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अर्णब चैट लीक प्रकरण पर सोशल मीडिया पर बहस जारी है… देखें फेसबुक की कुछ पोस्ट्स और कमेंट-
Rangnath Singh-
सोशल मीडिया ने आदमी को भेड़ बना दिया है। अर्नब की टीम ने कुछ सेलेब के WhatsApp चैट लीक किए तो कुछ लोग उसे प्राइवेसी का उल्लंघन बता रहे थे वही लोग आज अरनब के व्हाटसऐप चैट शेयर कर के मजे ले रहे हैं। दोनों गिरोह का कोई बुनियादी उसूल नहीं है।
अर्नब के चैट से जनता को वही सुख मिला है जो किसी को नंगा देखने से मिलता है। सबको पता है कि अंदर क्या है फिर भी वह किसी के कपड़े उतर जाने के दृश्य से किलक उठता है। इसमें एक बौद्धिक आश्वस्ति भी है कि चलो अंदर वही निकला जिसका हमें अनुमान था। कुल मिलाकर अब यह मानकर चलिए कि अगर आपका पुलिस से वास्ता पड़ा तो वह आपका मोबाइल तो जब्त ही करेगी। और उसके बाद आपकी थोड़ी भी न्यूज़ वैल्यू है तो आपके चैट जनहित में जारी हो सकते हैं।
दिल्ली हिंसा मामले में प्रोफेसर अपूर्वानंद वगैरह का पुलिस ने फोन यूँ नहीं जब्त किया। अब किसी की पर्सनल हिस्ट्री जानने के लिए आपका हैकिंग या कंपनी से सीडीआर वगैरह लेने वाली खानापूर्ति नहीं करनी होगी। ये सब काम थाने में हो जाएगा। राष्ट्रहित में। (जैसा कुछ साथी कह रहे हैं अर्नब का चैट उजागर होना सिस्टम हित में है।)
Krishna Kant
देश बेच देना, देश खरीद लेना, संस्थाओं को ताक पर रख देना, इसे आप निजता मानते हैं? पीएमओ में काम दिलाने के बदले टीआरपी खरीदने को आप पर्सनल मानते हैं? अर्नब गोस्वामी की चैट्स पर्सनस नहीं हैं. उनका चैटबॉक्स पर्सनल है लेकिन जिस सिस्टम को खरीद बेच रहे थे, वह सार्वजनिक है.
Rangnath Singh
अगर किसी का कोई निजी कृत्य किसी सार्वजनिक हित से जुड़ा है तो उसे उजागर करने की वैधानिक प्रक्रिया है। सुधा भारद्वाज एवं अन्य के मामले में भी आपत्ति यही है कि उन्हें जबरदस्ती जेल में रखने के लिए वैधानिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया जा रहा है। क्या पर्सनल है और क्या सार्वजनिक हित यह सत्ताएँ तय करती हैं। आपने पत्नी और पदाधिकारी (अर्नब किसी संवैधानिक पद पर नहीं है) की बात की, हिटलर की नजर में अपनी पत्नी के अलावा किसी अन्य से सम्बन्ध सार्वजनिक हित के खिलाफ थे। इस तरह हिटलर टाइप राज में आपकी सार्वजनिक उपयोगिता जानने के लिए आपका पत्नी से चैट भी खोला जा सकता है।
Krishna Kant
जी सर, बहस के लिए पत्नी और पदाधिकारी में अंतर तो करना पड़ेगा। अगर मेरी चैट सार्वजनिक हित-अहित से जुड़ी है तो बेशक सार्वजनिक होनी चाहिए। अगर वह व्यक्तिगत है, तब निषिद्ध है। बाकी आजकल तो सुधा भारद्वाज भी “आतंकी” हैं। मैं भी हो सकता हूं और आप भी। आजकल कुछ भी संभव है। “जज को खरीद लो”, “सब मंत्री अपने साथ हैं”… वगैरह आपको निजी लग रहा है तो नमस्कार। बात खतम। धन्यवाद।
Akram Shakeel
अर्नब देश बेच रहा है और whatsapp प्राइवेसी। दोनों का खुलासा जनहित में है। सादर
Rangnath Singh
अर्नब ने भी यही तर्क दिया था कि फलाँ फलाँ गांजा बेचते हैं जो गैर-कानूनी है और उनकी टीम इस गैर कानूनी रैकेट का जनहित में भण्डाफोड़ कर रही है।
Abhinav Alok
फोन टैपिंग हो या चैट लीक करना, या किसी भी स्तर पर निजता का उलंघन हो, स्टिंग आपरेशन भी, अपने आप मे अपराध है। कभी एजेंसियां तो कभी पत्रकार इस दलील के साथ ये अपराध करते हैं कि वो किसी दूसरे बड़े अपराध के पर्दाफास या सुलझाने में मदद करेगा। एथिकल हैकिंग या एक्सपोजे ने के बार सिस्टम की वुलनारिबिलिटी को उजागर भी किया है। है तो ये अपराध, इसका नैतिक -अनैतिक पक्ष सब्जेक्टिव है।
Rangnath Singh
सब्जेक्टिव तो है लेकिन लोकतंत्र में यही संतुलन बनाना पड़ता है।
Abhinav Alok
जूलियन असांज और स्नोवडेन भी अपराधी ही हैं। अनैतिक है या नहीं, ये सब्जेक्टिव है।
Rangnath Singh
सेब से संतरे की तुलना लॉजिकल फैलसी मानी जाती है फिर भी कहना चाहूँगा कि यह दोनों मामले सर्वथा अलग हैं। दोनों ने सत्ताओं का पर्दाफाश किया है। वो टूटपुंजिये नहीं है जो किसी हिरोइन या पत्रकार को हैक करके क्रांति-क्रांति चिल्लाएँ।
Abhinav Alok
इसीलिए कहा कि सब्जेक्टिव है। और, सत्ता करे तो हमेशा ही अनैतिक है
Rangnath Singh
पुलिस कैसे काम करेगी इसके लिए कानून है। पुलिस को किसी नागरिक का फैन टैप करने या चैट या कॉल डिटेल देखने के लिए प्रक्रिया का पालन करना होता है। कानून का पालन न करना गैर-कानूनी है। अगर पुलिस कानूनी तरीके से फोन लेकर उसे लीक कर देती है तो यह परसेप्शन मैनेजमेंट का हिस्सा है।
Abhinav Alok
राडिया टेप हो या अभी अर्णब के साथ जो कुछ हुआ, बिना पुलिस और एजेंसियों के सहयोग के ये संभव नही है।
Rangnath Singh
बिल्कुल, लोग जैसे भी देखें, मीडिया इनसाइडर इसे इसी तरह देख रहे हैं कि मुंबई पुलिस ने अर्नब को कट टू साइज कराया है। यह पॉवर पॉलिटिक्स है। अर्नब जिस खेल में हैं उसमें यह सब होता रहता है।
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