Abhishek Srivastava : मेरी देह के भीतर बैठे बीस परसेंट गांधीवादी मन को अकसर लगता है कि एक सभ्य समाज का सबसे बड़ा लक्षण होना चाहिए क्षमायाचना। आप अगर अपनी गलतियों, अपराधों के लिए माफी नहीं मांग सकते तो आप असभ्य हैं। फिर आपको अपने साथ बदले में किए गए व्यवहार की शिकायत करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। सवर्णों को इस देश के दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों से सामूहिक माफी मांगनी चाहिए। धार्मिक बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों से सामूहिक माफी मांगनी चाहिए। शिक्षकों को विद्यार्थियों से माफी मांगनी चाहिए। माता-पिता को बच्चों से माफी मांगनी चाहिए। पुरुषों को स्त्रियों से सामूहिक माफी मांगनी चाहिए।
जुल्म की मीयाद जितनी बड़ी हो, क्षमायाचना भी उसी स्तर का होना चाहिए। इसी तरह मनुष्यों को पशुओं से माफी मांगनी चाहिए। भगवानों को भक्तों से माफी मांगनी चाहिए। हर ताकतवर को हर कमजोर से माफी मांगनी चाहिए। कांग्रेस को चौरासी के लिए माफी मांगनी चाहिए। भाजपा को बानबे और 2002 के लिए माफी मांगनी चाहिए। सपा को मुजफ्फरनगर के लिए माफी मांगनी चाहिए। योगी को सुबोध सिंह की पत्नी से माफी मांगनी चाहिए। हम सब अपने-अपने कठघरों में खड़े हैं। अपने अपराध याद करें और माफी मांगें। मैंने जिनका दिल दुखाया है उनसे मैं माफी मांगने को तैयार हूं। कई से मांग भी चुका हूं।
परसों मुझे एक संपादक ने प्रेस क्लब में देर रात कुत्ता कहा। मित्रों ने मौके पर मुझे प्रतिक्रिया देने से रोक लिया, इसका मुझे अफसोस है। उस संपादक को जल्द से जल्द मुझसे माफी मांग लेनी चाहिए वरना मुझे हिंसक बनाने में उसका दोष होगा। मेरे मन में टीस है। वह कभी भी कहीं भी पिट सकता है। हम सब का अपने पीडि़त से माफी मांगना ज़रूरी है ताकि कोई बेवजह प्रतिक्रिया का शिकार न हो जाए, ताकि समाज और हिंसक न हो, ताकि हमारा मन शांत रहे। क्षमायाचना सभ्यता का सबसे बड़ा पता है। असभ्यों का मारा जाना प्राकृतिक न्याय है।
कई अखबारों में काम कर चुके बेबाक और सरोकारी पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.