अमेरिका बस गए भारत के इस वरिष्ठ पत्रकार को अब अपना देश पसंद नहीं आता!

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Ajit Sahi-

मैं जिस उम्र में अमेरिका रहने आया हूँ उस उम्र में आम तौर पर इंडियंस अमेरिका में अपने बच्चों से मिलने आते हैं. जो मेरी उम्र के देसी लोग अमेरिका में रहते हैं उनमें ज़्यादातर वो हैं जो बीस-तीस साल पहले यहाँ या तो पढ़ने आए और नौकरी करने लगे, या इंडिया में पढ़ कर यहाँ नौकरी करने आए. ज़्यादातर लोगों का सिर्फ़ बचपन और कॉलेज का जीवन इंडिया में बीता. उसके बाद बीस-पच्चीस की उम्र से वो यहीं रह रहे हैं.

यही वजह है कि बहुत सारे देसी लोगों को वतन की बहुत याद सताती है. इनमें मुसलमान भी हैं. एक वजह ये भी है कि जब वो इंडिया में रहते थे तो आज जितना गंदा माहौल वहाँ नहीं था. अक्सर मेरे देसी अमेरिकी मित्र लोग ठंडी आह भर करके इंडिया याद करते रहते हैं.

पिछले दिनों एक भले मित्र मिले जो बीस साल की उम्र में आ गए थे. दिल्ली के मुसलमान हैं और यहाँ अमेरिका में अच्छा बिज़नेस जमा लिया है. कहने लगे अजित भाई, अपनी मिट्टी अपनी होती है. मैंने कहा, भाई, आप बीस साल की उम्र में यहाँ आ गए थे. मैं तो इंडिया मैं तैंतीस साल नौकरी करके आया हूँ. जो मिट्टी आपकी यादों में है वो मिट्टी मेरे फेफड़ों, किडनी और लिवर में घुस चुकी थी. यहाँ तो मैं उस मिट्टी को धीरे धीरे अपने शरीर से निकाल रहा हूँ कि खुली हवा में साँस तो ले सकूँ.

मैंने तो लगभग पूरी ज़िंदगी इंडिया में गुज़ारी. सारे नाते-रिश्तेदार-मित्र वहाँ हैं. सारी यादें वहाँ हैं. सारे अनुभव वहाँ हैं. तिरपन साल की उम्र में चार साल पहले यहाँ अमेरिका आया. इन चार सालों में आज तक एक पल ऐसा नहीं है कि मैंने इंडिया को मिस किया हो. या ये लगा हो कि यहाँ आकर ग़लती कर दी. रोज़मर्रा की ज़िंदगी में जितना सुकून यहाँ है वैसा इंडिया में कभी महसूस ही नहीं किया.
मेरे लिए तो यही बहुत अचंभित करने वाली बात है कि यहाँ आज तक किसी एक इंसान ने ये नहीं पूछा कि तुम किस देश से हो, कहाँ रहते हो, क्या काम करते हो, तुम्हारा धर्म क्या है, मंदिर क्यों नहीं जाते, पूजा क्यों नहीं करते, तुम्हारी शादी कब हुई, कितने बच्चे हैं, क्या खाते हो.

मैं यहाँ अमेरिकी सांसदों तक से मिलता हूँ. बड़े से बड़े अधिकारियों से मिलता हूँ. किसी ने आज तक ये नहीं कहा कि तुम कौन होते हो अमेरिकी सरकार की नीति के बारे में हमें समझाने वाले. आज तक किसी ने ये तक नहीं पूछा कि अमेरिकी नागरिक हो या नहीं.

बाहर सड़क पर निकलता हूँ तो कोई धार्मिक परेड नहीं हो रही. कोई जागरण, कोई इज्तेमा, कोई चर्च की घंटी, कोई अज़ान, कोई आरती नहीं हो रही. आज तक किसी सरकारी दफ़्तर में किसी काम के लिए किसी ने एक पैसे की घूस या बख़्शीश नहीं माँगी. किसी ने कभी कोई काम नहीं रोका.

यहाँ रहने के बाद मुझे तो इंडिया की ज़िंदगी और भी घुटन भरी लगती है.

जो कोई मुझे कहता है कि बस, अब दो-तीन सालों में अमेरिका छोड़ कर वापस इंडिया चले जाएँगे. मैं उससे कहता हूँ, भाई, दो-तीन सालों का इंतज़ार क्यों करना? अभी चले जाओ. जाओ तो. रहो तो वहाँ.

अजित साही भारत के कई न्यूज चैनलों में संपादक रहे हैं.

उपरोक्त एफबी पोस्ट पर आईं ढेरों प्रतिक्रियाओं में से एक ये भी पढ़ें-

Pragyan Srivastava-

Ye kaun se amarica mein rah rahe aap!? Crime rate itna zyada hai, rat 9 ke baad to kai cities mein curfew jaisa lag jata hai. Public transport lagta hai, jaise 20 30 saalon se waisa hi hai. Newyork jaise shehar mein public place par, bacchon ke samne, drug addicts baithe rahte hain. Train mein nashe mein puri tarah dhutt logon ke lie travel allowed hai, Philly ki sadakon par utne hi homeless aur bhukhe nazar aaenge jitna nijamuddin ilake mein hon, health care itna mehnga hai ki kya bataen, aur na hi yahan India jaise free basic healthcare hai, aur religious level par, lol, bas loudspeaker nahin bajta lekin sare dharma ki missionaries active hain, chahe Christianity ho, ya hinduism, ya Islam.

America ke institutions, sadkon, public places mein agar racial discrimination nahin dikhta to shayad aap kuchh chuninda logon se hi milte julte hain aur wahi aapki chhoti se khubsurat duniya hai.

Lekin ye chhoti si duniya pure America ko portray nahin karti, bilkul bhi nahin karti.

As a nation and community, India mein laakh khaamiya hain aur khubiyaan bhi. And same goes with America too. Zabardasti ka glorification karke mujhe nahin pata aap kya saabit karna chahte hain.

But hey, guys! There are many darker sides too in the so-called great American dream! Beware of that, and beware of such narrow-minded, short-sighted glorification of this country.

Ham Bharat aaenge. Scholarship par padhne gaye hain. Kisi aur desh mein basne nahin. Maine India ko mahan nahin bataya hai, bas America ko bewajah mahan banane ka virodh kiya hai.

अजित साही-

कुछ मित्र बुरा मान जाते हैं कि मैं अमेरिका को महान बताने की कोशिश कर रहा हूँ या मैं अमेरिका की बुराइयों पर पर्दा डाल रहा हूँ या उन बुराइयों को छुपाना चाहता हूँ या फिर मैं इतना बेवकूफ़ हूँ कि उन बुराइयों को जानता तक नहीं हूँ. अमेरिका में पैंतीस करोड़ लोग रहते हैं. ज़ाहिर है अपराध, बदमाशी, हिंसा भी है. आधुनिक अमेरिकी देश लगभग ढाई सौ साल पुराना है. इस इतिहास में एक से बढ़ कर एक बुराइयाँ रही हैं. दास प्रथा हो या जापान में एटम बम का गिराना हो. अमेरिका ने न जाने कितने अमानवीय काम किए हैं. आज भी अमेरिका में बहुत कुछ है जो ग़लत है, अमानवीय है. ख़ासतौर से काले लोगों के प्रति यहाँ की पुलिस अक्सर रंगभेद करती है. आज भी अमेरिकी सरकार दुनिया में कई जगहों पर अत्याचार करती है और अत्याचारी तानाशाहों को समर्थन देती है. इसमें से कौन सी जानकारी छुपी है? कौन होगा जिसको ये मालूम न हो?

पिछले चालीस सालों से अमेरिका की ख़बरों को फ़ॉलो करता हूँ. यहाँ आने के बाद से तो और भी पढ़ता रहता हूँ. यहाँ अमेरिका रहते हुए मैं कई ऐसे संगठनों से जुड़ा हूँ जो यहाँ के वंचित समाज के लिए हक़ की ज़मीनी लड़ाई लड़ते हैं. अभी कल ही कई फ़ोन कॉल किए एक उन्नीस साल के भारतीय लड़के की मदद के लिए जो तीन महीने पहले ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से अमेरिका में घुसा और पकड़ा गया, और बुरी तरह बीमार पड़ने पर आज अस्पताल में पड़ा है. मेरी फ़ेसुबक मित्र Niidhii Jaiin और उनके पति डॉक्टर विवेक उस लड़के की तन-मन-धन से सेवा कर रहे हैं.

मैं Black Lives Matter के साथियों के साथ मिल कर काम करता हूँ. मैं National Association for the Advancement of the Colored People (NAACP) के साथ काम करता हूँ. मेरी मित्र सुनीता विश्वनाथ ने, जिनको मैं बहन मानता हूँ, पिछले बीस सालों से अमेरिका में कितनी ही अफ़ग़ान महिला शर्णार्थियों को बसाने में मदद की है. पिछले साल मेरा परिवार और मैं अमेरिकी राज्य अलाबामा गए. वहाँ उन जगहों पर गए जहाँ कभी काले लोग ग़ुलाम बना कर बेचे जाते थे. हम सेलमा शहर गए जहाँ से विश्वविख्यात एक्टिविस्ट डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने काले लोगों के हक़ के लिए ऐतिहासिक आंदोलन छेड़ा था. न्यू यॉर्क में टैक्सी ड्राइवरों की यूनियन चलाने वाले लोग हमारे परम मित्र हैं. द एडवोकेट्स फ़ॉर ह्यूमन राइट्स नाम का जानामाना एनजीओ है जो चालीस साल से अमेरिका में असायलम दिलाने में हज़ारों लोगों की मदद करता है. मैं उनके साथ मिल कर काम करता हूँ. तीन साल पहले जॉर्ज फ़्लॉएड नाम के व्यक्ति की हत्या के बाद जो पूरे देश में आंदोलन खड़ा हुआ था उसमें मैं और मेरा परिवार वाशिंगटन डीसी में रहते हुए शामिल हुए थे.

तो, मित्रों, इत्मीनान रखें. मैं आप जितना समझदार नहीं तो उतना बेवकूफ़ भी नहीं जितना कि आप मुझे मानते हैं.

मैं तो सिर्फ़ अपनी आँखों देखा हाल बताता हूँ जिससे कि फेसुबक पर जो लोग मुझसे जुड़े हैं वो मेरे अनुभव से अमेरिका के कुछ ऐसे पहलू देख सकें जो पढ़ने को मिलते नहीं हैं. किसी को ये बताना कि तुम्हारे अनुभव झूठे हैं उस व्यक्ति को gaslight करना है.

आख़िर कोई तो वजह होगी कि तमाम बुराइयों और ख़ामियों के बाद भी दुनिया भर से लाखों लोग दिन-रात अमेरिका आने की कोशिश में लगे रहते हैं? आख़िर क्या वजह है कि भारत से अमेरिका में आकर बसे लाखों लोगों में इक्का-दुक्का छोड़ कर कोई वापस नहीं जाता है? क्या वजह है कि दुनिया के किसी भी मूल के लोग यहाँ आकर अपनी मेहनत से दिन दूनी रात चौगुनी तरक़्क़ी करते हैं? मैं उस भारतीय से मिलना चाहूँगा जो ये बताए कि अमेरिका में उसके साथ इसलिए भेद किया गया क्योंकि वो गोरा नहीं है या इसलिए कि वो भारतीय है.

ये वो मुल्क है जहाँ पैंतीस साल की उम्र में नागरिक बनी प्रमिला जयपाल पंद्रह साल बाद संसद सदस्य चुनी जा सकती है. ऐसे कितने ही ग़ैर-गोरे सांसद हैं जिनकी अपनी नस्ल के लोग बमुश्किल एक परसेंट होंगे लेकिन वो चुनाव जीत जाते हैं. पंद्रह फ़ीसदी से कम लोग काले हैं और साठ परसेंट लोग गोरे हैं. लेकिन फिर भी बराक ओबामा राष्ट्रपति चुना गया. मैं कितने ही गोरों को जानता हूँ जो बहुत शिद्दत से काले नेताओं के लिए काम करते हैं. इसी मुल्क में ग़ुलामी ख़त्म करने के लिए गोरों ने गोरों के ख़िलाफ़ गृहयुद्ध लड़ा. कालों को मतदान का बराबर हक़ देने वाली संसद के सदस्य लगभग सभी गोरे थे. जॉर्ज फ़्लाएड के हत्यारे पुलिस वालों को तीस-तीस साल की सज़ा हुई है. कौन से मुल्क में गोरे पुलिस वाले कालों को मारने के आरोप में जेल जाते हैं? कभी सुना है कि भारत में कोई ब्राह्मण पुलिस वाला दलित या मुसलमान या आदिवासी को मारने के आरोप में जेल गया हो? मुक़दमा तक नहीं चलता. तीस तीस साल मुक़दमा लड़ना पड़ता है. अमेरिका वो मुल्क है जहाँ गोरे संगठन, गोरे वकील, गोरे एक्टिविस्ट बॉर्डर लांघ कर घुसे लोगों के हक़ की लड़ाई में अपने लाखों डॉलर खर्च करते हैं.

अमेरिका में नस्लवाद के अभाव पर अपने अनुभव लिखूँगा तो आप और हैरत में आ जाएँगे. आपको लगता है अमेरिका रेसिस्ट है? दरअसल भारत बराबर रेसिस्ट मुल्क खोजे न मिलेगा. वहाँ तो साउथ दिल्ली वाला भी दिलशान गार्डेन वाले से नाक-भौं सिकोड़ता है. यहाँ मेरी गली में तेईस मकानों में इक्कीस गोरों के हैं. मजाल है हमें देख कर किसी ने आजतक नज़र भी मोड़ी हो. लिखने को बहुत है. और लिखूँगा भी. इंतज़ार कीजिए.

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Comments on “अमेरिका बस गए भारत के इस वरिष्ठ पत्रकार को अब अपना देश पसंद नहीं आता!

  • शालीन says:

    मत लिखिए सच कड़वा होता है और हम मानने को तैयार नही है

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  • well wisher says:

    Bhai sahab ne shayad abhi New york mai sikh demonstration nahi dekhe hai.
    Pro khalistani & against India.

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