सहारा मीडिया प्रबन्धन ने एक बार फिर मनोज तोमर को राष्ट्रीय सहारा अख़बार के लखनऊ संस्करण का स्थानीय संपादक बना दिया है. तोमर दिसंबर २०१५ में इस्तीफा देकर सहारा से चले गए थे.
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उस समय सहारा के हेड रहे उपेन्द्र राय ने इनको प्रमोशन देकर नोएडा बुला लिया था. लेकिन तोमर ने अंदरुनी राजनीति के कारण इस्तीफा दे देकर एक दूसरी मीडिया कंपनी ज्वाइन कर लिया था. उपेन्द्र राय के सहारा से जाने के बाद मनोज तोमर की वापसी पुराने पद पर करा दी गयी है.
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इंसाफ
June 11, 2016 at 3:56 am
प्रबंधन को दुसरे यूनिट के चाटुकार स्थानीय संपादकों के विषय में भी कारवाई करनी चाहिए. यह भी देखना चाहिए कि हड़ताल को किस संपादक की मौन स्वीकृति मिली थी . दिल्ली की बात अलग है , किन्तु अन्य उनितों में कुछ कर्मियों के लाख प्रयास के बावजूद अमूमन अख़बार दो दिनों तक नहीं निकला. इलाके में अपराध होने पर यही संपादक लोग थानेदार की बर्खास्तगी की मांग उठाते हैं. आखिर ऐसे संपादकों ने अख़बार निकलने के लिए कौन सा कदम उठाया था ? जो लोग जबरन हड़ताल पर थे उनके खिलाफ क्या करवाई हुई ? जो लोग हड़ताल के खिलाफ थे और अख़बार निकलने के लिए प्रार्थना किये उन्हें क्या मिला? महोदय , पता कीजिये ऐसे हड़ताल कर्मी मेवा के इंतजार में है`. पता चला है एक खास यूनिट में एक अयोग्य जूनियर स्थानीय संपादक के सह पर जबरन चैम्बर का भोग कर रहा है. गर्मी के मारे सरे कर्मी बेहाल हैं पर वह चाटुकार अयोग्य ac चैम्बर पर कब्ज़ा कर रखा है. यह आराजकता नहीं तो क्या है ? prabandhak jante hai kahan ki baat hai. pata karen.
Bharat
June 11, 2016 at 4:11 pm
Management should promote the meritorious workers keeping in mind or recent hartal.