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सियासत

आडवाणी जी आप ‘भारत रत्न’ हो!

आज आपको बताते है कि क्यों बीजेपी को शून्य से शिखर तक पहुंचने वाले आडवाणी जी को भारत रत्न मिलना चाहिए था, और क्यों नहीं मिला। एक ज़माने में भारतीय जनता पार्टी के वयोवृद्ध नेता लाल कृष्ण आडवाणी की पूरे भारत में तूती बोला करती थी और उन्हें प्रधानमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जाता था। लेकिन जब मोदी राज में राष्ट्रपति पद का चुनाव हुआ तो उनका नाम इस पद के संभावितों की सूची में भी नहीं रखा गया।

ये वही आडवाणी हैं जिन्होंने 1984 में दो सीटों पर सिमट गई भारतीय जनता पार्टी को रसातल से निकाल कर पहले भारतीय राजनीति के केंद्र में पहुंचाया और फिर 1998 में पहली बार सत्ता का स्वाद चखाया था। उस समय जो बीज उन्होंने बोए थे, कायदे से उसकी फसल काटने का मौका उन्हे 2004 और 2009 में मिला था. लेकिन वो असफल हुए और तीसरा मौका नही मिला। क्योंकि लाल कृष्ण आडवाणी भारतीय राजनीति तो क्या भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में आप्रासंगिक से हो गए थे।

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2004 और 2009 की लगातार दो चुनाव की हार के बाद ‘लॉ ऑफ़ डिमिनिशिंग रिटर्न्स’ का सिद्धांत आडवाणी पर भी लागू हुआ। मोदी जी के 60 महीनों के कार्यकाल में उनके पिता तुल्य आडवाणी को सम्मान देने के दो बड़े मौके आये लेकिन मोदी जी ने दोनों ही मौकों पर आडवाणी जी को नीचा ही दिखाया हैं।

  1. पहला मौका राष्टपति के चुनाव में आया था जब आडवाणी जी को उम्मीदवार बनाकर मोदी रिटर्न गिफ्ट दे सकते थे। लेकिन इस मौके पर मोदी की चाल ने ये बात साबित कर दी कि सियासत में भलमनसाहत की उम्मीद बेमानी है।
  2. अब जब दूसरा बड़ा मौका आया जब मोदी सरकार ने प्रणव मुख़र्जी को भारत रत्न दिया तो इस फेहरिस्त में भी आडवाणी हो सकते थे। लेकिन इस मौके पर भी मोदी जी ने साबित कर दिया । कि सार्वजनिक मौको पर आडवाणी जी का सम्मान करने वो सिर्फ नाटक ही करते थे।

लेकिन मोदी जी की इस सियासत से आडवाणी जैसे लौह पुरुष का कद कम नहीं होने वाला है। इतिहास लिखा जाएगा तो आडवाणी ही बीजेपी की सियासत के सिकंदर कहलाएंगे क्योकि वो भी आखिरी लड़ाई नही जीत सके जबकि लड़ना उन्होंने ने ही सिखाया।

आज के मौके पर जब एक उपयुक्त दावेदार को भारत रत्न नहीं दिया गया तो फिर वही शेर याद आ गया ‘साहेब’…

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जतन करता हूँ लेकिन ये बीमारी नहीं जाती

है मेरे ख़ून में शामिल है कि ये खुद्दारी नहीं जाती

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और फितरत ही है उसकी दग़ाबाज़ी वो छोड़ दे कैसे

ये सियासत है ही ऐसी ‘साहेब’ कोई कुछ भी करले मगर ये मक्कारी नही जाती।

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लेखक अरुण गंगवार एक निजी टीवी चैनल में पत्रकार हैं। संपर्क : [email protected]

https://www.facebook.com/bhadasmedia/videos/323796888234989
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