सौमित्र रॉय-
हमारे पुरखों के त्याग और बलिदान ने भारत को ब्रिटिश राज से आज़ादी दिलवाई। डॉ. अंबेडकर और संविधान सभा के 389 सदस्यों ने देश का संविधान तैयार किया, जिसकी प्रस्तावना के पहले 4 शब्दों- “हम भारत के लोग” के पीछे की मूल भावना देश की 95% अवाम को आज तक समझ नहीं आई।
अब्राहम लिंकन के लोकतंत्र की परिभाषा को- “जनता के लिए, जनता के द्वारा और जनता का” नेहरू के बाद की तकरीबन सभी सरकारों ने ताक पर रखा।
और फिर 2014 को भारत एक बार फिर से “आज़ाद” हुआ। गांधी, नेहरू और देश को आज़ाद कराने वाले हज़ारों शहीदों को बार-बार मारने, राजनीतिक अपहरण, झूठ, पाखंड और नफ़रत की सियासत को कानूनी जामा पहनाने के लिए।
पेगासस इसी नए “आज़ाद” भारत की नई उपज ही तो है, जिसका इस्तेमाल देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकतंत्र में विरोध की आवाज़ को कुचलने के लिए किया।
सिटीजन्स लैब ने 2018 में ही बता दिया था कि भारत में पेगासस का कौन सा ऑपरेटर सरकार के लिए जासूसी कर रहा है।
उस वक़्त लोकतंत्र पर स्पाईवेयर के हमले से बेखबर देश की जनता चिप वाले नोट, एटीएम की कतार, कालेधन की वापसी और राम मंदिर के जश्न में आकंठ डूबी हुई थी।
कथित सर्जिकल स्ट्राइक, पुलवामा और बालाकोट जैसे ड्रामों से लहालोट अवाम ने दोबारा ग़लती की और लोकतंत्र को नेस्तनाबूत करने के लिए मोदीजी को 2019 में फिर वोट दिया।
मुझे याद आता है, जब पेगासस पर सीरीज में लगातार लिखने पर फ़ोन और इनबॉक्स सिर्फ गंदी गालियों, धमकियों और निजी आरोपों से भर जाते थे।
आज उनमें से बहुतेरे लोग बिहार, यूपी के छात्रों पर इसलिए उंगली उठाते हैं, क्योंकि वे युवा भी उनकी ही तरह कभी भक्ति में डूबे थे।
डॉ. अंबेडकर ने देश को संविधान सौंपते हुए यह भी तो कहा था कि इस गणतंत्र और लोकतंत्र की रक्षा करना लोगों का दायित्व है।
कितनों ने निभाया? कितनी रक्षा की? मैं बार-बार लोगों को एक नागरिक के बतौर उन 11 संवैधानिक कर्तव्यों की याद दिलाता हूं, जिनमें से एक लोगों को सच्चाई से अवगत कराना भी है।
पेगासस सिर्फ भारत में ही नहीं, दुनिया भर में इस्तेमाल हुआ तो सिर्फ इसलिए, ताकि ज़ुल्म, अन्याय, तानाशाही और लोकतंत्र को खत्म करने की कोशिशों के ख़िलाफ़ आवाज़ों को दबाया जा सके।
ऐसे लोगों की जासूसी कर उन्हें गद्दार, देशद्रोही, पाकिस्तानी, टुकड़े-टुकड़े गैंग और वामी, कांगी और न जाने कितनी गलियों से हतोत्साहित किया जा सके।
पेगासस का मामला सामने आते ही मोदी सरकार बैकफुट पर थी। झूठ-दर-झूठ बोले गए। संसद में भी। दुनिया तो क्या पेगासस बनाने वाली NSO ने भी मान लिया कि हां, चूक हुई है।
अलबत्ता, मोदी सरकार झूठ पर कायम है। 3 सदस्यों की कमेटी जांच कर रही है। न्याय प्रणाली को अगर हर फैसले से पहले जस्टिस लोया का केस याद रखना पड़ता है, फिर न्याय की उम्मीद कहां है?
गणतंत्र और लोकतंत्र की हिफाज़त खुद न कर पाने वाली अवाम को तो इससे भी बुरे दिन देखने चाहिए।
सिटीजन्स लैब की रिपोर्ट पढिये। सिर्फ वोट डालकर सरकार बदलना ही आपका काम नहीं है। जनमत तैयार कर उसकी आवाज़ सरकार के कानों तक पहुंचाना भी आपका ही काम है।
वरना, इससे भी बुरे दिन भुगतने को तैयार रहिये।
अब जबकि न्यूयॉर्क टाइम्स ने यह साफ कर दिया है कि भारत ने ही इजरायल से 2017 में 2 बिलियन डॉलर के सौदे में पेगासस स्पाईवेयर भी खरीदा था, भक्तों को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।
जासूसी भारत में एक सनातन परंपरा रही है। यह घर से शुरू होकर सड़क से दफ़्तर तक हर जगह व्याप्त है। खासकर, बहन-बेटियों की।
इसीलिए पेगासस पर हम कुछ मित्रों की सीरीज को ज़्यादातर ने हवा में उड़ा दिया था।
मेरा-आपका निजी कुछ भी नहीं। लेकिन अगर नरेंद्र मोदी सरकार अपने ही मंत्रियों, बाबुओं और विपक्षी नेताओं, पत्रकारों की जासूसी करवाये तो इसका मतलब है कि सरकार डरपोक है।
डरता वही है, जो गलत होता है। असुरक्षित होता है। मोदी कह सकते हैं कि वे बचपन से ही असुरक्षित, शक्की थे और यह सिलसिला नागपुर में उनकी ट्रेनिंग से लेकर गुजरात की सत्ता प्राप्ति के बाद भी जारी रहा।
ये डोवाल, NSA, राष्ट्रीय सुरक्षा-ये सब बहाने हैं। अपनी बेशर्मी को छिपाने के। संसद भी झूठे बयान और दावे करने के लिए है।
ख़ैर, अब सुप्रीम कोर्ट ख़ुद देखे और इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस अतीत से सबक ले, जिसने इंदिरा गांधी तक को इस्तीफ़ा देने पर मजबूर कर दिया था।
मी लॉर्ड के पास फैसला देने के लिए अब काफ़ी सबूत हैं।