Nadim S. Akhter : एक दलित नौजवान चंद्रशेखर ने ऐसा क्या किया कि उसे हाई कोर्ट से जमानत मिलते ही राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी रासुका लगाकर फिर अंदर कर दिया!! जेल वो अपने पैरों पे चलकर गया था, बाहर व्हील चेयर पे निकला। अंदर उसके साथ इस तंत्र ने क्या किया, ये अंदाजा लगा लीजिए।
सवाल यही है कि चंद्रशेखर से राष्ट्र को क्या खतरा है कि उसपर रासुका लगाना पड़ा? ये तो इंदिरा की इमरजेंसी के भी बाप हो गए। इंदिरा ने तो बाकायदा इमरजेंसी घोषित की थी, ये तो अघोषित इमरजेंसी वाली स्थिति है।
कहाँ हैं दलितों के मसीहा मायावती, रामविलास पासवान, उदितराज एंड कंपनी? किसी के मुंह से बकार क्यों नहीं निकल रही है??
क्या सरकारें इस मामले पे स्पष्टीकरण देंगी?! इतना भी मत गिरिए सर! वाजपई जी वाला POTA याद है ना? जनता ने इस कानून को खत्म कर दिया था। अपना लोकतंत्र मुर्गी का चूज़ा नहीं कि झपट्टा मारके जेब में डाल लिया। ये अजगर है, पार्टी और नेता को एक साथ निगल जाता है और डकार भी नहीं लेता। ऐसे निशान मिटाता है कि पता भी नहीं चलता के आप कभी थे भी!
चाहें तो बिहार के जीतन राम मांझी की गवाही ले लीजिए!!
वरिष्ठ पत्रकार नदीम एस. अख्तर की एफबी वॉल से.