Sheetal P Singh : ‘आप’ की जो आज ख़बर है वह पिछले क़रीब छ: माह से खदबदाती हाँड़ी का विस्तार भर है, सिर्फ़ उसका कैनवास बड़ा हो गया है। वजह: भूषण परिवार ने इस पार्टी के पैदा होते समय तन मन और “धन” लगाया था पर प्रशांत भूषण की रेडिकल पृष्ठभूमि(ख़ासकर कश्मीर में plebiscite पर उनके stand) से केजरीवाल ने अनवरत सचेत रुख़ से ख़ुद और पार्टी को बचा के रक्खा। बीजेपी/संघ ने हर मुमकिन कोशिश की पर केजरीवाल बच के निकल गये पर वे भूषण परिवार के उतने क़रीब भी न रहे जितना तन मन धन के कारण भूषण’s चाहते थे। उन्होंने योगेन्द्र यादव को समानान्तर स्थापित करने का प्रयास आगे बढ़ाया। लोकसभा में बड़ी हार से उन्हे मौक़ा भी मिल चुका था पर हरियाणा में योगेन्द्र यादव भी न सिर्फ़ फ़ेल रहे थे बल्कि नवीन जयहिंद (हरियाणा के एक अन्य नेता) से उलझ कर रह गये थे।
आपको याद होगा कि कुछ माह पहले सिसोदिया की योगेन्द्र को लिखी एक चिट्ठी मीडिया में लीक हो गई थी। उसमें लिखा था कि देश भर में चार सौ से ज़्यादा लोकसभा सीटें लड़ने का विचार भूषण / योगेन्द्र आदि का ही था। बनारस के बाद केजरीवाल ने अपनी पूरी सामर्थ्य दिल्ली में केंद्रित कर ली और हरियाणा विधानसभा नहीं लड़ी। योगेन्द्र ने मीडिया में इसका प्रतिवाद किया। केजरीवाल चुप रहे, वे दिल्ली चुनाव तक फ़ोकस भटकाने के ख़िलाफ़ थे। चुनाव के दौरान शांतिभूषण ने किरन बेदी के पक्ष में बयान देकर नई समस्या पैदा की पर केजरीवाल फिर टाल गये। प्रशान्त भूषण दिल्ली चुनाव से ओझल से रहे पर उनके यहां से प्रत्याशियों के बारे में अन्दरूनी जाँच रिपोर्ट्स के चटपटे (embarrassing) टुकड़े बीजेपी समर्थित मीडिया में जगह पाते रहे।
चुनाव नतीजों के तत्काल बाद योगेन्द्र यादव चैनलों / अख़बारों में फिर देशभर में चुनाव लड़ने के बयान देने लगे जबकि ऐसा कहीं तय नहीं हुआ था। खीझकर केजरीवाल ने शपथग्रहण समारोह में पूरे पाँचसाल दिल्ली में लगाने का ऐलान किया। अब शांतिभूषण उ०प्र० में और प्रशांत भूषण केन्द्रीय कार्यकारिणी में केजरीवाल से राष्ट्रीय संयोजक का पद योगेन्द्र को सौंपने की माँग कर रहे हैं जिसे किसी दूसरे का समर्थन प्राप्त नहीं है उल्टे लोग इनके कारनामों से चिढ़ कर इन्हें PAC से ड्राप करने को कह रहे हैं।
इसी की काट में भूषण कैम्प ने एडमिरल रामदास, जो पार्टी के ombudsman हैं, का एकपक्षीय पत्र मीडिया को सौंप दिया है जिसका स्पष्टीकरण मुझ जैसे sympathiser तक से माँगने वालों की बड़ी संख्या है तो पार्टी के सक्रिय नेतृत्व का क्या हाल होगा समझा जा सकता है। केजरीवाल दिल्ली में consolidation (पार्टी घोषणापत्र के वायदों के संदर्भ में) से पहले देश भर में लंगर खोल देने के पक्ष में नहीं हैं पर भूषण कैम्प तुरंत देश पर क़ाबिज़ हो जाने की गफ़लत में लगता है। यह रस्साकशी कहाँ पहुँचती है, जल्द ही ज़ाहिर होगा।
हां, ये जानना तकलीफ़देह है कि “शान्तिभूषण आशीष खेतान से इस संभावना पर बात कर रहे थे कि केजरीवाल यदि दिल्ली चुनाव हारकर नेता विपक्ष बनते हैं तो उन्हे आप के संयोजक पद से बदल पाना सरल होगा!”
बाद में शान्तिभूषण ने किरन बेदी की बीच चुनाव तारीफ़ की। कुछ तो है जिसकी पर्देदारी है! इसको इस तरह से भी देखा जा सकता है कि समर्थ गुट ने सफलता पाने तक धैर्य रक्खा और सही वक़्त पर फैसलाकुन प्रतिक्रिया दी। हाँ यह सही है कि गर ऐसा सब न होता तो ज़्यादा अच्छा होता। एक और बात। योगेन्द्र और प्रशान्त को हरियाणा या किसी और राज्य को चुनकर अपने को प्रूव करना चाहिये। वे केजरीवाल की कमाई में बड़ा वाला हिस्सा माँगेंगे या तकनीकी तर्क देकर हक़ जतायेंगे तो बात कैसे बनेगी? आख़िर में तो सब कुछ किसके हाथ में क्या ” से ही तय होता है, टी वी/अख़बारों से सिर्फ़ झगड़ा किया जा सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी. सिंह के फेसबुक वॉल से.
LOON KARAN CHHAJER
March 3, 2015 at 2:25 pm
आप पार्टी के नेताओं को चाहिए की इस तरह की ओछी हरकतें ना करें। आम जनता ने उनको सर पर झगड़ने के लिए नहीं बैठाया है. पार्टी के नेता के प्रति समर्पण व पार्टी में अनुशासन भी होना जरुरी है.
LOON KARAN CHHAJER
March 3, 2015 at 2:25 pm
आप पार्टी के नेताओं को चाहिए की इस तरह की ओछी हरकतें ना करें। आम जनता ने उनको सर पर झगड़ने के लिए नहीं बैठाया है. पार्टी के नेता के प्रति समर्पण व पार्टी में अनुशासन भी होना जरुरी है.