अलवर : राजस्थान के कई शहरों की तरह इस जिले में भी एटीएल न्यूज़, ए24 न्यूज़, एसटीवी, सीटीवी न्यूज़, माध्यम टीवी न्यूज़ ,सरीखे अवैध न्यूज टीवी चैनल पिछले कई सालों से बेरोकटोक चल रहे हैं। भारत सरकार द्वारा इन नामों से कोई लाइसेंस कभी जारी नहीं किया हुआ है, इसके बावजूद इन चैनलों के मालिकों और फर्जी पत्रकारों की पूरे अलवर में चांदी कट रही है। इसी की आड़ में ब्लैकमेलिंग और हफ्तावसूली का भी बोलबाला है। यहां के फर्जी पत्रकारों और केबल ऑपरेटर्स के पास सैन्य छावनी तक के कई महत्वपूर्ण वीडियो फुटेज होना देश की सुरक्षा के साथ खुला खिलवाड़ है। प्रशासन इस ओर से भी आंखें मूंदे हुए है।
दरअसल, इन सभी चैनलों ने एक केबल ऑपरेटर का लायसेंस महज दिखावे के लिए ले रखा है। इसी की आड़ में इन्होंने अवैध पत्रकारिता की अपनी दुकान खोल रखी है। ये पत्रकारिता के नाम पर कहीं भी पहुंच जाते हैं और वहीं से शुरू हो जाता है ब्लेकमेलिंग और हफ्तावसूली का खेल। कोई इनके खिलाफ आवाज उठाता है तो उसको बदनाम कर दिया जाता है। चैनल की आड़ में इनके मालिकों की राजनेताओं, सरकारी अफसरों और बिल्डरों से गाढ़ी छन रही है। कहीं से कार्रवाई की सुगबुगाहट पर ये पुलिस अधिकारियों और प्रशासन पर भी दबाव बना लेते हैं।
अलवर के एक वकील ने कुछ जागरूक नागरिकों के सहयोग से कितनी ही बार शासन स्तर तक पत्राचार किया लेकिन किसी भी उच्चाधिकारी ने राजनेताओं के दबाव में संज्ञान नहीं लिया। जब भी पुलिस इन्क्वारी करती है, तो चैनल चलाने वाले खुद को केबल ऑपरेटर बताने लगते हैं। केबल टीवी एक्ट की धारा 2जी के अंतर्गत यह स्थानीय टीवी चैनल चलाए जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि केबल ऑपरेटर को उपभोक्ताओं की लिस्ट पोस्ट आफिस को देनी पड़ती है। ये तो उस व्यवस्था का भी अनुपालन नहीं कर रहे हैं।
नियमतः केबल ऑपरेटर स्थानीय स्तर पर केवल फिल्म, चित्रहार, विज्ञापन आदि का प्रसारण कर सकता है और यह सब भी प्रोग्रामिंग कोड के हिसाब से होना चाहिए। साथ ही, इस प्रकार के प्रोग्राम चलाने के लिए कॉपी राइट होना चाहिए। इस प्रकार के समस्त प्रोग्राम सिनेमेटोग्राफी एक्ट के तहत सीबीएफसी यानी सेंसर र्बोड से अधिकृत होने चाहिए। कोई अगर सिनेमाघरो में राष्ट्रगीत भी प्रसारित करता है तो सबसे पहले सेंसर र्बोड का सर्टिफिकेट लेना होता है। केबल एक्ट की धारा 2 जी में साफ तौर पर लिखा है क़ि केबल ऑपरेटर द्वारा चलाये गये सारे प्रोग्राम प्रोग्रामिंग एवं एडवर्टायजिंग कोड का पालन करेंगे।
न्यूज चैनल चलाने के लिए भी 20 करोड़ से ज्यादा की नेट वर्थ होनी चाहिए। इतना ही नहीं, इसके लिये विभिन्न सरकारी डिपार्टमेंट्स जलसेना, थलसेना, वायुसेना, रक्षा मंत्रालय, सीबीआई, विजिलेंस डिपार्टमेंट, पुलिस विभाग से कई तरह की एनओसी यानि अनापत्ति प्रमाणपत्र भी लेना पड़ता है। इतने महत्वपूर्ण मंत्रालयों, विभागों और सैन्य प्रतिष्ठानों की हदें भी शायद अलवर के बाहर खत्म हो जाती हैं। तभी तो यहां किसी को भी टीवी चैनल चलाने की छूट मिली हुई है। मात्र 500 रुपये भरकर केबल टीवी ऑपरेटर का लायसेंस पोस्ट ऑफिस से लेना पड़ता है। फिर किसी एमएसओ को सालाना कुछ रिश्वत देकर इस प्रकार के फर्जी टीवी न्यूज चैनल धड़ल्ले से शुरु कर दिये जाते हैं।
भारत सरकार के एक आदेश नम्बर एफ/1/2007-बीसी.ईई, जो कि दिंनाक 19 फरवरी 2008 को जारी किया गया था, में साफ लिखा गया है कि केबल ऑपरेटर अगर न्यूज चलाते हैं तो सिर्फ अपने एरिया की इर्न्फोमेशन दे सकते हैं। इन चैनलो को स्थानीय स्तर पर संरक्षण जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी से मिला हुआ है। सूचना अधिकारी मुख्यमंत्री तक की मीटिंग में इन फर्जी पत्रकारों को तजरीह देने से नहीं चूकते हैं। इनको सरकारी खर्चे पर विजिट कराते हैं। डिफेंस जैसे प्रतिष्ठानों में इन अवैध चैनलों के कैमरामैन व पत्रकार जाते रहते हैं। ये मंत्रियों एवं अधिकारियों का इन्टरव्यू लेते हैं।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित
Brij Mohan Bhagat
April 26, 2015 at 3:31 pm
मैं बिहार के जमुई जिला से हूँ | यहां भी काफी संख्या में न्यूज़ चैनल प्रशासनिक अधिकारीयों के सरपरस्ती चलाये जा रहे हैं | स्थानीय नेता और अधिकारी उन्हें बहुत तरजीह भी देते हैं | क्योंकि उनलोगों को अपना चेहरा जो देखने को मिल जाता है |