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सुख-दुख

भड़ास का एक सच्चा कमांडर अलविदा कह गया… श्रद्धांजलि हाड़ा साब!

(स्व. राजेंद्र हाड़ा)

Yashwant Singh : राजेंद्र हाड़ा जी आज सुबह चल बसे. अजमेर के जाने माने वकील और दबंग पत्रकार थे. पत्रकारिता छोड़कर इसलिए वकालत में आ गए थे क्योंकि पत्रकारिता में धंधेबाजी बहुत ज्यादा थी. हाड़ा साहब भड़ास के अनन्य समर्थक थे. मुझे बहुत प्यार करते. भड़ास के कार्यक्रमों में शिरकत करने दिल्ली आया करते. अजमेर समेत राजस्थान के उन विषयों पर दबा कर कलम चलाते जिसके बारे में लिखने से मीडिया हाउसों व पत्रकारों को डर लगता. खासकर मीडिया के भीतर की चिरकुटई पर जोरदार तरीके से प्रहार करते.

(स्व. राजेंद्र हाड़ा)

Yashwant Singh : राजेंद्र हाड़ा जी आज सुबह चल बसे. अजमेर के जाने माने वकील और दबंग पत्रकार थे. पत्रकारिता छोड़कर इसलिए वकालत में आ गए थे क्योंकि पत्रकारिता में धंधेबाजी बहुत ज्यादा थी. हाड़ा साहब भड़ास के अनन्य समर्थक थे. मुझे बहुत प्यार करते. भड़ास के कार्यक्रमों में शिरकत करने दिल्ली आया करते. अजमेर समेत राजस्थान के उन विषयों पर दबा कर कलम चलाते जिसके बारे में लिखने से मीडिया हाउसों व पत्रकारों को डर लगता. खासकर मीडिया के भीतर की चिरकुटई पर जोरदार तरीके से प्रहार करते.

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जब जब मैं अजमेर जाता या उधर से ट्रेन से गुजरता तो एक फोन करते ही हाड़ा साहब मिठाई या कुछ ऐसा ही खाने का सामान लेकर हाजिर हो जाते. जो शख्स किसी के आगे नहीं झुका, उसके भीतर कितना बड़ा दिल हुआ करता, यह मैं सोचा करता. अभी पचास के आसपास उम्र रही होगी. ह्वाट्सएप पर एक साथी ने राजेंद्र हाड़ा के गुजर जाने की खबर दी तो विश्वास नहीं हुआ. तुरंत मोबाइल में राजेंद्र हाड़ा जी के नंबर पर कॉल किया और पूछा कि क्या जो राजेंद्र हाड़ा साब के बारे में सूचना आ रही है वह सही है? उस तरह रोते सुबकते उनके पुत्र थे. उन्होंने खबर को सही बताया. मैंने थोड़ी बहुत जानकारी ली. कब हुआ. कैसे हुआ. उनने बताया. फिर संवाद खत्म.

क्या बात करता. क्या कहता बेटे से. ऐसे मौके पर कुछ कहना भी नहीं आता. किस मुंह से उस लड़के को ढांढस बंधाऊ. अभी तो पचास साल उम्र हुई थी उसके पापा की. अजमेर में राजेंद्र हाड़ा साहब के व्यक्तित्व के कायल बहुत सारे लोग थे. तभी तो उनके निधन की सूचना के बाद जो जहां था, वहीं से उनके घर की तरफ चल पड़ा. मुझे यह सब लिखते हुए लग रहा है जैसे मैं थोड़ा कमजोर हो गया हूं. ऐसे नि:स्वार्थ भाव से समर्थन देने वाले और साथ खड़े रहने वाले साथी अब इस दुनिया में बहुत कम मिलते हैं. उदाहरण के तौर पर राजेंद्र हाड़ा जी द्वारा लिखे चार उन लेखों का लिंक नीचे कमेंट बाक्स में दे रहा हूं जिसके जरिए आप जान सकते हैं कि वो भड़ास और यशवंत को कितना प्यार करते थे. हाड़ा साहब, ठीक नहीं किया दोस्त. आपतो हमारे मूक कमांडर थे. बिना कुछ कहे जताए आप मुझको संबल सपोर्ट दिया करते. ईश्वर परिजनों को दुख सहने की ताकत दे.

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भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.

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