Deepak Sharma : ये इस देश का दुर्भाग्य है कि यहाँ के तथाकथित बड़े पत्रकार चरमराती व्यवस्था को अनदेखा कर हिन्दू-मुस्लमान और दलित सवर्ण के मुद्दों पर अपनी उर्जा ज्यादा खर्च कर रहे हैं. हर मुद्दे में उनका दृष्टिकोण जाति-धर्म से जुड़ा-बिंधा होता है. इस तरह वो देश के ज्वलंत मुद्दों को ढक देते हैं. अंग्रेजी में इसे camouflage कहते हैं ..यानी तथ्यों का छ्द्मावार्ण करना. मैं ये नही कह रहा कि इन विषयों पर नही लिखा जाना चाहिए लेकिन बड़े मंच का इस्तेमाल कर रहे पत्रकारों को अपनी उर्जा और अपना धन कुछ बड़ी और मूल्य समस्याओं पर केन्द्रित करना होगा. जिस देश में हर बड़ी सरकारी योजना को दिल्ली के पांचसितारा क्लबों में बैठे दलाल बीच रास्ते मे लूट लेते हों उनको कोई बेनकाब क्यूँ नही करता?
इस देश में कुकुरमुत्ते की तरह चिट फण्ड कम्पनिया, दलितों, गरीब सवर्णों और दिहाड़ी कारोबार से जुड़े मुसलमानों को लूटती रहीं पर कथित बड़े पत्रकारों ने उन चिट फंड कम्पनियों के खरबपति मालिकों को कभी एक्स्पोस क्यूँ नही किया . आज दशकों बाद काली कमाई कि इन कम्पनियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट को आदेश देने पड़ रहे है. हमारे देश में जनसँख्या विस्फोट सबसे बड़ी समस्या है. सन जानते है. सारी दुनिया ये सच जानती है. लेकिन मैंने किसी नामवर पत्रकार को इस समस्या पर शोध या कोई मुहीम छेड़ते नही देखा. इसी तरह मैंने टीवी के किसी बड़े बहसबाज एंकर को सोशल ऑडिट के कांसेप्ट पर बात करते नही देखा. आज देश को सोशल ऑडिट की बेहद ज़रुरत है और इसमें सबसे बड़ा योगदान अनुभवी और साधन संपन पत्रकारों का चाहिए.
सरकार के समानांतर ही कारपोरेट करप्शन इस देश के तंत्र और नीतियों को दीमक की तरह चाट रहा है. ये भी सब जानते हैं. देश में बड़े ठेकों और प्राकृतिक सम्पादाओं की खुली लूट हो रही है लेकिन इसको एक्स्पोस बड़े पत्रकारों की जगह छोटे छोटे आरटीआई एक्टिविस्ट कर रहे हैं. बड़े पत्रकारों को तो ओवैसी और तोगड़िया से फुर्सत नही है. क्यूंकि ओवैसी/तोगड़िया पर चर्चा आसानी से बड़े मुद्दों को camouflage करती है.
मेरा मानना है कि देश में हर विचारधारा …चाहे लेफ्ट हो राईट का मंच होना चाहिए लेकिन उस मंच को विचारक के लिए छोड़ दें… उस मंच पर खुद पत्रकार बैठकर पद्मासन न करें. बेहतर होगा दिल्ली में बैठे कथित बड़े पत्रकार अपने संसाधन और उर्जा देश की कुछ मूल बड़ी समस्याओं की तटस्थ पड़ताल में खर्च करें …इसमें एक बड़ा मुद्दा भ्रस्टाचार भी है पर हैरानी है कि बड़े पत्रकार इस ज्वलंत समस्या से भी परहेज करते है. खैर छोडिये …कारपोरेट की पगार पर पलने वाले कलमकार कौन सा सच लिखेंगे ये नई पीढ़ी भी अब जान रही है. बुरा ना माने एंकर भाईजान , वक़्त शायद अब आयना देखना का है कैमरा देखने का नही.
आजतक न्यूज चैनल समेत कई मीडिया हाउसों में वरिष्ठ पद पर काम कर चुके पत्रकार दीपक शर्मा के फेसबुक वॉल से.