Narendra Nath : इस हफ्ते तीन चुनाव हुए। महाराष्ट्र नगरपालिका। और आज गुरुदासपुर लोकसभा और केरल में विधानसभा उपचुनाव। महाराष्ट्र में कांग्रेस पहले से थी और इस बार और बड़े मार्जिन से जीती। गुरुदासपुर लोकसभा बीजेपी के पास थी और विनोद खन्ना यहां से 20 साल से एमपी थे। उनके मरने के बाद चुनाव हुआ। लेकिन सहानुभूति फैक्टर काम नहीं आया और रिकार्ड मतों से कांग्रेस जीत रही। केरल में जिस विधानसभा सीट पर उपचुनाव था वहां मुस्लिम वोट काफी थी। लेकिन बीजेपी ने लव जेहाद का बहुत बड़ा मुद्दा अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश की। लेकिन 2016 में वहां तीसरा स्थाान पाले वाली बीजेपी आज चौथे स्थान पर आ गयी। हाल में केरल में किस हाई वोल्टेज बीजेपी ने कैंपेन किया वह सब देख सकते हैं। वहीं इलाहबाद यूनिवर्सिसटी में भी कर देर रात एसपी ने चुनाव जीता।
अब इन परिणाम को समझें। कायदे से इसका बहुत खास महत्व नहीं है। यह निहायत लोकल टाइम चुनाव हैं जिसका कोई एक समग्र निहितार्थ नहीं निकाला जा सकता है। अगले महीने हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव होंगे और फिर बीजेपी चुनाव जीत लेगी तो यह विपक्ष के लिएचार दिन की चांदनी वाली बात साबित हो जाएगी।
तो क्यों जीत रही है बीजेपी?
इसका भी उत्तर आज ही मिला। इधर जब बीजेपी गुरुदारसपुर लोकसभा चुनाव बुरी तरह हार रही थी तभी पार्टी हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस नेता सुखराम के पूरे परिवार को अपनी पार्टी में शामिल करने के लिए रेड कारपेट वेलकम दे रही थी। वही सुखराम, टेलीकॉम घोटाले वाले, जो मार्डन करप्शन के प्रतीक है। वही सुखराम जिनके घर करोड़ों का कैश मिलने के बाद बीजेपी ने कभी संसद का पूरा सत्र नहीं चलने नहीं दिया था। मतलब नैतिकता और किसी भी कीमत पर जीत के सवाल पर मोदी-शाह की टीम किसी भी कीमत पर जीत को तरजीह देते हैं। यही कारण है कि 2019 से पहले पश्चिम बंगाल में नारदा घोटाले वाले मुकुल राय, महाराष्ट्र में करप्शन के प्रतीक नारायण राणे भी बीजेपी की दहजीज पर खड़े हैं और उन्हें रेड कार्पेट वेलकम दिया जा रहा है।
फिर पूछेंगे कि इसमें गलत क्या है? राजनीतिक दल चुनाव नैतिकता नहीं जीत-हार के लिए लड़ते हैं। बीजेपी क्यों इससे पीछे हटे। दुरुस्त है। कांग्रेस और विपक्ष भी तो यही कर इतने दिनों सत्ता में रही।
यही सही जवाब है। बीजेपी ही क्यों नैतिकता की दुहाई दे? मेरे हिसाब से कुछ भी गलत नहीं है। पब्लिक के सामने सबकुछ है। बीजेपी भी छुपकर नहीं कर रही। और बीजेपी नेता मुगालते में भी नहीं है। कल जाकर उन्हें लालू,सुरेश कालमाड़ी या ए राजा से राजनीतिक मदद लेनी पड़े तो भी वह खुशी-खुशी लेंगे। राष्ट्रवाद के नाम पर लड़ने वाली पार्टी ने बुरहान बानी को शहीद बताने वाली पार्टी से सरकार बना रखी है ना? गोवा और नार्थ-ईस्ट में बीफ का सपोर्ट करती है ना? जीत के लिए साम-दाम-दंड-नीति की बदौलत पिछले कुछ सालों से अजेय है, इस पर कोई संदेह या विवाद नहीं है और छोटी-मोटी हार के बाद पार्टी खुद को करेक्ट करती रही है।
इन सबके बीच मेरी आपत्ति बस इन्हें अंधे सपोर्टरों से हैं जो राजनीति की असलियत पर आंख मूंदते हुए holier-than-thou की दुहाई देते हैं। हर विरोध करने वालों को करप्ट,एंटी नेशनल टाइप बोलते रहते हैं। मैं पुण्य और दूसरे पापी, मैं साधु दूसरे शैतान, का चोला ओढ़ा नायाब-नायाब तर्क देते हैं। बाबू मोशाय, यह राजनीति एक हमाम है और हम सब इसमें नंगे हैं। जॉनी, जिनके घर शीशे बने के होते हैं, दूसरों पर शीशा नहीं फेंका करते हैं।
टाइम्स आफ इंडिया में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र नाथ की एफबी वॉल से.