या कांग्रेस-वाम के पाले पोसे आरोपों में भी मुनव्वर राणा फिट नहीं बैठते।
तो यह मुश्किल मोदी सरकार के सामने तो आ ही गई। लेकिन सवाल सिर्फ मोदी सरकार के दिये सम्मान को मोदी सरकार को ही लौटाने भर का नहीं है। क्योंकि संघ विचारक के बार बार सम्मान लौटाने को वापस लेने की गुहार के बाद भी अपनी शायरी से ही जब शायर मुन्नर राणा यह कहकर स्टूडियो में जबाब देने लगे कि, ”हम तो शायर है सियासत नहीं आती हमको/ हम से मुंह देखकर लहजा नहीं बदला जाता” तो मेरी रुचि भी जागी कि आखिर मुनव्वर राणा को लेकर संघ परेशान क्यों है, तो मुनव्वर राणा के स्टूडियो से निकलते ही जब उनसे बातचीत शुरू हुई और संघ की मान-मनौव्वल पर पूछा तो उन्होंने तुरंत शायरी दाग दी, ”जब रुलाया है तो हंसने पर ना मजबूर करो / रोज बीमार का नुस्खा नहीं बदला जाता।”
यह तो ठीक है मुनव्वर साहेब लेकिन कल तक जो आपको लेकर चिल्लम-पों कर रहे थे, आज गुहार क्यों लगा रहे हैं?
अरे हुजूर यह दौर प्रवक्ताओं का है। और जिन्हें देश का ही इतिहास भूगोल नहीं पता वह मेरा इतिहास कहां से जानेंगे। कोई इन्हें बताये तो फिर बोल बदल जायेंगे। यह जानते नहीं कि शायर किसी के कंधे के सहारे नहीं चलता। और मैं तो हर दिल अजीज रहा हूं क्योंकि मैं खिलंदड़ हूं। मेरा जीवन बिना नक्शे के मकान की तरह है। पिताजी जब थे तो पैसे होने पर कभी पायजामा बनाकर काम पर लौट जाते तो कभी कुर्ता बनवाते। और इसी तर्ज पर मेरे पास कुछ पैसे जब होते तो घर की एक दीवार बनवा लेते। कुछ पैसे और आते तो दीवार में खिड़की निकलवा लेता। अब यह मेरे उपर सोनिया गांधी के उपर लिखी कविता का जिक्र कर मुझे कठघरे में खडा कर रहे हैं। तो यह नहीं जानते कि मेरा तो काफी वक्त केशव कुंज [दिल्ली में संघ हेडक्वार्टर] में भी गुजरा। मैंने तो नमाज तक केशव कुंज में अदा की है। तरुण विजय मेरे अच्छे मित्र हैं। क्योंकि एक वक्त उनसे कुम्भ के दौरान उनकी मां के साथ मुलाकात हो गई। तो तभी से। एक वक्त तो आडवाणी जी से भी मुलाकात हुई। आडवाणी जी के कहने पर मैंने सिन्धु नदीं पर भी कविता लिखी। सिन्धु नदी को मैंने मां कहकर संबोधित किया। यह नौसिखियों का दौर है इसलिये इन्हें हर शायरी के मायने समझाने पड़ते हैं। और यह हर शायरी को किसी व्यक्ति या वक्त से जोड़कर अपनी सियासत को हवा देते रहते हैं। मैंने तो सोनिया पर लिखा, ”मैं तो भारत में मोहब्बत के लिये आई थी /कौन कहता है हुकूमत के लिये आई थी / नफरतों ने मेरे चेहरे का उजाला छीना/ जो मेरे पास था वो चाहने वाला छीना”। शायर तो हर किसी पर लिखता है। जिस दिन दिल कहेगा उन दिन मोदी जी पर भी शायरी चलेगी। अब नयी पीढ़ी के प्रवक्ता क्या जाने कि संघ के मुखपत्र पांचजन्य ने मेरे उपर लिखा और कांग्रेस की पत्रिका में भी मेरी शायरी का जिक्र हो चुका है। तो फिर एसे वैसो के सम्मान वापस लौटाने के बाद कदम पीछे खींचने की गुहार का मतलब कुछ नहीं, ”सबों के कहने से इरादा नहीं बदला जाता / हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता।”
तो यह माना जाये मौजूदा वक्त से आप खौफजदा ज्यादा हैं?
सवाल खौफ का नहीं है। सवाल है कुछ लिख दो तो मां की गालियां पड़ती है। यह मैंने ही लिखा, ”मामूली एक कलम से कहां तक घसीट लाए / हम इस गजल को कोठे से मां तक घसीट लाए।” लेकिन हालात ऐसे है जो रुठे हुये है तो मुझे अपनी ही नज्म याद आती है- ”लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती / बस एक मां है जो मुझसे खफा नहीं होती।”
लेकिन सवाल सिर्फ गालियों का नहीं है सवाल तो देश का भी है?
ठीक कह रहे हैं आप। कहां ले जाकर डुबोयेगें उन्हें जिन्हें आप गालियां देते है। कहते हैं कि औरंगजेब और नाथूराम गोडसे एक था। क्योंकि दाराशिकोह को मारने वाला भी हत्यारा और महात्मा गांधी को मारने वाला भी हत्यारा। तब तो कल आप दाराशिकोह को महात्मा गांधी कह देंगे। इतिहास बदला नहीं जाता । रचा जाता है। यह समझ जब आ जायेगी। तब आ जायेगी। अभी तो इतना ही कि, ”ऐ अंधेरे! देख लें मुंह तेरा काला हो गया / मां ने आंखे खोल दी घर में उजाला हो गया।”
आजतक न्यूज चैनल से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी के ब्लाग से साभार.
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rajkumar
October 22, 2015 at 9:16 am
VAJPAYEE JI, SANGH N KABHI PARESAN HUVA H N HOGA, EK RANA NAHI HAJARO RANA AAYENGE JAYENGE, SANGH APNE SWAYAM SEWAK KE BAL PAR BADA H AUR BADTA HI JA RAHA H, SOCALL SECULAR MEDIA KO SAMAJ NE ME VAKT LAGEGA, GULAMI KI MANSIKATA JO BHARI PADI H