इलाहाबाद हाईकोर्ट की देखरेख में चल रही अवैध खनन की सीबीआई जांच

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने हमीरपुर जिले में हुए अवैध खनन के मामले में आईएएस बी. चंद्रकला समेत 11 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करते हुए शनिवार को उनके ठिकानों पर छापे मारे। छापे की टाइमिंग को लेकर मीडिया और राजनीतिक विश्लेषकों ने कयासबाजी शुरू कर दी और कहा जाने लगा कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच लोकसभा चुनाव को लेकर संभावित गठबंधन की ख़बरें आने के साथ ही सीबीआई ने यह छापा मारा है। इसकी आंच अखिलेश यादव तक भी पहुंच सकती है और सीबीआई अखिलेश यादव से भी पूछताछ कर सकती है। हक़ीक़त यह है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश 28 जुलाई 2016 के अनुसार सीबीआई उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में अवैध खनन की जाँच कर रही है और समय समय पर हाईकोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करती है यानि जाँच राजनीतिक न होकर कोर्ट मॉनीटर्ड है।
गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने दो अलग-अलग जनहित याचिकाओं पर 28 जुलाई 2016 को अवैध खनन की जांच के आदेश दिए थे। इसके बाद 9 सितंबर 2016 को हाईकोर्ट ने अपनेसीबीआई जाँच के आदेश की पुष्टि कर दी थी। 12 जनवरी 18 को सीबीआई जाँच की स्टेटस रिपोर्ट देखने के बाद हाईकोर्ट ने कहा था कि जाँच सही दिशा में चल रही है और बिना किसी अवरोध के चलती रहेगी तथा प्रत्येक जिले में जाँच तार्किक परिणति तक पहुंचेगी। इस प्रकरण पर मई 18 मई को तारीख लगी थी और याचिका अभी भी लंबित है और हाईकोर्ट इसकी मॉनिटरिंग कर रहा है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश सरकार उच्चतम न्यायालय से भी गुहार लगाई थी लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इसमें हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था।
प्रदेश की राजनीति में भूचाल
अवैध खनन का ये वही मामला है जिसके बाद प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया था। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाईकोर्ट के गंभीर रुख को देखते हुए तत्कालीन खनन मंत्री गायत्री प्रजापति को मंत्रिमंडल से हटा दिया था। हालांकि, बाद में प्रजापति की कैबिनेट में वापसी हो गई लेकिन उन्हें खनन विभाग नहीं दिया गया। अवैध खनन मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को उच्चतम न्यायालय से 12 जनवरी 17 को बड़ा झटका लगा था। उच्चतम न्यायालय ने अखिलेश सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें सीबीआई को मामले का केस दर्ज करने की छूट देने के फैसले को चुनौती दी गई थी। प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट के 28 जुलाई और नौ सितंबर के उन आदेशों को भी चुनौती दी थी, जिनमें हाई कोर्ट ने सीबीआई से अवैध खनन पर रिपोर्ट मांगी थी और बाद में सीबीआई से रिपोर्ट मांगने के आदेश को वापस लेने से भी इनकार कर दिया था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि यूपी सरकार द्वारा अवैध बालू खनन के काम को बंद कराए जाने के काम में दिलचस्पी नहीं लिए जाने के बाद इस मामले में सीबीआई जांच के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि सरकारी अफसरों की जानकारी और उनकी मिलीभगत के बिना अवैध खनन मुमकिन ही नहीं है।हाईकोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि प्रमुख सचिव का यह कहना कि उन्हें किसी भी जिले में अवैध खनन की सूचना नहीं है, यह आंख में धूल झोंकने जैसा है। कोर्ट ने कहा कि प्रमुख सचिव ने हलफनामा दाखिल कर कहा कि अवैध खनन पर रोक के लिए प्रत्येक जिले में अधिकारियों की टीम गठित कर दी गई है। टीम के मुताबिक प्रदेश में कहीं भी अवैध खनन नहीं हो रहा। कोर्ट ने प्रमुख सचिव से कहा था कि सेटेलाइट मैपिंग कराई जाए ताकि अवैध खनन का पता चल सके। इसके जवाब में प्रमुख सचिव ने प्रदेश में ऐसी तकनीक न होने के कारण सेटेलाइट मैपिंग कराने में असमर्थता प्रकट की थी।
दरअसल अवैध खनन का मामला उस वक्त का है, जब तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव के पास खनन मंत्री की भी जिम्मेदारी थी।इसलिए आईएएस अधिकारी बी. चंद्रकला से जुड़ी इस कार्रवाई के तार प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से जोड़े जाने लगे। अब इसे महजसंयोग कहें या कुछ और कि नई दिल्ली में एक ओर शनिवार को सुबह सपा-बसपा गठबंधन की बैठक चली और उधर दोपहर होते-होते यूपी के कई ठिकानों पर धड़ाधड़ सीबीआई के छापे पड़ गए. एक तरफ फैसला हुआ कि यूपी में आगामी लोकसभा चुनावों में सपा और बसपा 37-37 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी और दूसरी ओर शाम तक सीबीआई ने अवैध खनन के मामले में सपा के विधायक रमेश मिश्रा और उनके भाई दिनेश कुमार को आरोपी बनाया।
सीबीआई ने हमीरपुर जिले में हुए अवैध खनन के मामले में आईएएस बी. चंद्रकला समेत 11 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करते हुए शनिवार को उनके ठिकानों पर छापे मारे। नई दिल्ली, लखनऊ, हमीरपुर व जालौन में छापों के दौरान सीबीआई को व्यापक अनियमतता से जुड़े दस्तावेजों मिले हैं। खनन अधिकारियों के घरों से 2.5 करोड़ रुपये और करीब चार किलो सोना बरामद हुआ है। यह खनन घोटाला समाजवादी पार्टी की सरकार में वर्ष 2012 से 2016 के बीच हुआ था। जांच में सीबीआई को वर्ष 2012-16 के दौरान हमीरपुर जिले में व्यापक पैमाने पर अवैध खनन किए जाने के साक्ष्य मिले, जिससे बड़े पैमाने पर सरकारी राजस्व को क्षति पहुंची। एम बी चंद्रकला पर हमीरपुर में जिलाधिकारी रहते अवैध खनन और अपने चहेतों को पट्टे देने का अरोप है। 2017 में सीबीआई ने चंद्रकला से पूछताछ की थी। उसी वक्त तत्कालीन प्रमुख सचिव (खनन) डॉ. गुरुदीप सिंह से खनन मामले में पूछताछ हुई थी।
चंद्रकला समेत ये बने अभियुक्त
अपनी जांच के निष्कर्षों के आधार पर सीबीआई ने हमीरपुर की तत्कालीन डीएम एवं वर्ष 2008 बैच की आईएएस बी. चंद्रकला, हमीरपुर के तत्कालीन खनन अधिकारी मोइनुद्दीन, हमीरपुर के तत्कालीन खनन बाबू राम आश्रय प्रजापति, खनन के लीज होल्डर एवं हमीरपुर के मोदहा निवासी रमेश कुमार मिश्र व दिनेश कुमार मिश्र, खनन के लीज होल्डर एवं हमीरपुर के कमोखर निवासी अंबिका तिवारी, खनन लीज होल्डर एवं हमीरपुर के सफीगंज निवासी संजय दीक्षित व सत्यदेव दीक्षित, खनन लीज होल्डर जालौन जिले के पिडारी निवासी राम अवतार सिंह, खनन लीज होल्डर जालौन जिले के गणेशगंज निवासी करन सिंह तथा लखनऊ व दिल्ली दोनों स्थानों के निवासी अवैध खनन से जुड़े आदिल खान को नामजद करते हुए अन्य अज्ञात निजी एवं सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। सभी को आईपीसी की धारा 120बी, 379, 384, 420 व 511 के अलावा एंटी करप्शन एक्ट की धारा 13 (2) व 13 (1) (डी) के तहत नामजद किया गया है। नामजद अभियुक्तों में शामिल रमेश कुमार मिश्र सपा के एमएलसी हैं, जबकि संजय दीक्षित हमीरपुर के पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष हैं।
तीन घंटे चली छापेमारी
सीबीआई ने लगभग ढाई घंटे तक उनका पूरा घर खंगाला। टीम ने जाते समय मीडिया को कुछ भी बताने से इनकार कर दिया। टीम अपने साथ ढेर सारे कागजात जब्त कर ले गई।चंद्रकला के घर से निवेश और प्रापर्टी से संबंधित अहम कागजात मिले हैं। इनके आधार पर अब उनके गृह नगर तक की जांच होगी। सीबीआई की अलग-अलग टीमों ने हमीरपुर में संजय दीक्षित व रमेश मिश्र के आवासों पर छापे मारे। इसी तरह अन्य अभियुक्तों राम आसरे प्रजापति, दिनेश मिश्रा, अंबिका तिवारी, राम अवतार सिंह, करन सिंह व आदिल खान के हमीपुर, जालौन व नई दिल्ली समेत अन्य ठिकानों पर छापे मारे गए।
किसी प्रशासनिक अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई क्यों
सवाल उठ रहे हैं कि अवैध खनन मामले में किसी प्रशासनिक अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई क्यों? दरअसल हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि प्रदेश में हो रहे अवैध खनन में राज्य के अधिकारियों की मिलीभगत है या नहीं इसपर भी रिपोर्ट दे। प्रदेश में खनन माफिया और अफसरों का सिंडीकेट काफी चर्चित रहा है।आरोप हैं कि खनन माफिया अपने रसूख का लाभ उठाकर मनमाफिक डीएम बनवाते रहे हैं और खदान पट्टे लेते रहे हैं। खनन माफिया की पहुंच सरकार तक होने के आरोप लगते रहे हैं ताकि वे साठगांठ कर अपनी मर्जी से खदान के इलाकों में डीएम तय करा सकें।
2000 करोड़ रुपए का सालाना कारोबार
प्रदेश में अवैध खनन का लगभग 2000 करोड़ रुपए का सालाना कारोबार है। इसमें भू माफियाओं, अफसरों से लेकर नेताओं तक की भागेदारी है। यही कारण है कि यह अवैध व्यापार अब तक फल फूल रहा है। हर ट्रक पर हजारों रुपए की काली कमाई होती हैं। खुलेआम ट्रकों से ओवरलोडिंग कर राजस्व, वैट और इनकम टैक्स की चोरी की जाती है।
इलाहाबाद से वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.