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सुख-दुख

बाबा का एक इशारा हो गया तो आपकी नौकरी खतरे में पड़ सकती है पत्रकार महोदय!

विष्णु नागर-

किसी ‘सभ्य देश’ में बाबाओं के साथ ऐसा नहीं होता,जैसा कि करनाल में बाबा रामदेव के साथ हुआ।बताइए आठ साल पहले बाबाजी ने एवें ही कुछ कह दिया था और हरियाणा के पत्रकार उस बात को लेकर बैठ गए! कस्बाई पत्रकारों में अब भी इतना दुस्साहस बचा हुआ कैसे है, इसकी इन्क्वायरी खट्टर साहब सीबीआई से करवाइए वरना यह देश और प्रदेश के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।इन्हें यह अहसास करवाइए कि आज की तारीख में बाबाजी से पंगा लेना मतलब मोदी जी से पंगा लेने जैसा है। ये दो शरीर. एक जान हैं। और पत्रकारों को यह भी बताइए कि आजकल एक दिन में कम से कम दो युग बदलते हैं।आठ साल पहले की बात उठाना मतलब बाबाजी से 365× 8× 2 =5840 युग पुराना मसला उठाना है। यह अपने अनेक पूर्वजन्मों में लौटने के बराबर है ,जो कि होते नहीं!

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बाबा जी ने अपने किसी जन्म में मोदी जी को प्रधानमंत्री बनवाने के लिए कह दिया था कि लोगो, तुम्हें ऐसी सरकार चाहिए कि नहीं, जिसके राज में पेट्रोल 40 रुपये लीटर हो और गैस का सिलेंडर 300 रुपये में मिले! नेता और बाबा लोग ऐसी गपबाजी करते रहते हैं। लोग सुनते रहते हैं। इस कान से सुनकर उस कान से निकालते रहते हैं। हँसते रहते हैं। कोई इस तरह बात को पकड़ को कर नहीं बैठ जाता। फिर भी बाबा रामदेव की ईमानदारी देखिए कि उन्होंने माना कि हाँ युगों पहले उन्होंने ऐसा कहा था।उनकी स्मरण शक्ति को भी दाद देना चाहिए कि उन्हें अपने पूर्वजन्म कथन भी याद था!

खैर जी कहा था, सो कहा था। क्या यह बात तब वह उस मनमोहन सरकार के बारे में कहते, जो उनके पीछे डंडा लेकर पड़ी थी!वह उन्हें योगगुरु से धनगुरु बनने का यह सुनहरा अवसर देती? कुछ सोचा भी करो पत्रकारों! व्यावहारिक बनो। भावुकता कहीं नहीं ले जाती। बाबा का एक इशारा हो गया तो कम से कम आपकी नौकरी तो खतरे में पड़ ही सकती है।

और जहाँ तक ऐसी गपबाजी का सवाल है , मोदी जी तो ऐसी गप्पें रोज मारते रहते हैं। उनका आज तक कुछ बिगड़ा?किसीने उनसे पूछा कि महाराज क्यों इतनी गपबाजी करते रहते हो!फिर बेचारे बाबा जी से ही ऐसी क्या दुश्मनी है? उनका हरियाणवी होना ही क्या उनका कसूर है? वैसे भी गप मारना भारत में कब से अपराध हो गया? केवल नीयत साफ ओर शुद्ध होना चाहिए।उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए।देशहित व्यक्ति के सामने होना चाहिए।फिर झूठ- सच सब चलता है और ज्ञान की बात तो यह है कि जितनी तेजी से झूठ चलता है , दौड़ता है, सच उसका मुकाबला सात जन्म में भी नहीं कर नहीं सकता! यह इसी देश की इसी जनता ने मोदी जी को बार बार जिता कर सिद्ध भी कर दिया है।इसके बाद भी पत्रकार बाबा जी का पीछा करेंगे, तो बाबा जी हो या साहेब जी हों , उन्हें गुस्सा तो आएगा ही!

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और पत्रकार जी एक बात गाँठ बाँध लो, बाबा रामदेव, बाबा रामदेव है, देश का चौकीदार नहीं हैं कि जो कहा था, किया था, उससे मुकर जाए। उन्होंने मान लिया कि हाँ जी कहा था तो कहा था क्या अब मेरी पूँछ काटेगा? चुप हो जा, आगे कुछ पूछेगा तो ठीक नहीं होगा।

मिल गया न जी, पत्रकार जी आपको ठेठ हरियाणवी जवाब? हो गया अब आपको संतोष? अरे भाई पत्रकार महोदय, करनाल से दिल्ली बहुत दूर नहीं है। इतनी तो समझ आपको आ जाना चाहिए थी कि सरकार और सरकारी बाबाओं से सवाल पूछने का युग हवा हुआ। आठ साल में भी ये बात जिनको समझ में नहीं आई, कब आएगी? चले गये वो जमाने,जब प्रधानमंत्री से लेकर मंत्री तक से सवाल पूछना मामूली बात थी। मंत्री गुस्सा होकर भी किसी का कुछ बिगाड़ नहीं सकता था। अब मामला अलग है। तब परिवारवाद था, अब नहीं है। अब फूल चड्ढी पहन के खिलता है।पहले बेशर्मी थी। फूल नंगा खिलता रहता था,नंगा ही मुरझा भी जाता था। उसे कोई शेम- शेम तक नहीं कहता था।कोई नहीं पूछता था कि खिलने के बाद तुमने ध्वज प्रणाम किया या नहीं ? किया था तो चड्ढी पहनकर किया था न कि… । यह नागपुरी संतरों की सभ्यता और संस्कृति का युग है। मोदी जी इसे उसी तरह प्रयत्नपूर्वक लाए हैं, जिस प्रकार कहते हैं कि भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए थे।’ सभ्य समाजों ‘ में न तो सवाल पूछे जाते हैं, न जवाब दिये जाते हैं और यह भारत का सभ्य है!

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और वैसे भी पत्रकार जी महंगाई अब कोई मुद्दा नहीं रहा।अब तो ये भी कोई मुद्दा नहीं है कि आपने सुबह क्या कहा था और शाम को क्या कहा!जो सुबह कहा था, वह सुबह कहा था। अब शाम हो चुकी है। शाम को सुबह से और सुबह को शाम से कनफ्यूज करना छोड़ो। गनीमत है कि हमने दोपहर को कुछ नहीं कहा था वरना तुम कहते कि सुबह तो आपने ये कहा था।दोपहर को ये और अब शाम को ये कह रहे हो! मोदी जी ने सुबह क्या ये ही कपड़े पहने थे? और अभी शाम को क्या उन्होंने दोपहर वाले कपड़े पहन रखे हैं? मगर तुमने कभी ये सवाल उनसे तो नहीं पूछा मगर युगों पुरानी बात पर अरबपति बाबा से सवाल पूछना नहीं भूले! यह तो अन्याय है और पत्रकारों से अन्याय करने की अपेक्षा नहीं की जाती!

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