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सियासत

बसपा की तेज़ी से घटती हैसियत से उपजी ‘असुरक्षा’ ने एक अति-अक्रोशित दबंग दलित संगठन को जन्म दे दिया

Surya Pratap Singh : आज के उत्तर प्रदेश में ‘सुगबुगाहट’ से ‘सुलगाहट’ तक की नयी दास्ताँ….पश्चिमी उ.प्र. में जातीय संघर्ष से उपजा दलित ‘उग्रवाद’ …65,000 युवाओं की हथियार धारी अति-उग्र, उपद्रवी ‘भीम-सेना’ का जन्म ……’भीम आर्मी भारत एकता मिशन (BABA Mission)!!! मुज़फ़्फ़रनगर दंग़ो के बाद से धार्मिक उन्माद व जातीय हिंसा से पश्चिमी उत्तर प्रदेश ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा है ….इसमें वोटों की राजनीति हमेशा आग में घी का काम करती रही है…

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Surya Pratap Singh : आज के उत्तर प्रदेश में ‘सुगबुगाहट’ से ‘सुलगाहट’ तक की नयी दास्ताँ….पश्चिमी उ.प्र. में जातीय संघर्ष से उपजा दलित ‘उग्रवाद’ …65,000 युवाओं की हथियार धारी अति-उग्र, उपद्रवी ‘भीम-सेना’ का जन्म ……’भीम आर्मी भारत एकता मिशन (BABA Mission)!!! मुज़फ़्फ़रनगर दंग़ो के बाद से धार्मिक उन्माद व जातीय हिंसा से पश्चिमी उत्तर प्रदेश ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा है ….इसमें वोटों की राजनीति हमेशा आग में घी का काम करती रही है…

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आज सहारनपुर, जातीय (ठाकुर-दलित) हिंसा से जल रहा है … उन्मादी ‘भीम सेना’ के सैनिक पुलिस को दौड़ा-२ कर पीट रहे है.. ठाकुर जाति भी संगठित हो भीम सेना के उपद्रव का विरोध कर रही है ….. ‘भीम सेना’ द्वारा एक ठाकुर युवा की हत्या व ‘महाराणा प्रताप भवन’ पर हमले/तोड़फोड़ से ठाकुरों में बदले की भावना उद्वेलित हो रही है। दलितों की अति-उग्र ‘भीम सेना’ बसपा समर्थित व ‘असंगठित’ ठाकुर वर्ग अधिकांश भाजपा समर्थित है…..अतः इस जातीय हिंसा में कहीं-न-कहीं राजनीति तो है…

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पूर्व सरकार की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति ने हिंदूवर्ग में आक्रोश व असुरक्षा का भाव पैदा हुआ और यही मुज़फ़्फ़रनगर दंग़ो का कारण भी बना ………और पिछले कुछ वर्षों से पश्चिमी उ.प्र. में बसपा की तेज़ी से घटती हैसियत से उपजीं ‘असुरक्षा’ ने एक अति-अक्रोशित दबंग दलित संगठन को जन्म दे दिया, जिसका नाम है ‘भीम सेना’….. दलित बाहुल्य गाँवों में इस संगठन ने गहरी पैंठ बनायी है ….65,000 दलित उग्र-युवा इस सेना में भर्ती हैं ….हथियार/डंडों/बर्छों से लेस…इस सेना की बढ़ती शक्ति का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके सैनिकों ने हाल के सहारनपुर जातीय संघर्ष में पुलिस को दौड़ा-२ कर पीटा है….. दलित बाहुल्य गाँवों में पुलिस का घुसना मुश्किल हो गया है…..

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भाजपा संसाद राघव लखनपाल ने आंबेडकर शोभा यात्रा को लीड किया जिसपर 20अप्रैल को सड़क दुधली गांव में बवाल हुआ और फिर SSP बंगले पर तोड़फोड़ हुई। तब दलित-मुस्लिम संघर्ष बनकर सामने आया था। आज महाराणा प्रताप जयंती के विरोध में ठाकुर-दलित संघर्ष सामने है। शायद राजनीतिक मनसा तो हिंदू-मुस्लिम कराने की थी परंतु दाँव उलटा पड़ा और हो गया ठाकुर-दलित संघर्ष …. अब स्थानीय ‘राजनीतिज्ञों’ को तो निगलते बन रहा है और न उगलते…..

वैसे भी राजनीतिक उद्देश्य का चोला ओढ़े जातीय व धार्मिक सेनाओं/वाहिनियों/स्वंभु रक्षक़ों का युग चल रहा है… पुलिस/प्रशासन के लिए एक अलग चुनौती बन गयी हैं ये सब …. जातीय संघर्ष हिंदू धर्म के लिए भी चुनौती बन गया है…कैसे सभी जातियों को सद्भाव बना हिंदू धर्म एक छतरी के नीचे रहे,यह बड़ी चुनौती है।

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कुल 6.3 करोड़ की आबादी में 73.47% हिंदू व 24.98% मुस्लिम हैं। वर्तमान जातीय संघर्ष के क्रम में 40 लाख राजपूत 1 करोड़ जाट व 12 लाख दलित जनसंख्या है। जाट व राजपूतों दोनों का ही दलितों से वैमनस्य रहता है। इस क्षेत्र में जाट-दलित संघर्ष की कहानी बहुत पुरानी है….पूरे देश में सवर्णों द्वारा दलितों के शोषण का भी पुराना इतिहास तो है ही। यह बात अलग है कि ‘आरक्षण’ नामक तथाकथित व्याधि ने इस शोषण की आर्थिक दिशा ही बदल दी है……

मायावती काल में ‘SC/ST Act’ के अंतर्गत बड़े पैमाने पर जाट/ठाकुर/यादवों/पंडितों पर मुक़दमे दर्ज हुए और सवर्ण युवा/वृद्ध ज़ैल गए …. महिलाओं तक भी गिरफ़्तार हुईं, यह सब भी सवर्ण-दलित द्वेष का कारण बना।

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ज्ञात हो कि नक्सली हिंसा भी ग़रीबी से उपजीं अंतरजातिय/जनजातीय संघर्ष से ही आरम्भ हुआ था , जो आज एक अपने तरह का आतंकवाद बन चुका है। डर है कि कहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी वर्तमान जातीय संघर्ष नव-आतंकवाद यानी ‘जातीय आतंकवाद’ को जन्म न दे दे ….. पश्चिमी उत्तर प्रदेश क्या बढ़ते ‘धार्मिक-उन्माद’ व ‘जातीय-हिंसा’ से ‘उपद्रवी क्षेत्र’ तो नहीं बनता जा रहा है ? संभालो…. जल्दी करो, कही देर न हो जाए !!!

जय हिंद-जय भारत!

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वरिष्ठ आईएएस अधिकारी रहे सूर्य प्रताप सिंह की एफबी वॉल से.

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