संपादक जी,
भड़ास मीडिया,
दिल्ली।
आपको अवगत कराना है कि आपने 9 मार्च को अपने मेरे बारे में भड़ास पर एक खबर चलाई। वह खबर आपको भेज रहा हूँ। मेरी उसमे आपत्ति यह है कि खबर चलाने से पहले मेरा पक्ष नही लिया गया। खबर यह थी कि धोखाधड़ी के आरोप में अमृत विचार से निकाल दिए गए पीलीभीत के ब्यूरो चीफ सुधाकर शुक्ला। लिंक ये है- https://www.bhadas4media.com/sudhakar-shukla-nikale-gaye/
इसके बारे में हम बताना चाहते हैं कि अमृत विचार के संपादक शम्भूदयाल बाजपेई ने मुझ पर वित्तीय अनियमितता के अनर्गल आरोप लगाते हुए अपने अखबार में 9 मार्च को मेरा फ़ोटो प्रकाशित कर दिया। इस बारे में उन्हें कानूनी नोटिस भेजा गया है। उनसे मेरा विवाद न्यायालय में तय होगा।
इस खबर में मेरा पक्ष यह है कि मैंने अमृत विचार सिंतबर 2021 को संपादक शम्भूदयाल वाजपेयी के फोन आने के बाद जॉइन किया था। मैं उनसे नौकरी मांगने नही गया था। खुद उन्होंने बुलाया था। तब संपादक ने मुझसे यह कहा था कि पीलीभीत में अखबार बहुत कमजोर है। वहां का स्टाफ काम नही कर पा रहा है। तुम्हें इंचार्ज बनाकर भेज देंगे। एक साल का मौका देंगे। तुम्हे इस अवधि में अखबार मजबूत करना है। मैंने फरवरी तक अमृत विचार अखबार को न सिर्फ खबरों में बड़े आगे बढ़ाया बल्कि प्रसार और विज्ञापन में अखबार ने 4 से 5 गुनी प्रगति की।
मेरे पास वित्तीय कुछ रहता ही नहीं है। केवल कार्यालय खर्च 6 से 7 हजार रुपये दिया जाता था जो वास्तविक रूप से होता था। उसका हिसाब हम हर महीने ऑफिस को भेजते थे। विज्ञापन और पैमेंट के लिए अंकित मिश्रा को रखा गया। वित्तीय लेन देन वही देख रहे थे। अब भी वही देख रहे हैं। इसलिए वित्तीय अनियमितता के आरोप पूरी तरह बेबुनियाद है।
संपादक ने मुझे 40 हजार रुपये वेतन देने की बात कही थी लेकिन खाते में केवल 20 हजार रुपये भेजे। जब हमने कई बार पूरे रुपये देने की बात की तो उन्होंने इस तरह के अनर्गल आरोप लगाकर बैक डेट में वट्सअप पर msg भेजकर हटा दिया। वो दिसंबर 2021 से ही मुझे हटाने की साजिश रचने लगे क्योंकि पीलीभीत में वो हमारा इस्तेमाल करके अखबार मजबूत कर चुके थे।
अब संस्थान पर मेरा 1.40 लाख रुपये बकाया निकल रहा है। रुपये न देने के लिए मेरे ऊपर मिथ्या आरोप लगाए गए और बिना किसी नोटिस के वट्सअप पर msg भेजकर हटा दिया। अगर उनका कुछ भी बाकी था तो हमे हटाने से पहले नोटिस क्यों नहीं भेजा। उन्होंने मेरी सामाजिक छवि खराब करने की कोशिश की, इसके लिए उनके खिलाफ न्यायालय से लेकर जहां भी सम्भव होगा, लड़ाई लड़ूंगा।
दूसरी बात यह कि अमर उजाला में मेरा पीलीभीत से आगरा ट्रांसफर किसी वजह से नही हुआ था। न मेरे ऊपर कोई आरोप थे, जो कि खबर में आपने लगाए हैं। मैं भाजपा दफ्तर में कभी नहीं रुका। उसमे सीसीटीवी लगे हैं। आप पुष्टि कर सकते हैं। केवल अन्य पत्रकारों की तरह प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए मेरा वहां जाना होता था।
आप खबर चलाने से पहले किसी भाजपा नेता या मुझसे पुष्टि कर सकते थे, जो आपने नही की। पूर्व विधायक छोटेलाल वाली बात भी पूरी तरह से झूठ है। न मैं कभी छोटेलाल से मिला। न फोन पर बात की। न वो मुझे जानते हैं, न मैं उन्हें। किसी मंदिर में कसम खिलाकर उनसे पूछ लो। या फिर मैं कसम खा लूं। सलमान जमीर ने किसी बेवजह झगड़े के चलते मुझ पर एफआईआर दर्ज करा दी थी। मगर पुलिस विवेचना में वह झूठ निकली। ये मामला समय खत्म हो गया था।
फिलहाल, आप मेरा पक्ष अपने चैनल पर चलाने का कष्ट करें। अन्यथा, मुझे आपके विरुद्ध भी मजबूरी में कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए विवश होना पड़ेगा।
मैं एक बात फिर कहना चाहूंगा कि कोई संस्थान यदि किसी कर्मचारी के विरुद्ध कोई अनियमितता पाता है तो प्रक्रिया यह होती है कि उसे पहले नोटिस दिया जाए लेकिन मुझे अमृत विचार के संपादक ने कोई नोटिस नहीं दिया, न ही कोई स्पष्टिकरण मांगा, सीधे मेरे खिलाफ अखबार में छापकर न सिर्फ मेरी बकाया सेलरी देने से न केवल बचना चाहा है बल्कि मेरी मानहानि भी की है, जो नैसर्गिक न्याय के विपरीत तो है ही। साथ ही मानसिक शोषण और आपराधिक कृत्य भी है।
-सुधाकर शुक्ला