ममता मल्हार-
आज गले में फिर कुछ अटक सा गया है। जैसे दर्द सारा इकट्ठा होकर गले के नीचे ही रह जाता है। Arshad Ali Khan अरशद भाई क्या इंसान थे। जो थे सामने थे नहीं थे तो फिर नहीं ही थे। साफ दिल बेबाक, खरा बोलने वाले। वेब मीडिया के विवादों के हल्ले के दौरान अरशद भाई बराबरी से खड़े थे।
भड़ास4मीडिया में उनकी खबरों से रूबरू होती रहती थी इसके पहले। लॉकडाउन के समय हर रोज हालचाल पूछ लेते कोई परेशानी तो नहीं। अगर जरा सी भी दिक्कत हो तो याद रखना तुम्हारा एक भाई है यहां पर। भोपाल में एक घर है। निडर बेबाक शैली। लिखने की भी बोलने की भी।
परसों उनके नम्बर से कॉल आई, उठा नहीं पाई। शायद बच्चों के पास मोबाईल था। मैंने लगाया तो रिसीव ही नहीं हुआ। आजकल ऐसे फोन घबराहट पैदा करते हैं।
गौरव भैया से बात हुई तो आज का तय हुआ था कि मिलने चलेंगे। ये फ़ोटो जो है आखिरी मुलाकात थी आपसे। हमेशा कहते अरे घर तो आओ तुम कैसी लड़की हो तुम्हारी भाभी खाना खिलाएंगी। दूरी बहुत तो नहीं घरों की पर भोपाल का दूसरा कोना कोहेफिजा तो इधर कोलार। आखिर इतने सालों में 4-5 महीने पहले घर पहुंच ही गई। और अगली बार मिलने घर आने-जाने का वादा ले-देकर आ गई।
हम कितनी योजनाएं बनाते हैं। जिससे मिलने का तय होता है दूसरे दिन या अगले पल उससे मिलेंगे भी या नहीं कुछ खबर नहीं होती।
अरशद भाई आप जैसे निडर बेबाक लिखने बोलने वाले बहुत कम लोग बचे हैं। अब एक कम हो गया। ईश्वर दोनों बच्चों को और भाभी को हिम्मत दे। कहना आसान होता है झेलना बहुत मुश्किल
दुनिया से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहाँ।
मेरी निजी क्षति है अरशद भाई आपका जाना। ॐ शांति। बच्चों पर ईश्वर का ये कैसा अन्याय।