गिरीश मालवीय-
न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी
न रिपोर्ट देगा कैग, न लगेगे आरोप प्रत्यारोप
जी हां !… एक वक्त था जब UPA का शासनकाल था ओर तब हर दिन में संसद में हंगामा हो जाया करता था क्योंकि कैग की रिपोर्ट से सरकार की चूले हिल जाती थी और एक आज का दिन है जब CAG यानी Comptroller and Auditor General जैसी संस्था को पंगु बना दिया गया है।
आपको याद होगा कि टू जी घोटाला, कोल ब्लॉक घोटाला आदर्श घोटाला ओर राष्ट्रमंडल खेल घोटाले पर कैग की ऑडिट रिपोर्ट से तत्कालीन UPA सरकार की छवि पूरी तरह से धूमिल हो गयी थी।
सच्चाई यह है कि मोदी सरकार में अंदर ही अंदर घोटाले UPA से भी ज्यादा हो रहे हैं लेकिन CAG जैसी संस्था को पूरी तरह से साइड लाइन कर दिया गया है इसलिए यह घोटाले सामने नही आ पा रहे हैं।
दरअसल कैग का काम ही यह पता लगाना है कि सरकारी पैसे का नियमों के तहत सही इस्तेमाल किया गया या नहीं। इसके लिए यह संस्था सरकार के खर्चों का आडिट करती है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती है कि पिछले पांच सालों के दौरान कैग की आडिट रिपोर्ट की संख्या 55 से 14 तक गिर गई है, अगर आडिट रिपोर्ट घट रही हैं तो जाहिर है कि कैग की विवेचना का दायरा लगातार सिमट रहा है।
दो साल पहले साठ सेवानिवृत्त अधिकारियों ने कैग को पत्र लिखकर उसपर नोटबंदी और राफेल सौदे पर ऑडिट रिपोर्ट को जानबूझ कर टालने का आरोप लगाया था, नोटबंदी पर मीडिया की खबरों का संदर्भ देते हुए पूर्व नौकरशाहों ने कहा है कि तत्कालीन नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक शशि कांत शर्मा ने कहा था कि ऑडिट में नोटों की छपाई पर खर्च, रिजर्व बैंक के लाभांश भुगतान तथा बैंकिंग लेन-देन के आंकड़ों को शामिल किया जाएगा। कैग को यह भी देखना था कि 1000 को नोट को बैन करने से क्या असर पड़ा। लेकिन अब तक नोटबन्दी पर कोई रिपोर्ट प्रकाशित नही की गयी। ऐसे ही राफेल सौदे पर ऑडिट भी लगातार लटकाया जा रहा है।
अगर कैग सही तरीके से अपना काम करे तो वह क्या कर सकता है इसका उदाहरण हम सरदार पटेल के स्टेच्यू निर्माण में आयी कैग की रिपोर्ट से देख सकते हैं इस रिपोर्ट में CAG ने सरकारी तेल कंपनियों पर विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा बनाने में CSR फंड के इस्तेमाल पर सवाल उठाए थे । CAG ने कहा कि इन कंपनियों ने वल्लभभाई की प्रतिमा बनाने पर कॉरपोरेट सोशल रेसपॉन्सिबिलिटी (CSR) के तहत कई करोड़ रुपए खर्च किए हैं जो कि नियम विरुद्ध है।
CAG के मुताबिक CSR के नियमों के तहत कोई भी कंपनी किसी राष्ट्रीय धरोहर को बचाने के लिए CSR फंड का इस्तमाल कर सकती है, लेकिन सरदार पटेल की यह प्रतिमा राष्ट्रीय धरोहर नहीं मानी जा सकती। इसलिए तेल कंपनियों द्वारा उठाया गया यह कदम नियमों के खिलाफ है और इसकी जांच होनी चाहिए।
इसके अलावा 4 अप्रैल 2018 को संसद पहुंची कैग की रिपोर्ट में वित्तीय अनियमितताओं पर सवाल खड़े किए जिसमे पता लगा कि सरकारी राजस्व को 1179 करोड़ रुपए की चपत लगाई गई हैं ये अनियमितताएं मार्च 2017 तक के वित्तीय दस्तावेजों की छानबीन के बाद पकड़ में आईं।
ऐसी रिपोर्ट्स के बाद ही कैग पर नकेल कस दी गई नतीजा यह है कि हर साल 50-55 रिपोर्ट बनाने वाला कैग अब गिनीचुनी रिपोर्ट ही दे रहा है।
साफ दिख रहा है कि यदि कैग को अपना काम ठीक तरीके से करने दिया जाता तो मोदी सरकार कही मुँह दिखाने के काबिल नही रहती।