
अर्नब गोस्वामी से पूछताछ चालू है। अर्नब गोस्वामी से मुंबई के एनएम जोशी रोड पुलिस स्टेशन में पूछताछ चल रही है। खबर है यह पूछताछ 7, 8 घन्टे से चल रही है।
किसी भी मुल्जिम की पूछताछ कितने समय मे पूरी हो, किन किन विन्दुओं पर हो, कब हो, कौन कौन से दस्तावेज मांगे जाय, यह केवल उस मुकदमे का विवेचक आईओ ही तय करता है, इसमे किसी भी अदालत का कोई दखल नहीं है, और न कोई अदालत दखल देती है, यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी। अदालत ने खुद ही मुल्ज़िम को तफतीश में सहयोग देने के लिये कहा है। अर्नब का सहयोग यही है कि पुलिस जब भी उन्हें बुलाये वह विवेचक के समक्ष हाज़िर हो जांय, और जो सवाल पूछे जांय उनका उत्तर दें। न दे सकें तो वह भी बता दें।
मुक़दमे की विवेचना के दौरान, किसी भी मुल्जिम से पूछताछ एक विवेचक भी कर सकता है और कई पुलिस अफसरों की एक टीम भी कर सकती है, यह मुक़दमे की जटिलता और मुल्ज़िम की गंभीरता पर निर्भर करता है। अलग अलग अफसर भी पूछताछ कर सकते है और सामूहिक रूप से भी पूरी टीम मुल्ज़िम से पूछताछ कर सकती है। घटनास्थल का निरीक्षण भी मुल्ज़िम के साथ किया जा सकता है। जैसे अर्नब पर हुए हमले का घटनास्थल है।
अर्नब गोस्वामी पर आईपीसी की धाराओं 153, 505, 469, 471, 499, 500, 120 बी तथा और आपदा प्रबंधन की धारा 51, 52 और 66 ए आईटी एक्ट के अंतर्गत मुकदमा दर्ज है। हर अपराध के बारे में अलग अलग पूछताछ होगी और यह हो भी रहा होगा। अर्नब ने भी अपने ऊपर हमले का मुकदमा दर्ज कराया है।
यह मुकदमा जैसा कि मीडिया से पता चल रहा है वह साम्प्रदायिकता फैलाने, कोरोना आपदा के समय अनावश्यक विवाद फैलाने से जुड़ा है न कि सोनिया गांधी के असल नाम के उल्लेख के कारण यह धाराएं लगी हैं। नाम का उल्लेख कोई अपराध की श्रेणी में आता भी नहीं है।

ऐसा नहीं है कि देश मे साम्प्रदायिक उन्माद फैलाने वाली रिपोर्टिंग करने वाले अर्नब अकेले ही टीवी पत्रकार हैं बल्कि अन्य महानुभाव भी हैं, जो 2014 से ही ऐसा एजेंडा एक गिरोह के रूप में चला रहे हैं। पर यह शायद पहला मौका है जब कि लोगो ने इस प्रवित्ति पर अंकुश लगाने के लिये पुलिस में शिकायतें कीं और अभियोग दर्ज कराए। नहीं तो लोग नजरअंदाज कर जाया करते थे।
अर्नब ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उन्हें ही यह सब अकेले झेलना पड़ेगा। हालांकि वह रोज अपने चैनल में किसी न किसी को बुलाकर बेहद अपमानजनक भाषा मे आक्रामक होते थे और अपना भौकाल बनाये रखते थे। पर आश्चर्य है किसी ने न तो कभी आपत्ति दर्ज कराई और न ही उनके प्रोग्राम का बहिष्कार किया।
विजय शंकर सिंह पुलिस विभाग के बड़े अफसर रह चुके हैं।